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हिंदू विवाह कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं, जिसे दोनों पक्ष मनमर्जी से समाप्त कर दें: इलाहाबाद हाईकोर्ट

इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दंपत्ति की तलाक की मांग खारिज करते हुए कहा कि हिंदू विवाह कोई अनुबंध (Contract) नहीं है, जिसे दोनों पक्ष सहमति से समाप्त कर लें. अदालत ने यहां तक कहा कि अगर दोनों में से किसी एक पर नपुंसक (Sterile) होने का आरोप है तो उसे अदालत प्रमाण के आधार पर तलाक की इजाजत देगा.

हिंदू विवाह (सांकेतिक चित्र)

Written by Satyam Kumar |Published : September 17, 2024 2:21 PM IST

Allahabad High Court: हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक दंपत्ति की तलाक की मांग खारिज करते हुए कहा कि हिंदू विवाह कोई अनुबंध (Contract) नहीं है, जिसे दोनों पक्ष सहमति से समाप्त कर लें. अदालत ने यहां तक कहा कि अगर दोनों में से किसी एक पर नपुंसक (Sterile) होने का आरोप है तो उसे अदालत प्रमाण के आधार पर तलाक की इजाजत देगा. अदालत ने ये बात पत्नी विवाह विच्छेद के ट्रायल कोर्ट के फैसले के खिलाफ अपील को स्वीकार करते हुई कही. मामले में पत्नी ने पहले पति को विवाह तोड़ने को लेकर संबंध जताई थी और बाद में तलाक देने से इंकार कर दिया था.

हिंदू विवाह कोई अनुबंध नहीं?

इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस एसडी सिंह तथा जस्टिस डोनादी रमेश की खंडपीठ ने पत्नी की अपील स्वीकार करते हुए विवाह विच्छेद के फैसले को खारिज कर दिया है. अदालत ने कहा कि हिंदू रीति-रिवाजों से हुए विवाह कोई कॉन्ट्रैक्ट नहीं होते है जिसे दोनों पक्ष अपनी मनमर्जी के जब चाहे समाप्त कर सकते हैं. विवाह विच्छेद के कुछ ठोस कारण होने चाहिए. हाईकोर्ट ने कहा कि ट्रायल कोर्ट को मामले में गुण दोष पर विचार करना चाहिए था और पत्नी की आपत्ति का ख्याल रखना चाहिए था.

पूरा मामला क्या है?

अपीलार्थी पत्नी की शादी सैनिक पुष्पेन्द्र कुमार से साल 2006 में हुई थी. शादी के जब पत्नी को बच्चा होनेवाला था तो वह घर आ गई, जिसके बाद पति ने तलाक की मांग करते हुए विवाद विच्छेद को लेकर वाद दायर किया. मामला में पहले पत्नी ने पति को सहमति से तलाक की इजाजत दी थी. यह वाद अदालत के सामने तीन साल तक लंबित रहा और पति-पत्नी के बीच मिडिएशन भी विफल रहा. इस दौरान कपल को दूसरा बच्चा हुआ, जिसके बाद महिला ने वैवाहिक संबंध तोड़ने से इंकार कर दिया. ट्रायल कोर्ट ने पति की आपत्ति पर विवाह खारिज करने के आदेश पारित किया था. पत्नी ने इसी फैसले को इलाहाबाद हाईकोर्ट में चुनौती दी थी, जिसे अदालत स्वीकार करते हुए विवाह खारिज करने के फैसले को रद्द कर दिया है.

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