शादी की उम्र से कम होनी 'एज ऑफ कन्सेंट'?
देश में क्या शारीरिक संबंधों की रजामंदी की उम्र यानी 'एज ऑफ कन्सेंट' शादी की उम्र से कम होनी चाहिए? कई मामलों की सुनवाई के दौरान बंबई उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है...
देश में क्या शारीरिक संबंधों की रजामंदी की उम्र यानी 'एज ऑफ कन्सेंट' शादी की उम्र से कम होनी चाहिए? कई मामलों की सुनवाई के दौरान बंबई उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी की है...
क्या देश में 'एज ऑफ कन्सेंट' और 'एज ऑफ मैरिज' अलग होनी चाहिए? इससे जुड़ा एक मामला बंबई उच्च न्यायालय में आया जहां उन्होंने इसपर अपने विचार व्यक्त किये हैं.
हिंदू विवाह अधिनियम में दो तरह की शादियों- वॉइड और वॉइडेबल की बात कही गई है। दोनों की परिभाषा क्या है और इनमें अंतर क्या है, आइए जानते हैं
हिंदू धर्म में विवाह का बहुत महत्व है और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शून्य विवाह (वॉइड मैरेज) और शून्यकरणीय विवाह (वॉइडेबल मैरेज) के बारे में बात की गई है। दोनों में अंतर क्या है, आइए जानते हैं
पत्नी ने पति पर आईपीसी की धारा 498A के तहत क्रूरता का आरोप लगाया है क्योंकि उसने उनके साथ शारीरिक संबंध निहं बनाए। अदालत ने क्या फैसला सुनाया, आइए जानते हैं
महिला ने पति के खिलाफ शारीरिक संबंध न बनाने पर किया मुकदमा और तलाक की भी मांग की। ब्रह्मकुमारी समाज से कैसे जुड़ा है यह मामला, जानिए
हिन्दू विधवा पुनर्विवाह अधिनियम के आने के बाद से विधवा महिलाओं के विवाह को न सिर्फ कानूनी मान्यता मिली बल्कि इसके कारण ही इस प्रकार के विवाहों को सामाजिक मान्यता भी मिलने लगी.
भरण पोषण (Maintenance) मांगने का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है. हिंदू कानून में जानिए कितने तरह के होते हैं भरण पोषण
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
इस कानून के तहत अलगाव के लिए आपका कानूनी रूप से हिंदू होना अनिवार्य है. दोनों पक्षों का नाम, स्थिति इसके साथ ही अगर कोई बच्चा है तो उसके बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए.
कानून के तहत भी अब माना जाता है कि जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.
तलाक से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि "जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ जीवन फिर से शुरू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. पति-पत्नी को शादी में हमेशा बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ नहीं मिलता है"
पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता है.
समलैंगिक अधिकार कार्यकर्ताओं को समलैंगिक विवाह के मुद्दे पर सुप्रीम कोर्ट से अनुकूल फैसले की उम्मीद तो है ही लेकिन साथ में डर भी सता रहा है.
राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाहों पर नियंत्रण दिल्ली सरकार को सौंपने के शीर्ष अदालत के आदेश को नकारने के लिए केंद्र सरकार द्वारा लाए गए अध्यादेश के बाद इसकी आशंका पैदा हुई.
आरोपी बिजॉय बिन जो की हैलाकांडी जिले के धोलासीत गांव का निवासी है, के खिलाफ पुलिस ने पिछले साल 18 जनवरी को मामला दर्ज किया था.
सीजेआई की अध्यक्षता में इस 5 सदस्य संविधान पीठ ने अप्रेल माह में 18, 19, 21, 25, 26 और 27 तारीखों में सुनवाई की. वही मई माह में 3, 10 और 11 मई को सुनवाई करते हुए कुल 10 दिन तक सुनवाई की है.
समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर दायर करीब 20 याचिकाओं पर सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ ने गुरूवार को फैसला सुरक्षित रख लिया है
जिन मैरिड कपल्स की आपस में नहीं बनती है वो अलगाव का रास्ता अपनाते हैं. जिसके लिए वो कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं. क्या आप जानते हैं कि कानूनी रूप से अलगाव के भी दो रास्ते हैं.
अपनी पसंद के व्यक्ति से विवाह करना, प्रत्येक नागरिक का एक मौलिक अधिकार है और किसी को भी उनके मूल अधिकार में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए क्योंकि इसका मतलब भारतीय संविधान का उल्लंघन करना होगा.
हमारे समाज मेंं जितनी तेजी से शादियां हो रही हैं उतनी ही तेजी से रिश्ते टूट भी रहे हैं. जो अपने रिश्ते से खुश नहीं होते तो वो तलाक का रास्ता अपनाते हैं लेकिन कुछ लोग बिना कोई कानूनी प्रक्रिया अपनाए ही अलग हो जाते हैं.
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत उन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाएंगे जिन्होंने 14-18 वर्ष आयु समूह में लड़कियों से शादी की है.
मुस्लिम समाज में एक विवाह का कानूनी समापन तलाक के रूप में है. जब व्यक्तिगत विवाद के कारण पति / पत्नी एक साथ रहने के बजाए अलग होने का फैसला करते हैं, तो इस्लाम में तलाक का प्रावधान किया गया है. इस्लाम में तलाक निजी कानूनों द्वारा शासित है, जिसे पति या पत्नी के द्वारा शुरू किया जा सकता है.
समलैंगिक विवाहों को मान्यता देने की मांग करने वाली लगभग आठ याचिकाओं को सुप्रीम कोर्ट में स्थानांतरित कर दिया गया है.
इन - कैमरा के अंतर्गत हुई कार्यवाही को छापने और प्रकाशित करने की अनुमति किसी को नहीं है, अगर कोई इसे छापता है या प्रकाशित करता है तो वो सजा का पात्र होगा.
याचिकाओं में कहा गया है कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा न देना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि सेम सेक्स मैरिज को अनुमति न देना समानता के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करना भी है.
दहेज हत्या का अपराध एक गैर-जमानती और संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है, जिसके लिए आसानी से जमानत नहीं दी जा सकती.IPC की धारा 304 (बी) के लिए दोषी व्यक्ति को कम से कम 7 साल से लेकर आजीवन उम्रकैद की सजा तक सुनाई जा सकती हैं.
जब कोई भारतीय किसी विदेशी से भारत के बाहर शादी करता है और चाहता है कि शादी भारत में उसे कानूनी मान्यता मिले. ऐसी स्थिति में यह अधिनियम एक विदेशी के साथ विवाह की प्रक्रिया को नियंत्रित करने के साथ ही अपने पसंद के व्यक्ति के साथ विवाह के अधिकार को बनाए रखता है.
विशेष विवाह अधिनियम विभिन्न धर्मों को मानने वाले युगलों को विवाह की सुविधा प्रदान करने तथा स्वेच्छा से विवाह को प्राथमिकता देने के लिए अधिनियमित किया गया था. हमारे देश में विशेष विवाह अधिनियम का सर्वाधिक प्रयोग 15 से 19 आयु वर्ग की महिलाओं द्वारा किया जाता है.
7 मुकदमों में आरोपी ने खुद की शादी का फर्जी कार्ड बनाकर गुजरात हाईकोर्ट में अंतरिम जमानत की अर्जी दायर की. मामले का खुलासा होने पर हाईकोर्ट ने आरोपी याचिकाकर्ता की जमानत याचिका खारिज करने के साथ पुलिस अधीक्षक को दोषियों के खिलाफ कार्रवाई करने को कहा हैं.