एक, दो नहीं... पूरे चार Murder Case में आरोपी बनाए गए हिंदू संत Chinmay Das, राजद्रोह केस में मिली थी जमानत
चटगांव की एक अदालत वकील सैफुल इस्लाम आलिप की हत्या के सिलसिले में दर्ज चार मामलों में चिन्मय कृष्ण दास को आरोपी पाया है.
चटगांव की एक अदालत वकील सैफुल इस्लाम आलिप की हत्या के सिलसिले में दर्ज चार मामलों में चिन्मय कृष्ण दास को आरोपी पाया है.
लोकगायिका नेहा सिंह राठौर के खिलाफ पहलगाम आतंकी हमले पर की गई कथित आपत्तिजनक टिप्पणियों और सोशल मीडिया पोस्ट के लिए राजद्रोह सहित कई गंभीर धाराओं में मामला दर्ज कराया गया है. इन आरोपों में सांप्रदायिक दुश्मनी बढ़ाना, सार्वजनिक शांति भंग करना और देश की एकता व अखंडता को खतरे में डालने का प्रयास शामिल है.
गुजरात की सत्र अदालत ने गुजरात सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए हार्दिक पटेल और चार अन्य के खिलाफ राजद्रोह के मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया है.
दिल्ली पुलिस ने 2019 के राजद्रोह के मामले को वापस लेने की अनुमति मांगी क्योंकि स्क्रीनिंग कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली के उपराज्यपाल ने शहला राशिद के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी वापस ले ली थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम को राजद्रोह और यूएपीए मामले में जमानत दे दी है. जमानत मिलने के बाद भी शरजील इमाम को जेल में ही रहना पड़ेगा, वे दिल्ली दंगे केस में भी आरोपी है.
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को चीफ जस्टिस के समक्ष कागजात पेश करने का निर्देश दिया ताकि कम से कम पांच जजों वाली पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक पक्ष पर उचित निर्णय लिया जा सके.
गोगोई ने भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुच्छेद 124ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।
भारतीय संविधान हर नागरिक को अनुच्छेद 19 के तहत 'भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी' प्रदान करता है लेकिन इस आजादी की एक सीमा होती है। यह सीमा क्या है और अभिव्यक्ति की आजादी कब, राजद्रोह में तब्दील हो जाती है, जानिए...
न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर ने याचिका पर नोटिस जारी किया और अभियोजन पक्ष को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का समय दिया. मामले में पहला पूरक आरोप पत्र 16 अप्रैल, 2020 को दायर किया गया था.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर 16 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
प्रतिवादी (Defendant) ने अदालत में यह तर्क दिया कि राजद्रोह का आरोप केवल जो वास्तविक लेखक जिन्होने उस लेख को लिखा है उनपर पर ही धारा 124A के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, न कि प्रकाशक और अन्य व्यक्तियों पर जिन्होंने इस लेखन के प्रकाशन में मदद की. यह तथ्य पर आधारित था कि मूल रूप से अधिनियमित धारा 124 A में यह उल्लेख नहीं था कि लेखक के अलावा किसी अन्य द्वारा राजद्रोही लेखन का प्रकाशन भी अपराध माना जाएगा.
पूर्व सीजेआई जस्टिस ललित उस बात को दोहरा रहे थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2016 को भी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दोहराया था. जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली जिस पीठ ने ये आदेश दिया था, जस्टिस यूयू ललित उस दो सदस्य पीठ के दूसरे सदस्य थे.
चटगांव की एक अदालत वकील सैफुल इस्लाम आलिप की हत्या के सिलसिले में दर्ज चार मामलों में चिन्मय कृष्ण दास को आरोपी पाया है.
गुजरात की सत्र अदालत ने गुजरात सरकार की याचिका को स्वीकार करते हुए हार्दिक पटेल और चार अन्य के खिलाफ राजद्रोह के मामलों को वापस लेने का निर्णय लिया है.
दिल्ली पुलिस ने 2019 के राजद्रोह के मामले को वापस लेने की अनुमति मांगी क्योंकि स्क्रीनिंग कमेटी की रिपोर्ट के आधार पर दिल्ली के उपराज्यपाल ने शहला राशिद के खिलाफ अभियोजन की मंजूरी वापस ले ली थी.
दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम को राजद्रोह और यूएपीए मामले में जमानत दे दी है. जमानत मिलने के बाद भी शरजील इमाम को जेल में ही रहना पड़ेगा, वे दिल्ली दंगे केस में भी आरोपी है.
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को चीफ जस्टिस के समक्ष कागजात पेश करने का निर्देश दिया ताकि कम से कम पांच जजों वाली पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक पक्ष पर उचित निर्णय लिया जा सके.
गोगोई ने भारतीय दंड संहिता, 1860 के अनुच्छेद 124ए (राजद्रोह) की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी है।
भारतीय संविधान हर नागरिक को अनुच्छेद 19 के तहत 'भाषण और अभिव्यक्ति की आजादी' प्रदान करता है लेकिन इस आजादी की एक सीमा होती है। यह सीमा क्या है और अभिव्यक्ति की आजादी कब, राजद्रोह में तब्दील हो जाती है, जानिए...
न्यायमूर्ति रजनीश भटनागर ने याचिका पर नोटिस जारी किया और अभियोजन पक्ष को स्थिति रिपोर्ट दाखिल करने का समय दिया. मामले में पहला पूरक आरोप पत्र 16 अप्रैल, 2020 को दायर किया गया था.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर 16 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
प्रतिवादी (Defendant) ने अदालत में यह तर्क दिया कि राजद्रोह का आरोप केवल जो वास्तविक लेखक जिन्होने उस लेख को लिखा है उनपर पर ही धारा 124A के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, न कि प्रकाशक और अन्य व्यक्तियों पर जिन्होंने इस लेखन के प्रकाशन में मदद की. यह तथ्य पर आधारित था कि मूल रूप से अधिनियमित धारा 124 A में यह उल्लेख नहीं था कि लेखक के अलावा किसी अन्य द्वारा राजद्रोही लेखन का प्रकाशन भी अपराध माना जाएगा.
पूर्व सीजेआई जस्टिस ललित उस बात को दोहरा रहे थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2016 को भी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दोहराया था. जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली जिस पीठ ने ये आदेश दिया था, जस्टिस यूयू ललित उस दो सदस्य पीठ के दूसरे सदस्य थे.