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अंतरधार्मिक लिव-इन कपल को इस HC ने सुरक्षा देने से किया इंकार, कहा सुप्रीम कोर्ट भी नहीं देता बढ़ावा

हिंदू महिला की मां को यह लिव-इन रिलेशनशिप नामंजूर था. कपल के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज किया गया था.

Allahabad High Court on Live-in Relationship

Written by My Lord Team |Published : June 26, 2023 10:57 AM IST

प्रयागराज: लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले एक अंतर-धार्मिक कपल को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने सुरक्षा देने से इंकार करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट भी लिव-इन रिलेशनशिप को बढ़ावा नहीं देता. न्यायमूर्ति संगीता चंद्रा और न्यायमूर्ति नरेंद्र कुमार जौहरी की खंडपीठ इस मामले की सुनवाई कर रही थी.

क्या था मामला

खबरों के अनुसार, लिव-इन रिलेशनशिप में रह रहे 29 साल की हिंदू महिला और 30 वर्षीय मुस्लिम व्यक्ति के द्वारा सुरक्षा के लिए इलाहाबाद हाई कोर्ट में याचिका दायर की गई थी. एजेंसी से मिली जानकारी के अनुसार, याचिकाकर्ता ने यह दावा किया कि हिंदू महिला की मां को यह लिव-इन रिलेशनशिप नामंजूर था. कपल के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज किया गया था. तब से पुलिस उन्हे परेशान कर रही है.

याचिकाकर्ता कपल ने अदालत में यह तर्क दिया कि किसी भी व्यक्ति को उनके निजी जीवन में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए, इसके बावजूद पुलिस उन्हे परेशान कर रही है. लता सिंह बनाम यूपी राज्य (2006) मामले पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला देते हुए उन्होंने अदालत से सुरक्षा की गुहार लगाई.

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SC नहीं देता बढ़ावा

जानकारी के अनुसार, अदालत ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे संबंधों को भले ही एक सामाजिक वास्तविकता के रूप में स्वीकार किया हो लेकिन कभी बढ़ावा नहीं दिया. सुप्रीम कोर्ट ने जब अलग - अलग मामलों में लिव-इन संबंधों पर टिप्पणी की तो उसका भारतीय पारिवारिक जीवन के ताने-बाने को उजागर करने का कोई इरादा नहीं था और उनके द्वारा की गई टिप्पणी को ऐसे संबंधों को बढ़ावा देने वाला नहीं माना जा सकता है

हमारे देश का कानून परंपरागत रूप से विवाह के पक्ष में पक्षपाती रहा है. इसलिए विवाहित व्यक्तियों के लिए कई अधिकार और विशेषाधिकार को भी सुरक्षित रखता है.

यह एक सामाजिक समस्या

इस मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा कि हाई कोर्ट का रिट क्षेत्राधिकार, एक असाधारण क्षेत्राधिकार है जो निजी पक्षों के बीच विवादों को सुलझाने के लिए नहीं है.

कोर्ट के अनुसार, यह एक सामाजिक समस्या है, जिसे भारत के संविधान के अनुच्छेद 21 के उल्लंघन की आड़ में रिट कोर्ट के हस्तक्षेप से नहीं बल्कि सामाजिक रूप खत्म किया जा सकता है.

अदालत ने कहा कि याचिकाकर्ता इस मामले में कोर्ट के समक्ष प्रथम सूचना रिपोर्ट दायर कर सकते हैं, अगर उन्हें अपने रिश्तेदारों से जीवन पर कोई खतरा है तो.

कोर्ट ने यह भी कहा कि अगर माता-पिता या रिश्तेदारों को पता चलता है कि उनका बेटा या बेटी कम उम्र में या उनकी इच्छा के खिलाफ शादी के लिए भाग गए हैं, तो वो भी समान कदम उठाने के लिए स्वतंत्र हैं.