बिना सजा के भी कर्मचारी को 'ग्रैच्युटी' देने से इंकार कर सकती है कंपनी, SC के फैसले की वजह भी जान लीजिए
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रेच्युटी अधिनियम के तहत, ग्रेच्युटी की जब्ती के लिए आपराधिक सजा की आवश्यकता नहीं है, यदि गलती, नैतिक पतन से संबंधित है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रेच्युटी अधिनियम के तहत, ग्रेच्युटी की जब्ती के लिए आपराधिक सजा की आवश्यकता नहीं है, यदि गलती, नैतिक पतन से संबंधित है.
हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस ने अपनी याचिका में प्रधान महालेखाकार, ग्वालियर के पिछले साल 13 जून के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें उन्हें उप लोकायुक्त के रूप में सेवा देने पर ग्रेच्युटी भुगतान करने से इंकार कर दिया गया है.
ग्रैच्युटी पता करने के लिए आखिरी बेसिक सैलरी में पंद्रह से गुणा करें , फिर उसमें वहां पर नौकरी में बिताए गए साल से गुणा करें, इन सबमें आने वाले अंक को 26 से भाग दें, जो नंबर आएगा वह ग्रैच्युटी होगी.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत ग्रेच्युटी की मांग वाली 25 याचिकाओं को अधूरा पाते हुए खारिज कर दिया.
कई बार हम ग्रेच्युटी शब्द सुनते हैं, लेकिन हमें इसके बारे में पता नहीं होता. ऐसे में आज हम आपको बताएंगें ग्रेच्युटी क्या है और ये किसे मिल सकती है.
यहां ध्यान देने वाली बात है की हर कंपनी को ग्रेच्युटी देना अनिवार्य नहीं होता है. पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के तहत ग्रेच्युटी का लाभ उन्ही कंपनियों में मिलता है, जहां कर्मचारियों की संख्या कम से कम 10 होती है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एक कर्मचारी के लिए मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी एक परोपकारी योजना है और यह मृतक के उत्तराधिकारी/आश्रित के लिए विस्तारित या तैयार की गई थी. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने समक्ष इस तरह के मामले दायर करने वाले राज्यों के इस चलन की निंदा करता है. क्योकि इस तरह से पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे की राशि से वंचित किया जाता है.
हाईकोर्ट के पूर्व जस्टिस ने अपनी याचिका में प्रधान महालेखाकार, ग्वालियर के पिछले साल 13 जून के आदेश को चुनौती दी गई है, जिसमें उन्हें उप लोकायुक्त के रूप में सेवा देने पर ग्रेच्युटी भुगतान करने से इंकार कर दिया गया है.
इलाहाबाद हाईकोर्ट ने ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत ग्रेच्युटी की मांग वाली 25 याचिकाओं को अधूरा पाते हुए खारिज कर दिया.
यहां ध्यान देने वाली बात है की हर कंपनी को ग्रेच्युटी देना अनिवार्य नहीं होता है. पेमेंट ऑफ ग्रेच्युटी एक्ट, 1972 के तहत ग्रेच्युटी का लाभ उन्ही कंपनियों में मिलता है, जहां कर्मचारियों की संख्या कम से कम 10 होती है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि एक कर्मचारी के लिए मृत्यु सह-सेवानिवृत्ति ग्रेच्युटी एक परोपकारी योजना है और यह मृतक के उत्तराधिकारी/आश्रित के लिए विस्तारित या तैयार की गई थी. कोर्ट ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट अपने समक्ष इस तरह के मामले दायर करने वाले राज्यों के इस चलन की निंदा करता है. क्योकि इस तरह से पीड़ित व्यक्ति को मुआवजे की राशि से वंचित किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि ग्रेच्युटी अधिनियम के तहत, ग्रेच्युटी की जब्ती के लिए आपराधिक सजा की आवश्यकता नहीं है, यदि गलती, नैतिक पतन से संबंधित है.