तलाक मिलने तक महिला को ससुराल जैसे ही लाइफस्टाइल मेंटेन करने का हक, सुप्रीम कोर्ट ने पति को 1.75 लाख गुजारा भत्ता देने को कहा
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक मामले के लंबित रहने के दौरान पत्नी को ससुराल में मिले लाइफस्टाइल को मेंटेन करने का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक मामले के लंबित रहने के दौरान पत्नी को ससुराल में मिले लाइफस्टाइल को मेंटेन करने का अधिकार है.
सुप्रीम कोर्ट ने जोर देकर कहा कि पत्नी को उस लाइफस्टाइल का अधिकार है जो उसे पति के घर में मिले हैं. आदेश में आगे कहा कि गुजारा भत्ता देने का मतलब यह नहीं है कि केवल जीवन यापन के लिए खर्चे दिए और महिला को बेसिक चीजों के लिए भटकना पड़े. शीर्ष अदालत ने पति को 1.75 लाख रूपये का गुजारा भत्ता भी देने को कहा है.
इंदौर में पदस्थ महिला ने पति से तलाक की मांग करते हुए दावा किया था कि वह उसे नौकरी छोड़कर भोपाल में अपने साथ रहने के लिए मानसिक तौर पर परेशान कर रहा है. बता दें कि पति बेरोजगार है.
हिंदू मैरिज एक्ट, 1991 की धारा 13 तलाक लेने के कारणों को बताती है, इस सेक्शन में तीसरा उपबंध बताती है कि तलाक को मान्यता तभी दी जा सकती है जब पति-पत्नी दोनों एक दूसरे से कम-से-कम दो साल, बिना सहमति के अलग रहे.
तलाक मामले में पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि दंपत्ति छह साल से अलग रह रहे हैं और उनके रिश्ते में बहुत गिरावट आ चुकी है, जिसमें सुधार होना मुश्किल है.
तलाक देने से पहले अदालत कुछ कारणों पर विचार करती है, जो हिंदू विवाह अधिनियम के द्वारा तय किए गए है और कपल को तलाक लेने के कारण को सही पाते हैं.
तलाक की मांग को लेकर फैमिली कोर्ट में आए दंपत्ति को जब जज नीलिमा सिंह ने सात फेरों के सात वचन पढ़ने को दिया तो दोनों भावुक हो गए और तलाक की मांग वापस लेते हुए साथ रहने को राजी हो गए.
वैवाहिक रिश्ते को समाप्त करने के लिए तलाक लेने की प्रक्रिया है. सहमति से तलाक पाने के लिए पति-पत्नी दोनों में से किसी एक को परिवारिक न्यायालय (Family Court) में वाद दायर करनी होती है.
तलाक से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह किसी तरह कॉन्ट्रेक्ट नहीं है जिसे दोनों पक्ष अपनी सहमति से तोड़ना चाहते हैं.
Punjab And Haryana High Court ने Working Women पर शक के नजरिए देखनेवालों के प्रति बड़ी टिप्पणी की है. उच्च न्यायालय ने कहा, घर से बाहर कामकाजी महिलाएं Adulterous Life जीवन जी रही हैं, ऐसी धारणा निंदनीय है.
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने एक महिला को गर्भ समाप्त कराने की इजाजत देते हुए कहा कि तलाक पाने का इंतजार कर रही महिलाओं की चुनौती, तलाक पा चुकी महिलाओं से कम नहीं है. हाईकोर्ट ने मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी के तहत महिला को 28 सप्ताह के गर्भ को समाप्त करने की अनुमति दी है.
कर्नाटक हाईकोर्ट की महिला जस्टिस ने पत्नी को गुजारा भत्ता की मांग का आखिरी मौका देते हुए कहा वह एक उचित गुजारा भत्ता की मांग करें. वहीं छह लाख रूपये महीने गुजारा भत्ता की मांग को अदालत ने न्यायिक प्रक्रिया का दुरूपयोग बताया.
भारतीय न्याय संहिता की धारा 63 बलात्कार के अपराध की व्याख्या करती है. साथ ही बीएनएस की धारा 63 किन परिस्थितियों में किसी महिला के साथ शारीरिक संबंध बनाना बलात्कार माना जाएगा की पुष्टि करती है.
. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि मुस्लिम महिलाएं अपराधिक प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत अपने पति से गुजारा भत्ता पाने का अधिकार रखती है.
पति की दोषसिद्धी के आधार पर तलाक देने का कोई प्रावधान नहीं है लेकिन अदालत ने इन परिस्थितियों में पति के साथ रहना पत्नी के लिए मानसिक क्रूरता के बराबर पाया, जो उसे तलाक लेने की मंजूरी देता है. अंतत: मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने पत्नी को तलाक की इजाजत दे दी.
