पिता के खिलाफ बच्चों को भड़काना मानसिक क्रूरता, मध्य प्रदेश हाईकोर्ट का बड़ा फैसला
पति द्वारा दायर तलाक के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा बच्चे को पिता के खिलाफ भड़काना, पति के साथ मानसिक क्रूरता करने के जैसा है.
पति द्वारा दायर तलाक के मामले में मध्य प्रदेश हाईकोर्ट ने कहा कि पत्नी द्वारा बच्चे को पिता के खिलाफ भड़काना, पति के साथ मानसिक क्रूरता करने के जैसा है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट तलाक से जुड़े एक मामले की सुनवाई के दौरान बदलते समय के साथ हिंदू मैरिज एक्ट में संशोधन करने की बात उठाते हुए रजिस्ट्री को आदेश दिया कि वे सुप्रीम कोर्ट के फैसले वाली कॉपी कानून मंत्रालय को भेजें.
पश्चिम बंगाल की एक कोर्ट से घर में सब्जियों लगातार खराब होने से नाराज पति ने पत्नी से तलाक मांगा है.
अपने पति के आर्थिक हालात पर लगातार ताने देने को तलाक का आधार मानते हुए दिल्ली हाईकोर्ट ने एक पत्नी की याचिका खारिज कर दिया. जानें क्या था पूरा मामला...
HC On Wife Refusal Of Physical Relationship: जस्टिस शील नागू और जस्टिस विनय सराफ की डिवीजन बेंच ने फैमिली कोर्ट के आदेश को रद्द किया.
Divorce Case: फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर एक व्यक्ति को तलाक लेने की इजाजत दी थी. महिला ने इसके खिलाफ अपील किया था. अब हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी.
Divorce Case: हाईकोर्ट ने आगे कहा कि पत्नी से ये उम्मीद नहीं की जा सकती कि वो पति की इच्छा के अनुसार बाहरी लोगों से बात करे. अगर वो पति की बात नहीं मानती तो आप उसके चरित्र पर उंगली नहीं उठा सकते.
Divorce Case: अदालत ने कहा कि महंगाई के दिनों में, पत्नी और दो नाबालिग स्कूल जाने वाली बेटियों के मेंटेनेस के रूप में 8,000 रुपये दिया जा रहा है, जो कि स्पष्ट रूप से बहुत कम है.
Divorce Case: अगर पति बिना किसी पर्याप्त कारण के पत्नी को अलग रखना चाहता है और पत्नी इसका विरोध कर रही है तो ये क्रूरता नहीं है.
Divorce Case: सप्तपदी एक अनुष्ठान है जहां हिंदू विवाह समारोह के दौरान दूल्हा और दुल्हन एक साथ पवित्र अग्नि (हवन) के चारों ओर सात फेरे लेते हैं.
Divorce Case: कोर्ट ने आरोपी पति को राष्ट्रीय राजधानी Delhi के Green Cover में योगदान देने को कहा है.
हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक देने की शक्ति का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट कर सकता है.
अदालत ने क्रूरता और परित्याग के आधार पर एक महिला को तलाक लेने की इजाजत दी.
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पर्सनल लॉ के तहत दूसरी शादी कर लेता है, तब भी वो अपनी पहली पत्नी की देखभाल और रख-रखाव के लिए बाध्य रहेगा...
कलकत्ता उच्च न्यायालय ने हाल ही में एक मामले की सुनवाई के दौरान यह स्पष्ट किया है कि यदि कोई व्यक्ति अपने पर्सनल लॉ के तहत दूसरी शादी कर लेता है, तब भी वो अपनी पहली पत्नी की देखभाल और रख-रखाव के लिए बाध्य रहेगा...
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस कुमार और जस्टिस बजनथरी की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत इन परिस्थितियों में तलाक नहीं लिया जा सकता है।
हाल ही में, मुंबई के एक कोर्ट ने एक डिवोर्स सेटलमेंट हेतु सुनवाई के दौरान यह कहा है कि टूटे रिश्तों से हुए भावनात्मक घाटे की भरपाई और एक खुशहाल जीवन के लिए पालतू जानवर रखना जरूरी है.
तलाक के बाद एक पत्नी बिना काम किये, सिर्फ अपने पति द्वारा मिलने वाले मेंटेनेन्स पर निर्भर नहीं रह सकती है- कर्नाटक उच्च न्यायालय ने कही ये बात
तलाक को हमारा समाज बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखता है इसलिए जब भी कोई महिला तलाक के बारे में सोचती है तो सबसे पहले वो यही सोचती है कि समाज क्या कहेगा लेकिन महिलाएं इन सबसे ऊपर उठ रही हैं क्योंकि महिलाएं अब जागरूक हो रही है अपने अधिकारों के प्रति.
जिन मैरिड कपल्स की आपस में नहीं बनती है वो अलगाव का रास्ता अपनाते हैं. जिसके लिए वो कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं. क्या आप जानते हैं कि कानूनी रूप से अलगाव के भी दो रास्ते हैं.
मुस्लिम समाज में एक विवाह का कानूनी समापन तलाक के रूप में है. जब व्यक्तिगत विवाद के कारण पति / पत्नी एक साथ रहने के बजाए अलग होने का फैसला करते हैं, तो इस्लाम में तलाक का प्रावधान किया गया है. इस्लाम में तलाक निजी कानूनों द्वारा शासित है, जिसे पति या पत्नी के द्वारा शुरू किया जा सकता है.
हमारे देश में शादी, तलाक़, बच्चे गोद लेना, बच्चे को संपत्ति में हिस्सा देना, विधवा को संपत्ति में हिस्सा देना जैसे कई मामलों का निपटारा Family Court में होता है. शादी register करना, तलाक़ देना, संपत्ति में हिस्सा देने की ज़िम्मेदारी भी Family Court की है.
हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिला के भरपोषण मामले में स्पष्ट कर दिया है कि एक तलाकशुदा महिला, मुस्लिम अधिनियम, 1986 की धारा 3(2) के तहत भरणपोषण के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर कर सकती है. साथ ही ये उसका अधिकार है कि वह अपने शादी से पहले या शादी के समय दी गई संपत्तियों को प्राप्त कर सकती हैं.