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इस राज्य में अब चोरी छिपे Live In Relationship में नहीं रह पाएंगे कपल, हाई कोर्ट ने सरकार को Registration Portal बनाने के दिए आदेश

Live In Relationship में रह रहे कपल के लिए रजिस्ट्रेशन पोर्टल बनाने के निर्देश देते हुए राजस्थान हाई कोर्ट ने कहा कि लिव-इन संबंधों में महिला की स्थिति पत्नी के समान नहीं होती है और ना ही उन्हें सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त नहीं होती है. इस प्रकार के संबंधों के लिए एक सक्षम प्राधिकरण या ट्रिब्यूनल की आवश्यकता है, जिसे सरकार द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए.

राजस्थान हाई कोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : January 30, 2025 11:17 AM IST

लिव इन रिलेशनशिप को कानूनन अवैध नहीं है, लेकिन साथ में रहने वाले जोड़ो को अलग होने के होने के दौरान किसी तरह के दावे के लिए अदालतों का चक्कर लगाना पड़ता है. साथ ही दोनों में से कोई भी मुकर गया, तो अदालत में शादी के झूठे वादे पर संबंध बनाना, रेप और अबॉर्शन का मुकदमा दर्ज कराया जा सकता है. लिव इन रिलेशनशिप को लेकर कई हाई कोर्ट ने चिंता जताई हैं, अदालत भी कई मौके पर इसे समाजिक व नैतिक मूल्यों के खिलाफ पाया है.

Live In Couple के लिए रजिस्ट्रेशन पोर्टल बनाए

आज राजस्थान हाई कोर्ट ने राज्य सरकार को निर्देश दिया कि वे जल्द से जल्द एक रजिस्ट्रेशन पोर्टल बनाए, जिसमें लिव-इन-रिलेशनशिप में रहनेवाले कपल अपना पंजीकरण करा सके. जस्टिस अनुप ढूंढ़ की सिंगल-जज बेंच लिव इन कपल से जुड़ी उन याचिकाओं पर सुनवाई कर रही थी, जिसमें उन्होंने सुरक्षा की मांग की थी. जस्टिस अनूप ढूंढ ने कहा कि लिव-इन संबंधों आकर्षक हो सकते है, लेकिन इससे उत्पन्न होने वाली समस्याएं गंभीर हैं. अदालत ने यह भी बताया कि कई जोड़े अपने परिवारों और समाज से अस्वीकृति के कारण खतरे का सामना कर रहे हैं. ऐसे जोड़े संविधान के अनुच्छेद 226 के तहत याचिकाएँ दायर कर रहे हैं.

अदालत ने मुख्य सचिव और विधि एवं न्याय विभाग के प्रमुख सचिव को इस मामले पर ध्यान देने और आवश्यक कदम उठाने का निर्देश दिया है. इसके अलावा, उन्होंने 01.03.2025 तक अनुपालन रिपोर्ट प्रस्तुत करने को भी कहा है.

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जुड़ाव की समस्याओं के समाधान के लिए, न्यायालय ने प्रत्येक जिले में एक सक्षम प्राधिकरण स्थापित करने का सुझाव दिया. इसके साथ ही, इस मुद्दे के समाधान के लिए एक वेबसाइट या वेब पोर्टल लॉन्च करने का भी निर्देश दिया, जिसमें कपल अपना पंजीकरण करा सके.

महिला ना ही पत्नी का दर्जा, ना समाजिक स्वीकृति

जस्टिस अनूप ढूंढ ने कहा कि लिव-इन संबंधों में महिला की स्थिति पत्नी के समान नहीं होती है और ना ही उन्हें सामाजिक स्वीकृति भी प्राप्त नहीं होती है. इस प्रकार के संबंधों के लिए एक सक्षम प्राधिकरण या ट्रिब्यूनल की आवश्यकता है, जिसे सरकार द्वारा स्थापित किया जाना चाहिए.

वहीं , अगर शादीशुदा व्यक्ति बिना तलाक लिए लिव-इन में रह रहे है तो क्या उन्हें अदालत से तलाक पाने का अधिकार है, इस बात के फैसले के लिए सिंगल बेंच जज ने मामले को बड़ी बेंच के पास रेफर किया है.

(खबर पीटीआई इनपुट से है)