शादी होने से पत्नी के शरीर पर पति का स्वामित्व का नहीं हो जाता: इलाहाबाद हाई कोर्ट
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पत्नी से पूछे बिना पति द्वारा फेसबुक पर अंतरंग वीडियो अपलोड करना वैवाहिक संबंधों की पवित्रता का गंभीर उल्लंघन है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पत्नी से पूछे बिना पति द्वारा फेसबुक पर अंतरंग वीडियो अपलोड करना वैवाहिक संबंधों की पवित्रता का गंभीर उल्लंघन है.
मुंबई के बांद्रा फैमिली कोर्ट ने तलाक की अर्जी स्वीकार करते हुए युजवेन्द्र चहल और धनश्री वर्मा को पति-पत्नी होने के बंधन से मुक्त किया.
युजवेन्द्र चहल और धनश्री वर्मा को बॉम्बे हाई कोर्ट ने कूलिंग पीरियड से राहत देते हुए फैमिली कोर्ट को तलाक के मामले पर फैसला सुनाने को कहा है. आइये जानतें है कि तलाक मामले में की पूरी टाइमलाइन
हिंदू मैरिज एक्ट की धारा 13बी (i) के अनुसार, कपल को आपसी सहमति से तलाक लेने के लिए कम से कम साल भर तक अलग रहना जरूरी है. इसके अलावे आपसी सहमति से तलाक याचिका एक साथ न रहने की असमर्थता, और विवाह को समाप्त करने पर आपसी सहमति ना होने पर भी दायर की जाती है.
फैमिली कोर्ट ने चहल की मांग खारिज करते हुए कहा कि चहल ने तय शर्तों का पालन नहीं किया है. उसने तय 4.67 करोड़ की एलिमनी राशि में से केवल 2.37 करोड़ ही दिया है. वहीं, बॉम्बे हाई कोर्ट ने कूलिंग ऑफ पीरियड को माफ करते हुए फैमिली कोर्ट को तलाक मामले में फैसला सुनाने को कहा है.
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा एक जजमेंट में 'नजायज पत्नी और वफादार प्रेमिका' कहने को संविधान प्रदत गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन बताया है.
हिंदू मैरिज एक्ट, 1991 की धारा 13 तलाक लेने के कारणों को बताती है, इस सेक्शन में तीसरा उपबंध बताती है कि तलाक को मान्यता तभी दी जा सकती है जब पति-पत्नी दोनों एक दूसरे से कम-से-कम दो साल, बिना सहमति के अलग रहे.
विवाह पंजीकरण के बाद सरकार द्वारा एक विवाह प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, जिसके माध्यम से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है.
बालिग होने तक या अठारह साल से कम उम्र के बच्चे की कानूनी गार्जियनशिप सौंपने को कस्टडी कहा जाता है. भारत में अलग-अलग धर्मों में बच्चे की कस्टडी को लेकर अलग प्रावधान है. हिंदू धर्म में हिंदू अल्पसंख्यक और संरक्षकता अधिनियम, 1956 के अनुसार बच्चों की कस्टडी माता-पिता को मिलती है.
वैवाहिक रिश्ते को समाप्त करने के लिए तलाक लेने की प्रक्रिया है. सहमति से तलाक पाने के लिए पति-पत्नी दोनों में से किसी एक को परिवारिक न्यायालय (Family Court) में वाद दायर करनी होती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री पारित होने के बाद एक वर्ष या उससे अधिक की समय के लिए पति-पत्नी के बीच दाम्पत्य अधिकारों (Conjugal Rights) को पुर्नस्थापित नहीं की गई है, तो इस आधार पर तलाक की मांग की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा, हिंदू विवाह अधिनियम के अनुसार वैध विवाह के लिए सिर्फ मैरिज सर्टिफिकेट पर्याप्त नहीं है. बल्कि विवाह की वैधता के लिए शादी समरोह और रीति -रिवाजों का पालन भी आवश्यक है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट तलाक से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान बदलते समय के साथ हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करने की बात उठाते हुए रजिस्ट्री को आदेश दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले वाली कॉपी कानून मंत्रालय को भेजें.
