हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने तलाक मामलों की सुनवाई करते हुए एक व्यक्ति को अपनी पत्नी को अंतरिम तौर पर डेढ़ लाख रूपये महीना गुजारा भत्ता देने का आदेश दिया है. फैसले पर विचार करने के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि तलाक मामले के लंबित रहने के दौरान पत्नी को ससुराल में मिले लाइफस्टाइल को मेंटेन करने का अधिकार है. अदालत ने कहा कि महिला को ससुराल में अच्छी जीवन शैली की आदत रही है, ऐसे में जब तक तलाक का मामला लंबित है उस समय तक महिला को उस स्तर की लाइफस्टाइल मेंटेन करने का हक है. सुप्रीम कोर्ट ने ये फैसला मद्रास हाईकोर्ट के 80 हजार रूपये के गुजारा भत्ता की राशि को खारिज करते हुए दिया है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस विक्रम नाथ और जस्टिस प्रसन्ना वी वराले की पीठ ने मामले की सुनवाई की है. अदालत ने कहा कि गुजारा भत्ता देने का उद्देश्य केवल लेना नहीं है, बल्कि उससे रोजमर्रा की जरूरतें भी पूरी होनी चाहिए. ऐसा नहीं हो कि महिला को गुजारा भत्ता तो मिल रहा हो लेकिन जरूरत की चीजों के लिए उसे भटकना पड़ रहा हो. रिकॉर्ड पर रखे सबूतों पर गौर करते हुए अदालत ने पाया कि शादी के बाद महिला ने जॉब छोड़ दी थी. इस आधार पर अदालत ने फैमिली कोर्ट के गुजारा भत्ता की राशि को वापस से बहाल करते हुए 1,75,000 रूपये अंतरिम गुजारा भत्ता देने के निर्देश दिए हैं.
कपल की शादी साल 2008 में ईसाई रीति-रिवाजों के साथ हुई थी. ये पति की दूसरी शादी थी, उसे पहली पत्नी से एक बेटा भी था. साल 2019 में पति ने तलाक के लिए फैमिली कोर्ट का दरवाजा खटखटाया तो पत्नी ने अंतरिम मेंटनेंस के तौर पर 2,50,000 रूपये की मांग की. पत्नी ने दावा किया कि पति मेडिकल प्रैक्टिस करता है, उसे मकान किराये और कुछ अन्य व्यवसाय से अच्छी आमद होती है.
दोनों पक्षों को सुनने के बाद फैमिली कोर्ट ने 1,75,000 रूपये गुजारा भत्ता तय किया. फैसले को पति ने मद्रास हाईकोर्ट में चुनौती दिया, तब मद्रास हाईकोर्ट ने अंतरिम गुजारा भत्ता राशि में संशोधन करते हुए 80,000 रूपये कर दिया था, जिसके खिलाफ पत्नी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया. सुप्रीम कोर्ट ने पति की संपत्ति व आय पर गौर करते हुए पत्नी के सम्मानित जीवन के अधिकार को देखते हुए वापस से फैमिली कोर्ट द्वारा तय की गई गुजारा भत्ते की राशि को बहाल कर दिया.