क्या मनपसंद व्यक्ति से शादी करना 'संवैधानिक अधिकार' है?
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि मनपसंद व्यक्ति से शादी करना संवैधानिक अधिकार है और इसे किसी भी तरह से कमजोर नहीं किया जा सकता.
दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा है कि मनपसंद व्यक्ति से शादी करना संवैधानिक अधिकार है और इसे किसी भी तरह से कमजोर नहीं किया जा सकता.
सुप्रीम कोर्ट ने भी हाल ही में टिप्पणी की है कि सभी बालिग लोगों को अपने पसंद की व्यक्ति से शादी करने का पूरा अधिकार है, अपनी मर्जी से विवाह करना संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत मिला अधिकार है.
केरल हाईकोर्ट ने स्पष्ट कहा कि अदालत व्यक्ति के दूसरी शादी को कानून वैध नहीं मानती है, लेकिन दूसरी शादी से हुए तीन बच्चों के अधिकार को भी नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है.
बॉम्बे हाईकोर्ट ने बलात्कार मामले में आरोपी को अग्रिम जमानत देते हुए टिप्पणी किया कि विवाहित महिला यह दावा नहीं कर सकती कि शादी का झूठा वादा कर उसका रेप किया गया है.
बालिग होने तक या अठारह साल से कम उम्र के बच्चे की कानूनी गार्जियनशिप सौंपने को कस्टडी कहा जाता है. भारत में अलग-अलग धर्मों में बच्चे की कस्टडी को लेकर अलग प्रावधान है. हिंदू धर्म में हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के अनुसार बच्चों की कस्टडी माता-पिता को मिलती है.
वैवाहिक रिश्ते को समाप्त करने के लिए तलाक लेने की प्रक्रिया है. सहमति से तलाक पाने के लिए पति-पत्नी दोनों में से किसी एक को परिवारिक न्यायालय (Family Court) में वाद दायर करनी होती है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दंपत्ति की तलाक की मांग खारिज करते हुए कहा कि हिंदू विवाह कोई अनुबंध (Contract) नहीं है, जिसे दोनों पक्ष सहमति से समाप्त कर लें. अदालत ने यहां तक कहा कि अगर दोनों में से किसी एक पर नपुंसक (Sterile) होने का आरोप है तो उसे अदालत प्रमाण के आधार पर तलाक की इजाजत देगा.
तलाक से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि हिंदू विवाह किसी तरह कॉन्ट्रेक्ट नहीं है जिसे दोनों पक्ष अपनी सहमति से तोड़ना चाहते हैं.
कर्नाटक हाईकोर्ट के सामने एक ऐसा मामला है जिसमें एक महिला ने पिछले दस साल में दस लोगों के खिलाफ दुष्कर्म व शादी का झूठा वादा करके संबंध बनाने का आरोप लगाकर मुकदमा दर्ज कराया है.अदालत ने हैरानी जताते हुए इसे धोखाधड़ी की एक दशक पुरानी गाथा कहा और पुलिस महानिदेशक को महिला की तस्वीर सभी पुलिस स्टेशन में भेजने के निर्देश दिए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री पारित होने के बाद एक वर्ष या उससे अधिक की समय के लिए पति-पत्नी के बीच दाम्पत्य अधिकारों (Conjugal Rights) को पुर्नस्थापित नहीं की गई है, तो इस आधार पर तलाक की मांग की जा सकती है.
जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट ने कहा कि पति द्वारा तीन बार तलाक (तलाक का एक रूप) शब्द का उच्चारण करना मुस्लिम विवाह को समाप्त करने या अपनी पत्नी को भरण-पोषण करने के कर्तव्य जैसे दायित्वों से बचने के लिए पर्याप्त नहीं है.
हाल ही में कर्नाटक हाईकोर्ट ने पॉक्सो (POCSO) अधिनियम के तहत गिरफ्तार हुए 23 वर्षीय आरोपी व्यक्ति को रेप पीड़िता से शादी करने के लिए 16 दिनों की जमानत दी है.
केरल हाईकोर्ट ने कहा कि माता-पिता का प्रेम और चिंता बालिग बच्चे के साथी चुनने के अधिकार को सीमित नहीं कर सकती है. अदालत ने कहा, माता-पिता का प्रेम या चिंता एक बालिग के विवाह के लिए साथी चुनने के अधिकार को बाधित नहीं कर सकती है.
दहेज से जुड़े विवाद की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने बड़ी महत्वपूर्ण टिप्पणी करते हुए कहा कि दहेज निषेध नियम के अनुसार, शादी के दौरान मिले गिफ्ट को दहेज नहीं माना जाएगा लेकिन इन कपल को मिले गिफ्ट की सूची बनाकर उस पर हस्ताक्षर करनी होगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार वैध विवाह के लिए सिर्फ मैरिज सर्टिफिकेट पर्याप्त नहीं है. बल्कि विवाह की वैधता के लिए शादी समरोह और रीति -रिवाजों का पालन भी आवश्यक है.
