धार्मिक स्थल पर शराब पीने के आरोप, ORRY के खिलाफ BNS के इस सेक्शन में दर्ज हुई FIR
ओरी के खिलाफ बीएनएस की धारा 223 के तहत FIR दर्ज की गई है, जो किसी लोक सेवक द्वारा विधिवत जारी किए गए आदेश की अवज्ञा को कानून का उल्लंघन मानती है.
ओरी के खिलाफ बीएनएस की धारा 223 के तहत FIR दर्ज की गई है, जो किसी लोक सेवक द्वारा विधिवत जारी किए गए आदेश की अवज्ञा को कानून का उल्लंघन मानती है.
लोक सेवक ने व्यक्ति के खिलाफ भद्दी गालियां व अपमानजनक शब्द कहने का आरोप लगाते हुए एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया, जिसे रद्द कराने की मांग को लेकर आरोपी-अपीलकर्ता ने हाई कोर्ट में चुनौती दी. मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, आइये जानते हैं कि फिर क्या हुआ...
चार वर्षीय बच्चे की मौत के मामले में एमसीडी स्कूल के प्रिंसिपल और जूनियर इंजीनियर को राहत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि कि अदालत के संज्ञान लेने से पहले पब्लिक सर्वेंट (Public Servant) के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है.
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए आया, जिसमें हाईकोर्ट ने सरकार की इजाजत के बिना पुलिस अधिकारी के खिलाफ फर्जी मुकदमा दायर करने के मामले में कार्रवाई करने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था.
सीआरपीसी की धारा 197 के तहत, न्यायाधीशों और सार्वजनिक सेवकों के खिलाफ अभियोजन यानि मुकदमा चलाने की प्रक्रिया निर्धारित की गई है. हालांकि, सरकार की स्वीकृति के बिना, ऐसे मामलों में कोई अदालत संज्ञान नहीं ले सकती है. केरल हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट को पुलिस के खिलाफ मुकदमा शुरू करने को सही पाया है.
टोंक के समरवाता में ड्यूटी कर रहे लोक सेवक (Public Servant) पर हाथ उठाने के मामले ने पूरे देश में विवाद खड़ा कर रखा है. BNS Section 132 के अनुसार, अगर कोई लोक सेवक को सरकारी कार्य से रोकने के लिए बल प्रयोग करता है या हमला करता है, तो आरोप सिद्ध होने पर उसे अधिकतम दो साल की जेल और जुर्माना, दोनों लगाया जा सकता है.
भारतीय न्याय संहिता की धारा 194 और 195 के बारे में जो दंगे को परिभाषित, उसमें शामिल में या रोक लगाने आई पुलिस के काम में अवरोध डालने या धमकी देने पर क्या सजा होगी, इस बात को बताती है.
हाल ही केरल हाईकोर्ट ने पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ इंक्वायरी बिठाने के फैसले को रद्द करते हुए टिप्पणी की गैरजरूरी जांच बिठाने से पब्लिक सर्वेंट के करियर पर बुरा असर होगा.
किसी भी सिविल सेवक (Civil Servant) को ऐसी जाँच के बाद ही पदच्युत किया जाएगा या पद से हटाया जाएगा, अथवा रैंक में कम किया जाएगा जिसमें उसे अपने विरुद्ध आरोपों की सूचना दी गई है तथा उन आरोपों के संबंध में सुनवाई का युक्तियुक्त अवसर प्रदान किया गया है
IPC की धारा 177 और धारा 182 के अंतर्गत अगर कोई किसी पब्लिक सर्वेंट को जानबूझ कर झूठी सूचना देगा, तो वह अपराधी माना जाएगा. साथ ही इन धाराओं के अंतर्गत सजा का भी प्रावधान किया गया है.
हमारे कानून में केवल गैरकानूनी जमीन की खरीद बिक्री करना, या उस पर कब्जा करना ही अपराध की श्रेणी में नहीं आता है बल्कि अवैध रूप से जमीन की बोली लगाना भी एक अपराध है.
लोक सेवक लोगों की मदद करने के लिए होते हैं, कुछ लोग उनकी ताकत का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं जो कानूनी रूप से अपराध है.
