'शादी के प्रलोभन पर 16 साल तक यौन संबंध बनाने का दावा विश्वसनीय नहीं'
सुप्रीम कोर्ट ने यह पाते हुए कार्यवाही को रद्द किया कि 16 वर्षों तक एक शिक्षित महिला ने बिना किसी विरोध के संबंध बनाए रखा, जिससे यह विश्वास करना कठिन है कि यह धोखे पर आधारित था.
सुप्रीम कोर्ट ने यह पाते हुए कार्यवाही को रद्द किया कि 16 वर्षों तक एक शिक्षित महिला ने बिना किसी विरोध के संबंध बनाए रखा, जिससे यह विश्वास करना कठिन है कि यह धोखे पर आधारित था.
Uniform Civil Code: याचिकाकर्ताओं ने उत्तराखंड हाई कोर्ट में दावा किया कि लिव इन रिलेशनशिप का अनिवार्य रजिस्ट्रेशन, निजता के अधिकार का उल्लंघन करते हैं. वहीं सरकार ने दावा किया कि यूसीसी लिव-इन रिलेशनशिप को नियंत्रित करती है, न कि प्रतिबंधित करती है, बच्चों के लिए वैधता सुनिश्चित करती है.
Uttarakhand Uniform Civil code पोर्टल ओपन हो चुका है, जहां राज्य के लोग अपने मैरिज, लिव इन रिलेशनशिप और तलाक प्रोसेस का रजिस्ट्रेशन आसानी से कर सकेंगे. आइये जानते हैं पूरी प्रक्रिया...
Live In Relationship में रह रहे कपल के लिए रजिस्ट्रेशन पोर्टल बनाने के निर्देश देते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा कि लिव-इन संबंधों में महिला की स्थिति पत्नी के समान नहीं होती है और ना ही उन्हें सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त नहीं होती है. इस प्रकार के संबंधों के लिए एक सक्षम प्राधिकरण या ट्रिब्यूनल की आवश्यकता है, जिसे सरकार द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशन को समाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, इसमें अगर कोई भी लड़का या लड़की इस संबंध में संलिप्त होकर अपने दायित्व से बचते हैं.
याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशन को समाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, इसमें अगर कोई भी लड़का या लड़की इस संबंध में संलिप्त होकर अपने दायित्व से बचते हैं.
लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि दहेज हत्या के मामले में आरोपी बनाने के लिए ये दिखाना पर्याप्त है कि महिला और पुरूष उस समय पति-पत्नी के तौर पर साथ रह रहे थे.
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने ये फैसला उन मामले पर आया है जिसमें अदालत ये विचार कर रही थी कि क्या किसी शख्स की वैवाहिक स्थिति जाने बिना एक साथ रह रहे कपल को सुरक्षा दी जा सकती है या नहीं. अब पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में रहनेवाले शादीशुदा कपल को भी सुरक्षा का अधिकार है.
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे शादीशुदा कपल को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. अपने फैसले में अदालत ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल को सुरक्षा पाने का अधिकार है. इनमें वे कपल भी शामिल है जो पहले से शादीशुदा हैं.
भारत में लिव इन रिलेशनशिप को लेकर महिलाओं के क्या अधिकार है. क्या वे साथी से भरण-पोषण की पात्रता रखती है? साथ ही लिव इन रिलेशनशिप को किन परिस्थितियों में वैधता मिलेगी? आइये जानते हैं इन सवालों के जवाब
मद्रास हाईकोर्ट ने बताया कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल्स में से कोई एक अगर विवाहित है, तो वे अपने लिव-इन-पार्टनर की संपत्ति में दावा नहीं कर सकते हैं. साथ ही विवाहेत्तर संबंध को लिव इन कहना आपत्तिजनक है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम युवक द्वारा हिंदू युवती के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने देने की मांग को मानने से इंकार किया है. कोर्ट ने हिंदू युवती को पैरेंट्स के पास भेज दिया गया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहनेवाले कपल्स को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. कोर्ट ने गैरकानूनी धर्म परिवर्तन रोकथाम कानून, 2021 अलग धर्म में शादी करने के मामलों के साथ-साथ लिव-इन में रहनेवाले कपल्स पर भी लागू होने की बात कहींं.
उत्तराखंड UCC में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले जोड़ो को रजिस्ट्रेशन कराने के निर्देश के साथ इससे जुड़ी अन्य कानूनी पहलुओं पर भी जोड़ दिया गया है. जाने क्या है इस नियम से जुड़ी सभी बातें...
