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किन मामलों में सरकार की इजाजात के बिना भी पुलिस अधिकारी के खिलाफ मुकदमा चलाया जा सकता है? सुप्रीम कोर्ट ने CrPC सेक्शन 197 के हवाले से बताया

सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए आया, जिसमें हाईकोर्ट ने सरकार की इजाजत के बिना पुलिस अधिकारी के खिलाफ फर्जी मुकदमा दायर करने के मामले में कार्रवाई करने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था.

Written by Satyam Kumar |Published : December 15, 2024 1:30 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने पुलिस अधिकारियों के खिलाफ मुकदमा चलाने को लेकर अहम टिप्पणी की है. शीर्ष अदालत ने कहा कि पब्लिक सर्वेंट द्वारा झूठे मुकदमे करना या सबूतों से छेड़छाड़ करने के मामले में, जो कि उनके काम का हिस्सा नहीं है, मुकदमा चलाने के लिए सरकार की इजाजत नहीं चाहिए. बता दें सीआरपीसी की धारा 197 , जजों व पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति की अनिवार्यता बताती हैं, ताकि इन्हें अपनी ड्यूटी करते वक्त प्रतिक्रियात्मक कार्रवाईयों से सुरक्षा मिल सकें. सुप्रीम कोर्ट का ये फैसला मध्य प्रदेश हाईकोर्ट के फैसले को खारिज करते हुए आया, जिसमें हाईकोर्ट ने सरकार की इजाजत के बिना पुलिस अधिकारी के खिलाफ फर्जी मुकदमा दायर करने के मामले में कार्रवाई करने की इजाजत देने से इंकार कर दिया था.

पुलिस अधिकारी के खिलाफ सीधा चलेगा मुकदमा: SC

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की पीठ ने मामले की सुनवाई की. सुप्रीम कोर्ट ने मुकदमे की परिस्थितियों को देखते हुए कहा कि झूठे मुकदमे दायर करना या झठे दस्तावेज गढ़ना पुलिस के कार्यों का हिस्सा नहीं है, इसलिए उनपर मुकदमा चलाने के लिए सरकार की अनुमति की जरूरत नहीं होनी चाहिए.

जस्टिस जेबी पारदीवाला ने सीआरपीसी की धारा 197 पर जोर देते हुए कहा कि इसका उद्देश्य सरकारी कर्मचारियों (Public Servant) को उनके आधिकारिक कर्तव्यों से संबंधित संभावित झूठे आपराधिक मुकदमों से बचाना है. यह प्रावधान ईमानदार अधिकारियों को आश्वस्त करता है कि वे अन्यायपूर्ण अभियोजन के डर के बिना अपनी भूमिका निभा सकते हैं, जिससे उन्हें निराधार आरोपों से हतोत्साहित हुए बिना जनहित में कार्य करने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके.

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क्या है मामला?

अशोक दीक्षित नामक व्यक्ति के खिलाफ एक ही दिन में दो जगह FIR दर्ज किया गया. पहला, सुबह 8:30 बजे ओम प्रकाश यादव (अपीलकर्ता) ने यूपी के फिरोजाबाद में अशोक दीक्षित के खिलाफ अपने भाई की हत्या करने का आरोप लगाते हुए मामला दर्ज करवाया. दूसरा, करीब 9:30 बजे सुबह में मध्य प्रदेश के ग्वालियर में एक्साइज एक्ट में पुलिस अधिकारी (निरंजन कुमार उपाध्याय) ने मुकदमा दर्ज किया गया. ग्वालियर से फिरोजाबाद की दूरी 160 किमी है, जिसे पूरा करना एक घंटे का काम नहीं है. फिरोजाबाद जिला अदालत ने मर्डर केस में अशोक दीक्षित सहित आरोपियों को दोषी पाया. वहीं, ग्वालियर केस का जिक्र करते हुए बताया कि वहां के एएसपी ने दावा किया कि शराब का केस झूठा था और मामले से संबंधित पुलिस अधिकारी को सस्पेंड कर दिया गया है.

इस दौरान एसएसपी फिरोजाबाद ने डीआईजी ग्वालियर को पत्र लिखकर कार्रवाई करने की मांग की. जबाव में डीआईजी ने जबाव दिया कि जब तक एक्साइज मामले पर फैसला नहीं आ जाता, तब तक वे कार्रवाई करने में असक्षम है. अब सवाल था कि आरोपी व्यक्ति के खिलाफ किसी एक-जगह ही मुकदमा चलाया जा सकता है. वहीं, अब आरोपी पुलिसवाले के खिलाफ कार्रवाई की मांग को हाईकोर्ट में याचिका दायर की गई, जिसे अदालत ने खारिज करते हुए कहा कि पब्लिक सर्वेंट के खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की इजाजत चाहिए, जो कि अब तक कि मध्य प्रदेश सरकार ने नहीं दी है. सुप्रीम कोर्ट में इसी मामले को चुनौती दी गई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि सबूतों से छेड़छाड़ करना, झूठा केस करना आदि मामले में पब्लिक सर्वेंट की ड्यूटी अलग हैं, ऐसे मामलों में उनके खिलाफ मुकदमा चलाने के लिए सरकार की इजाजत नहीं चाहिए.