Advertisement

Live-In-Relationship में भी लागू होगा दहेज कानून, Allahabad HC ने पार्टनर की सजा को रखा बरकरार, कहा- उस समय पति-पत्नी के जैसे साथ रहना ही काफी

लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि दहेज हत्या के मामले में आरोपी बनाने के लिए ये दिखाना पर्याप्त है कि महिला और पुरूष उस समय पति-पत्नी के तौर पर साथ रह रहे थे.

लिव-इन-रिलेशनशिप (सांकेतिक चित्र) (1)

Written by My Lord Team |Published : October 8, 2024 3:12 PM IST

हाल ही में लिव-इन-रिलेशनशिप से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा कि दहेज हत्या के मामले में आरोपी बनाने के लिए ये दिखाना पर्याप्त है कि महिला और पुरूष उस समय पति-पत्नी के तौर पर साथ रह रहे थे. अदालत ने आरोपी की याचिका खारिज कर दी, जिसमें उसने आरोपों से बरी करने की मांग की थी.

इलाहाबाद हाईकोर्ट में जस्टिस राजबीर सिंह ने प्रयागराज सत्र न्यायालय के उस आदेश को चुनौती देने वाली याचिका को खारिज करते हुए यह टिप्पणी की, जिसमें दहेज हत्या के एक मामले में एक आवेदक की बरी करने की याचिका खारिज कर दी गई थी. याचिकाकर्ता कथित तौर पर मृतक महिला के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में था. याचिका में कहा गया है कि आरोपित आदेश तथ्यों और कानून के खिलाफ है और इसलिए इसे खारिज किया जाना चाहिए. आवेदक के वकील ने दावा किया कि मृतक महिला की शादी रोहित यादव नामक व्यक्ति से हुई थी और इस बात का कोई विश्वसनीय सबूत नहीं है कि उसने उससे तलाक लिया था.

वकील ने कहा कि इन तथ्यों के मद्देनजर यह नहीं कहा जा सकता कि मृतका आवेदक से कानूनी रूप से विवाहित थी, और इसलिए भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 304-बी के तहत कोई प्रथम दृष्टया मामला नहीं बनता. हालांकि, अतिरिक्त सरकारी वकील ने आवेदन का विरोध करते हुए कहा कि एफआईआर में उल्लेख किया गया है कि रोहित यादव से शादी के बाद महिला को उसके पति ने तलाक दे दिया था. बाद में उसने अदालत में आवेदक से शादी कर ली और आरोप है कि मृतका को दहेज के कारण आरोपी द्वारा परेशान किया जाता था.

Also Read

More News

याचिका को खारिज करते हुए, उच्च न्यायालय की पीठ ने कहा कि आईपीसी की धारा 304-बी और 498-ए के प्रावधानों को आकर्षित करने के लिए, यह दिखाना पर्याप्त है कि पीड़ित महिला और आरोपी व्यक्ति प्रासंगिक समय पर पति और पत्नी के रूप में रह रहे थे. इस मामले में, भले ही तर्कों के लिए यह मान लिया जाए कि मृतका कानूनी रूप से विवाहित पत्नी के दायरे में नहीं आती थी, रिकॉर्ड पर पर्याप्त सबूत हैं कि आवेदक और मृतक प्रासंगिक समय पर पति और पत्नी के रूप में एक साथ रह रहे थे.

सरकारी वकील ने कहा कि पीड़ित महिला ने आरोपी के परिसर में आत्महत्या की है. वकील ने कहा कि मृतक और आवेदक के बीच विवाह वैध था या नहीं, यह एक तथ्य का प्रश्न है जिसकी जांच केवल मुकदमे के दौरान ही की जा सकती है. उच्च न्यायालय ने कहा कि उपर्युक्त तथ्यों के मद्देनजर, आवेदक की ओर से उठाया गया तर्क कि आईपीसी की धारा 304 के तहत प्रावधान लागू नहीं होते, कोई बल नहीं रखता. इसमें कहा गया कि आपत्तिजनक आदेश के अवलोकन से पता चलता है कि ट्रायल कोर्ट ने मामले के सभी प्रासंगिक तथ्यों पर विचार किया और आवेदक द्वारा डिस्चार्ज के लिए दायर आवेदन को एक तर्कपूर्ण आदेश द्वारा खारिज कर दिया गया.

(खबर पीटीआई इनपुट के आधार पर लिखी गई है.)