'स्लीप डिवोर्स' का सीधा सा मतलब है कि पार्टनर एक साथ सोने के बजाय अलग-अलग कमरे में सोना पसंद करते हैं. ये तरीका तब अपनाई जाती है, जब कपल को साथ सोने में परेशानी आती है.
सुप्रीम कोर्ट ने स्त्रीधन के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने किसी महिला द्वारा ब्याह में लाई गई संपत्ति पर उसके पति का हक होने से इंकार किया है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने पति की तलाक की मांग को खारिज करते हुए उसके आरोपों को पत्नी के साथ मानसिक क्रूरता बताया. पति ने पत्नी पर विवाह से बाहर जाकर संबंध बनाने के आरोप लगाते हुए बच्चे का पितृत्व स्वीकार करने से इंकार किया था.
अदालत ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर एक महिला को तलाक लेने की इजाजत दी.
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पर्सनल लॉ के तहत दूसरी शादी कर लेता है, तब भी वो अपनी पहली पत्नी की देखभाल और रख-रखाव के लिए बाध्य रहेगा...
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस कुमार और जस्टिस बजनथरी की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत इन परिस्थितियों में तलाक नहीं लिया जा सकता है।
हाल ही में, मुंबई के एक कोर्ट ने एक डिवोर्स सेटलमेंट हेतु सुनवाई के दौरान यह कहा है कि टूटे रिश्तों से हुए भावनात्मक घाटे की भरपाई और एक खुशहाल जीवन के लिए पालतू जानवर रखना जरूरी है.
तलाक के बाद एक पत्नी बिना काम किये, सिर्फ अपने पति द्वारा मिलने वाले मेंटेनेन्स पर निर्भर नहीं रह सकती है- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कही ये बात
आखिर कौन थी ये शाह बानो जिसने अपने पति के खिलाफ केस लड़ा, आइये जानते है
एक याचिका को खारिज करते हुए इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने यह कहा है कि यदि शुरू में एक पत्नी ने गुजारा भत्ता नहीं मांगा है, तो ऐसा कोई नियम नहीं है कि परिस्थितियों के बदलने के बाद वो इसके लिए दोबारा आवेदन नहीं कर सकती...
अपनी पत्नी के साथ विवाद में खुद अपनी पैरवी कर रहे आरोपी ने दावा किया कि उसे अदालत से न्याय नहीं मिल रहा है.
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा 125 के अनुसार भरण पोषण का एक धर्मनिरपेक्ष (Secular) नियम है.
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
एक कोर्ट ने हाल ही में यह फैसला सुनाया है कि महिला की कमाई अगर पति से ज्यादा है, तो उन्हें तलाक के बाद मेन्टेनेंस नहीं मिलेगी. आइए इस बारे में सबकुछ जानते हैं
पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता है.
कुटुम्ब न्यायालय की अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश प्रवीणा व्यास ने 25 अप्रैल को पारित आदेश में कहा,‘‘बालिका की उम्र 10 साल है और वह युवावस्था की ओर अग्रसर है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शादी का जारी रहना असंभव होने की स्थिति (irretrievable breakdown of marriage) में सुप्रीम कोर्ट सीधे अपनी तरफ से तलाक का आदेश दे सकता है.
जब किसी पेरेंट का तलाक होता है तो बच्चों को बहुत परेशानी होती है. तब अदालत देखती है कि बच्चे की कस्टडी किसे दी जाए माता को या पिता को कुछ ऐसे ही मामले पर सुनवाई चल रही थी दिल्ली हाई कोर्ट में.
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पति को क्रूरता के आधार पर दिए तलाक के आदेश को चुनौती देते वाली पत्नी की अपील को खारिज कर दिया है.हाईकोर्ट ने कहा कि रिश्तों में ऐसी स्थिती में तलाक की डिक्री देने से इंकार करना दोनो पक्षकारों के लिए विनाशकारी होगा.
मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 के अनुसार, पति या पत्नी एक दूसरे को तलाक दे सकते है. इसका ज्यादातर इस्तेमाल तब किया जा सकता है जब पति और पत्नी को लगता है कि वे एक साथ नहीं रह सकते है, तो वे अदालत में इस अधिनियम के तहत तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.
शादी के बाद जब पति पत्नी के बीच ताल मेल नहीं बैठ पाता तो वो कानून का सहारा लेते हैं. ताकि अलग होकर वो अपनी मर्जी से अपना जीवन जी सकें. कानूनी भाषा में इसे तलाक लेना कहते हैं. तलाक लेने और देने के लिए भी अदालत वजह मांगती है. बिना कोई ठोस कारण कोई किसी को तलाक नहीं दे सकता है.