हमारे देश में कानून नागरिकों के बारे में सोच कर ही बनाया गया है इसलिए हर कानून का पालन करना सभी की जिम्मेदारी है. जो नियम को नहीं मानता वह दोषी माना जाएगा. इसके लिए उसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के तहत दंडित भी किया जा सकता है. कुछ ऐसे ही अपराध का जिक्र किया गया है IPC की धारा 174 में और 174A में.
लोक सेवक या सरकारी अधिकारी को सभी गतिविधियों, जांचों और प्रोटोकॉल के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है जो अदालती कार्यवाही और न्याय के प्रशासन से संबंधित हैं.
जानबूझकर किसी ऐसे कानून के आदेश की अवज्ञा करता है, जो उस तरीके को विनियमित करता है जिस तरीके से वह किसी आपराधिक जांच को अंजाम दे सकता है.
जिस भी अपराध के लिए उकसाया है उस अपराध अपराध में जितनी भी अधिकतम सजा निर्धारित की गई है उसकी एक चौथाई सजा उकसाने वाले को दी जाती है.लेकिन ये सजा ओर भी सख्त हो जाती है जब उकसाने वाला व्यक्ति कोई लोक सेवक हो.
IPC की धारा 177 और धारा 182 के अंतर्गत अगर कोई किसी पब्लिक सर्वेंट को जानबूझ कर झूठी सूचना देगा, तो वह अपराधी माना जाएगा. साथ ही इन धाराओं के अंतर्गत सजा का भी प्रावधान किया गया है.
चार वर्षीय बच्चे की मौत के मामले में एमसीडी स्कूल के प्रिंसिपल और जूनियर इंजीनियर को राहत देते हुए दिल्ली हाई कोर्ट ने कहा कि कि अदालत के संज्ञान लेने से पहले पब्लिक सर्वेंट (Public Servant) के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए राज्य सरकार की अनुमति लेना आवश्यक है.
सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए आया, जिसमें हाईकोर्ट ने सरकार की इजाजत के बिना पुलिस अधिकारी के खिलाफ फर्जी मुकदमा दायर करने के मामले में कार्रवाई करने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था.
भारतीय न्याय संहिता की धारा 194 और 195 के बारे में जो दंगे को परिभाषित, उसमें शामिल में या रोक लगाने आई पुलिस के काम में अवरोध डालने या धमकी देने पर क्या सजा होगी, इस बात को बताती है.
हाल ही केरल हाईकोर्ट ने पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ इंक्वायरी बिठाने के फैसले को रद्द करते हुए टिप्पणी की गैरजरूरी जांच बिठाने से पब्लिक सर्वेंट के करियर पर बुरा असर होगा.
हमारे कानून में केवल गैरकानूनी जमीन की खरीद बिक्री करना, या उस पर कब्जा करना ही अपराध की श्रेणी में नहीं आता है बल्कि अवैध रूप से जमीन की बोली लगाना भी एक अपराध है.
लोक सेवक लोगों की मदद करने के लिए होते हैं, कुछ लोग उनकी ताकत का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं जो कानूनी रूप से अपराध है.
जानबूझकर किसी ऐसे कानून के आदेश की अवज्ञा करता है, जो उस तरीके को विनियमित करता है जिस तरीके से वह किसी आपराधिक जांच को अंजाम दे सकता है.
जिस भी अपराध के लिए उकसाया है उस अपराध अपराध में जितनी भी अधिकतम सजा निर्धारित की गई है उसकी एक चौथाई सजा उकसाने वाले को दी जाती है.लेकिन ये सजा ओर भी सख्त हो जाती है जब उकसाने वाला व्यक्ति कोई लोक सेवक हो.
लोक सेवक ने व्यक्ति के खिलाफ भद्दी गालियां व अपमानजनक शब्द कहने का आरोप लगाते हुए एससी-एसटी एक्ट के तहत मुकदमा दर्ज कराया, जिसे रद्द कराने की मांग को लेकर आरोपी-अपीलकर्ता ने हाई कोर्ट में चुनौती दी. मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा, आइये जानते हैं कि फिर क्या हुआ...