Live In Relatioship Laws In India: हाल ही में भारत में लिव इन रिलेशनशिप से जुड़ी कई समस्या भारतीय अदालतों में आ रही है. अभी कुछ दिन पहले ही मद्रास हाईकोर्ट ने एक मैरिड व्यक्ति को लिव इन पार्टनर की संपत्ति का हक देने से मना किया. साथ ही इस रिश्ते को कानूनन वैधता देने से मना कर दिया है. अब ऐसे मामले बढ़ रहे हैं.
लिव इन रिलेशनशिप, एक ऐसी व्यवस्था जिसमें पुरूष और महिला दोनों साथ-साथ बिना विवाह के रह सकते हैं. इसमें दोनों की आपसी सहमति हैं. अब ऐसी प्रथा का प्रचलन धीरे-धीरे बढ़ रहा है, तो कानून को इनसे उत्पन्न होने वाली परेशानियों का निदान भी करना होगा.
कानून अभी तक नहीं बना है. सुप्रीम कोर्ट एवं कई हाईकोर्ट ने इसे लेकर फैसले सुनाए हैं, जो आपको इस मामले की जटिलताओं को समझने में मदद करेगी. लेकिन लिव-इन का जिक्र घेरलु हिंसा अधिनियम, 2005 की धारा 2(f) में आता है. परिभाषा भी दी गई है. साथ ही लोग इस नियम के तहत लोग राहत भी ले सकते हैं.
घरेलु हिंसा अधिनियम, 2005 के अनुसार लिव इन की परिभाषा,
दो लोग, जो आपसी सहमति से साथ में रहें या रह रहे हैं, वो एक कुटुंब के रूप में साथ रह रहें हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा शर्मा बनाम वीएवी शर्मा, 2013 के मामले में लिव इन रिलेशनशिप से जुड़ी गाइडलाइन्स को जारी किया. सुप्रीम कोर्ट ने लिव इन को वैध बनाने वाली शर्ते स्पष्ट होती है.
लिव-इन को वैध बनाने वाली शर्तें:
1) एक अवधि के लिए पूरी तरह साथ रहना: सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के अनुसार, कपल को पूरी तरह साथ में रहना आवश्यक है. ऐसा नहीं हो सकता कि दोनों पार्टी में से कोई एक पहर साथ में रहे, तो दूसरे पहल अलग. कितने समय तक ऐसे साथ रहना, इसे लेकर कोई समय-सीमा नहीं है.
2) एक घर में एक साथ रहें: एक समय में साथ रहने वाले लोग को एक ही घर में रहना आवश्यक है. दोनों का ठिकाना एक जगह, एक ही छत के नीचे होना चाहिए (यहां आशय बहुमंजिला इमारत अपार्टमेंट सिस्टम से नहीं, बल्कि एक कमरे से हैं).
3) एक ही घर के एक ही वस्तुएं: दोनों पार्टी का घर के वस्तुओं का समान रूप से प्रयोग कर रहे हों. जैसे कि पति-पत्नी करते हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने इस बिंदु पर भी अपना निर्णय सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने चनमुनिया बनाम वीरेंद्र कुमार सिंह कुशवाहा मामले में साफ कहा है कि लिव -इन में रहने वाली महिला को भरण-पोषण का अधिकार है. उन्हें ये अधिकार दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 125 के तहत मिली है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"कोई व्यक्ति लिव-इन में रहने वाली महिला भरण-पोषण देने से इंकार नहीं कर सकता है. वो भी इस आधार पर कि उसने उससे विवाह नहीं किया है,"
अर्थ है कि दोनों पार्टी, एक पति-पत्नी की भांति लिव इन में रहे हैं, तो महिला दंड़ प्रक्रिया संहिता की धारा 125 के तहत भरण-पोषण की मांग कर सकती है.
लिव-इन रिलेशनशिप में आने वाले समय में बच्चों की कस्टडी, संपत्ति पर अधिकार एवं अन्य चुनौतियों को लेकर my-lord.in चर्चा की जाएगी.