Divorce Case: फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर एक व्यक्ति को तलाक लेने की इजाजत दी थी. महिला ने इसके खिलाफ अपील किया था. अब हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी.
Pakadwa Vivah In Bihar: पटना हाईकोर्ट ने एक शादी को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि दूल्हे को बंदूक की नोक पर शादी करने के लिए मजबूर किया गया था और सात फेरे भी नहीं लिए गए थे.
Divorce Case: अगर पति बिना किसी पर्याप्त कारण के पत्नी को अलग रखना चाहता है और पत्नी इसका विरोध कर रही है तो ये क्रूरता नहीं है.
Divorce Case: सप्तपदी एक अनुष्ठान है जहां हिंदू विवाह समारोह के दौरान दूल्हा और दुल्हन एक साथ पवित्र अग्नि (हवन) के चारों ओर सात फेरे लेते हैं.
हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक देने की शक्ति का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट कर सकता है.
मुंबई के बांद्रा फैमिली कोर्ट ने तलाक की अर्जी स्वीकार करते हुए युजवेन्द्र चहल और धनश्री वर्मा को पति-पत्नी होने के बंधन से मुक्त किया.
विवाह पंजीकरण के बाद सरकार द्वारा एक विवाह प्रमाण पत्र जारी किया जाता है, जिसके माध्यम से महिलाओं के अधिकारों की रक्षा की जा सकती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए डिक्री पारित होने के बाद एक वर्ष या उससे अधिक की समय के लिए पति-पत्नी के बीच दाम्पत्य अधिकारों (Conjugal Rights) को पुर्नस्थापित नहीं की गई है, तो इस आधार पर तलाक की मांग की जा सकती है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट तलाक से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान बदलते समय के साथ हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करने की बात उठाते हुए रजिस्ट्री को आदेश दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले वाली कॉपी कानून मंत्रालय को भेजें.
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हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक देने की शक्ति का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट कर सकता है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन सिंह की अदालत ने हालिया आदेश में कहा, ‘‘मौजूदा मामले में बलात्कार का अपराध नहीं बनता है क्योंकि आरोपी और पीड़िता कानूनी रूप से विवाहित हैं।’’
एक मामले में सुनवाई के दौरान कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) का यह कहना है कि एक पति यदि अपनी पत्नी को इसलिए अपमानित करता है क्योंकि उसकी त्वचा का रंग काला है, तो इसे क्रूरता माना जाएगा...
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस कुमार और जस्टिस बजनथरी की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत इन परिस्थितियों में तलाक नहीं लिया जा सकता है।
सरला मुद्गल और अन्य के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मुद्दे की विस्तार से जांच की गई थी । इसने कानून को हराने के लिए धर्म बदलने वाले लोगों के अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों के बारे में अस्पष्टता का समाधान किया।
हिंदू धर्म में विवाह का बहुत महत्व है और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शून्य विवाह (वॉइड मैरेज) और शून्यकरणीय विवाह (वॉइडेबल मैरेज) के बारे में बात की गई है। दोनों में अंतर क्या है, आइए जानते हैं
महिला ने पति के खिलाफ शारीरिक संबंध न बनाने पर किया मुकदमा और तलाक की भी मांग की। ब्रह्मकुमारी समाज से कैसे जुड़ा है यह मामला, जानिए
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
कानून के तहत भी अब माना जाता है कि जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.
पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता है.
इलाहाबाद हाई कोर्ट ने कहा है कि पत्नी से पूछे बिना पति द्वारा फेसबुक पर अंतरंग वीडियो अपलोड करना वैवाहिक संबंधों की पवित्रता का गंभीर उल्लंघन है.
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे हाई कोर्ट द्वारा एक जजमेंट में 'नजायज पत्नी और वफादार प्रेमिका' कहने को संविधान प्रदत गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का उल्लंघन बताया है.