इलाहाबाद उच्च न्यायालय ने हाल ही में कहा कि ‘कन्यादान’ एक वैध हिंदू विवाह के लिए एक जरूरी रस्म नहीं है. जस्टिस सुभाष विद्यार्थी की बेंच ने हिंदू विवाह अधिनियम, 1955 की धारा 7 (हिंदू विवाह के लिए रस्म) का हवाला देने के बाद एक आदेश में यह टिप्पणी की.
राजस्थान उच्च न्यायालय ने एक व्यक्ति की याचिका रद्द कर दी जिसमें उसने तीन लोगों पर अपहरण कर पत्नी के साथ जबरदस्ती संबंध के आरोप लगाया था. पत्नी के बयान के बाद कोर्ट ने पति की याचिका खारिज की. आइये जानते हैं कि पत्नी ने ऐसा क्या कहा कि पति के खिलाफ फैसला सुनाया.
सुप्रीम कोर्ट ने विवाहित महिला द्वारा दायर दुष्कर्म के मामले को खारिज किया है. कोर्ट ने पाया कि आरोपी द्वारा वादे से मुकरने के बाद महिला ने यह प्राथमिकी दर्ज कराई है.
Divorce Case: अगर पति बिना किसी पर्याप्त कारण के पत्नी को अलग रखना चाहता है और पत्नी इसका विरोध कर रही है तो ये क्रूरता नहीं है.
Supreme Court Verdict On Same Sex Marriage: CJI चंद्रचूड़ ने कहा कि सभी को अपना जीवनसाथी चुनने का अधिकार है.
Divorce Case: सप्तपदी एक अनुष्ठान है जहां हिंदू विवाह समारोह के दौरान दूल्हा और दुल्हन एक साथ पवित्र अग्नि (हवन) के चारों ओर सात फेरे लेते हैं.
हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक देने की शक्ति का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट कर सकता है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन सिंह की अदालत ने हालिया आदेश में कहा, ‘‘मौजूदा मामले में बलात्कार का अपराध नहीं बनता है क्योंकि आरोपी और पीड़िता कानूनी रूप से विवाहित हैं।’’
एक मामले में सुनवाई के दौरान कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) का यह कहना है कि एक पति यदि अपनी पत्नी को इसलिए अपमानित करता है क्योंकि उसकी त्वचा का रंग काला है, तो इसे क्रूरता माना जाएगा...
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पर्सनल लॉ के तहत दूसरी शादी कर लेता है, तब भी वो अपनी पहली पत्नी की देखभाल और रख-रखाव के लिए बाध्य रहेगा...
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस कुमार और जस्टिस बजनथरी की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत इन परिस्थितियों में तलाक नहीं लिया जा सकता है।
एक भारतीय होकर आप किसी विदेशी महिला या पुरुष से शादी करना चाहते हैं तो आप यह कैसे कर सकते हैं? विदेशी से शादी करने का संविधान में क्या प्रावधान है, इस शादी को किस तरह कानूनी वैधता मिलेगी, जानिए..
सरला मुद्गल और अन्य के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मुद्दे की विस्तार से जांच की गई थी । इसने कानून को हराने के लिए धर्म बदलने वाले लोगों के अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों के बारे में अस्पष्टता का समाधान किया।
क्या देश में 'एज ऑफ कन्सेंट' और 'एज ऑफ मैरिज' अलग होनी चाहिए? इससे जुड़ा एक मामला बंबई उच्च न्यायालय में आया जहां उन्होंने इसपर अपने विचार व्यक्त किये हैं.
हिंदू धर्म में विवाह का बहुत महत्व है और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शून्य विवाह (वॉइड मैरेज) और शून्यकरणीय विवाह (वॉइडेबल मैरेज) के बारे में बात की गई है। दोनों में अंतर क्या है, आइए जानते हैं
महिला ने पति के खिलाफ शारीरिक संबंध न बनाने पर किया मुकदमा और तलाक की भी मांग की। ब्रह्मकुमारी समाज से कैसे जुड़ा है यह मामला, जानिए
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के आने के बाद से विधवा महिलाओं के विवाह को न सिर्फ कानूनी मान्यता मिली बल्कि इसके कारण ही इस प्रकार के विवाहों को सामाजिक मान्यता भी मिलने लगी.
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
कानून के तहत भी अब माना जाता है कि जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.
पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता है.
राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों पर नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंपने के शीर्ष अदालत के आदेश को नकारने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के बाद इसकी आशंका पैदा हुई.