हाल ही में इलाहाबाद हाईकोर्ट (Allahabad HighCourt) ने रिट याचिका को सावधानीपूर्वक भरें जाने के निर्देश दिए है. ग्रेच्युटी भुगतान (Gratuity Payment) संबंधी मामले को सुनते हुए कोर्ट ने याचिका को अधूरा पाया. कहा याचिका में मुद्दे से जुड़ी कई जानकारी नहीं है. अगर हैं, तो स्पष्ट रूप से मांगों को रखने में अपर्याप्त है. याचिकाकर्ता अपनी याचिका में अपनी मांगों को स्पष्ट रूप से रखें. साथ ही मांगों से जुड़ी सभी तथ्यों को बताए. कोर्ट ने रिट याचिका (Writ Petition) को सावधानी से भरने की बात कहीं.
जस्टिस सौरभ श्याम शमशेरी (Justice Saurav Shyam Shamsheri) ने ग्रेच्युटी भुगतान से जुड़े 25 रिट याचिकाओं को सुना. याचिका में बेसिक स्कूलों में काम करने वाले शिक्षकों पर भुगतान ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 (Payment of Gratuity Act, 1972) से लागू होने की बात कहीं है, और उसके हिसाब से ग्रेच्युटी के भुगतान की मांग की है.
कोर्ट ने कहा,
मांगी गई राहत के लिए रिट याचिका सावधानी से तैयार करना पड़ेगा. मांगी गई राहत को दलीलों के आधार पर होनी चाहिए. दलींले किसी भी मुकदमे का अनिवार्य हिस्सा है. रिट याचिकाओं का वर्तमान समूह इनके उदाहरण है, जिनमें मांगी गई राहत स्पष्ट नहीं है. साथ ही ये भौतिक दलीलों द्वारा भी समर्थित नहीं है.
25 याचिकाकर्ता, जो रिटायर्ड कर्मचारी है या बेसिक शिक्षा स्कूल के मृत कर्मचारियों के पति, पिता या माता है. उन्होंने ब्याज सहित ग्रेच्युटी राशि की मांग की है. सुनवाई में कोर्ट ने पाया कि इन याचिकाओं में 23.11.1994, 10.06.2002 और 04.04.2002 को सरकार के आदेश को रिकार्ड को लाने में असफल रहा है. उक्त बातों को ध्यान में रखते हुए कोर्ट ने इन याचिकाओं को खारिज कर दिया. साथ ही सर्कुलर के दायरे में आने पर ग्रेच्युटी का लाभ उठाने की छूट दी.
कोई व्यक्ति जब 5 साल तक किसी कंपनी में काम करता है, तो वह ग्रेच्युटी का हकदार होता है. यह एक तरह का रिवार्ड है. ग्रेच्युटी प्रोविडेंट फंड और पेंशन से अलग होता है. ग्रेच्युटी में पूरी राशि कंपनी की तरफ से दी जाती है. ग्रेच्युटी भुगतान अधिनियम, 1972 के तहत, वैसे संस्थान, जहां दस से ज्यादा लोग काम करते हैं. वहां एक समय के बाद कार्यरत लोगों को ग्रेच्युटी मिलता है. ये रिटायर होने या पांच सालों के बाद काम छोड़ने पर मिलता है.