यूसीसी बिल 2024 उत्तराखंड में सामाजिक सुधार और महिलाओं के अधिकारों सहित कई समाजिक और धार्मिक मुद्दे पर चर्चा है. जानें यूसीसी 2024 की खास बातें...
मामले में एक व्यक्ति हैबियस कॉर्पस के माध्यम से लिव-इन- रिलेशनशिप दावा करते हुए याचिका दायर की . जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करने के साथ-साथ 25000 जुर्माना भी लगाया.
Bigamy News: आईपीसी की धारा 494 के तहत द्विविवाह दंडनीय है और जुर्माने के साथ अधिकतम सात साल की सजा हो सकती है.
अदालत ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि कोर्ट की टिप्पणी का कोई गलत मतलब न निकाला जाए. इसके साथ ही Police प्रोटेक्शन देने की मांग वाली कपल की याचिका खारिज कर दी.
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Live In Relationship में रह रहे कपल के लिए रजिस्ट्रेशन पोर्टल बनाने के निर्देश देते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा कि लिव-इन संबंधों में महिला की स्थिति पत्नी के समान नहीं होती है और ना ही उन्हें सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त नहीं होती है. इस प्रकार के संबंधों के लिए एक सक्षम प्राधिकरण या ट्रिब्यूनल की आवश्यकता है, जिसे सरकार द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए.
याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशन को समाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, इसमें अगर कोई भी लड़का या लड़की इस संबंध में संलिप्त होकर अपने दायित्व से बचते हैं.
लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि दहेज हत्या के मामले में आरोपी बनाने के लिए ये दिखाना पर्याप्त है कि महिला और पुरूष उस समय पति-पत्नी के तौर पर साथ रह रहे थे.
पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट ने लिव इन रिलेशनशिप में रह रहे शादीशुदा कपल को लेकर बड़ा फैसला सुनाया है. अपने फैसले में अदालत ने कहा कि लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाले कपल को सुरक्षा पाने का अधिकार है. इनमें वे कपल भी शामिल है जो पहले से शादीशुदा हैं.
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इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मुस्लिम युवक द्वारा हिंदू युवती के साथ लिव इन रिलेशनशिप में रहने देने की मांग को मानने से इंकार किया है. कोर्ट ने हिंदू युवती को पैरेंट्स के पास भेज दिया गया है.
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मामले में एक व्यक्ति हैबियस कॉर्पस के माध्यम से लिव-इन- रिलेशनशिप दावा करते हुए याचिका दायर की . जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज करने के साथ-साथ 25000 जुर्माना भी लगाया.
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अदालत ने ये भी स्पष्ट कर दिया कि कोर्ट की टिप्पणी का कोई गलत मतलब न निकाला जाए. इसके साथ ही Police प्रोटेक्शन देने की मांग वाली कपल की याचिका खारिज कर दी.
अधिनियम की धारा 8 में धर्म परिवर्तन से पहले घोषणा करने का प्रावधान है. वहीं धारा 9 में धर्म परिवर्तन के बाद घोषणा का प्रावधान है.
भारत में यदि एक कपल लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहा है और उनके घर में एक बच्चे का जन्म होता है, तो क्या उस बच्चे का पैतृक संपत्ति पर अधिकार होगा? जानें सुप्रीम कोर्ट ने केरल उच्च न्यायालय के फैसले को पलटकर क्या कहा...
हिंदू महिला की मां को यह लिव-इन रिलेशनशिप नामंजूर था. कपल के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज किया गया था.
मामले की सुनवाई करते हुए खंडपीठ ने कहा कि अगर कोई दो कपल आपसी समझौते के आधार पर साथ रहते हैं तो इसका अर्थ ये नहीं है की वो विवाह अधिनियम के दायरे में आ जाएगें. ऐसे जोड़ों का साथ रहना विवाह नहीं है और न ही ऐसे में वो तलाक़ की मांग भी नहीं कर सकते है.
सुप्रीम कोर्ट ने यह पाते हुए कार्यवाही को रद्द किया कि 16 वर्षों तक एक शिक्षित महिला ने बिना किसी विरोध के संबंध बनाए रखा, जिससे यह विश्वास करना कठिन है कि यह धोखे पर आधारित था.
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याचिकाकर्ता को जमानत देते हुए इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा कि लिव-इन-रिलेशन को समाजिक स्वीकृति नहीं मिली है, इसमें अगर कोई भी लड़का या लड़की इस संबंध में संलिप्त होकर अपने दायित्व से बचते हैं.