आत्महत्या के प्रयास के लिए पत्नी का पति पर दोष मढ़ना 'क्रूरता': दिल्ली हाईकोर्ट
Divorce Case: फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर एक व्यक्ति को तलाक लेने की इजाजत दी थी. महिला ने इसके खिलाफ अपील किया था. अब हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी.
Divorce Case: फैमिली कोर्ट ने क्रूरता के आधार पर एक व्यक्ति को तलाक लेने की इजाजत दी थी. महिला ने इसके खिलाफ अपील किया था. अब हाईकोर्ट ने अपील खारिज कर दी.
Pakadwa Vivah In Bihar: पटना हाईकोर्ट ने एक शादी को इस आधार पर रद्द कर दिया गया था कि दूल्हे को बंदूक की नोक पर शादी करने के लिए मजबूर किया गया था और सात फेरे भी नहीं लिए गए थे.
Divorce Case: अगर पति बिना किसी पर्याप्त कारण के पत्नी को अलग रखना चाहता है और पत्नी इसका विरोध कर रही है तो ये क्रूरता नहीं है.
Divorce Case: सप्तपदी एक अनुष्ठान है जहां हिंदू विवाह समारोह के दौरान दूल्हा और दुल्हन एक साथ पवित्र अग्नि (हवन) के चारों ओर सात फेरे लेते हैं.
हाईकोर्ट ने कहा कि विवाह के अपूरणीय टूटने के आधार पर तलाक देने की शक्ति का प्रयोग केवल संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत सुप्रीम कोर्ट कर सकता है.
अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश जगमोहन सिंह की अदालत ने हालिया आदेश में कहा, ‘‘मौजूदा मामले में बलात्कार का अपराध नहीं बनता है क्योंकि आरोपी और पीड़िता कानूनी रूप से विवाहित हैं।’’
एक मामले में सुनवाई के दौरान कर्नाटक उच्च न्यायालय (Karnataka High Court) का यह कहना है कि एक पति यदि अपनी पत्नी को इसलिए अपमानित करता है क्योंकि उसकी त्वचा का रंग काला है, तो इसे क्रूरता माना जाएगा...
पटना हाईकोर्ट के जस्टिस कुमार और जस्टिस बजनथरी की पीठ ने सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि हिन्दू विवाह अधिनियम के तहत इन परिस्थितियों में तलाक नहीं लिया जा सकता है।
सरला मुद्गल और अन्य के ऐतिहासिक मामले में सुप्रीम कोर्ट द्वारा इस मुद्दे की विस्तार से जांच की गई थी । इसने कानून को हराने के लिए धर्म बदलने वाले लोगों के अधिकारों, कर्तव्यों और दायित्वों के बारे में अस्पष्टता का समाधान किया।
हिंदू विवाह अधिनियम में दो तरह की शादियों- वॉइड और वॉइडेबल की बात कही गई है। दोनों की परिभाषा क्या है और इनमें अंतर क्या है, आइए जानते हैं
हिंदू धर्म में विवाह का बहुत महत्व है और हिंदू विवाह अधिनियम के तहत शून्य विवाह (वॉइड मैरेज) और शून्यकरणीय विवाह (वॉइडेबल मैरेज) के बारे में बात की गई है। दोनों में अंतर क्या है, आइए जानते हैं
पत्नी ने पति पर आईपीसी की धारा 498A के तहत क्रूरता का आरोप लगाया है क्योंकि उसने उनके साथ शारीरिक संबंध निहं बनाए। अदालत ने क्या फैसला सुनाया, आइए जानते हैं
महिला ने पति के खिलाफ शारीरिक संबंध न बनाने पर किया मुकदमा और तलाक की भी मांग की। ब्रह्मकुमारी समाज से कैसे जुड़ा है यह मामला, जानिए
भरण पोषण (Maintenance) मांगने का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है. हिंदू कानून में जानिए कितने तरह के होते हैं भरण पोषण
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
इस कानून के तहत अलगाव के लिए आपका कानूनी रूप से हिंदू होना अनिवार्य है. दोनों पक्षों का नाम, स्थिति इसके साथ ही अगर कोई बच्चा है तो उसके बारे में भी जानकारी दी जानी चाहिए.
कानून के तहत भी अब माना जाता है कि जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.
तलाक से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि "जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ जीवन फिर से शुरू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. पति-पत्नी को शादी में हमेशा बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ नहीं मिलता है"
कानून के तहत भी अब माना जाता है कि जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ रहने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है.
पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता है.
हाईकोर्ट ने कहा कि जीवित रहते भरण-पोषण का बकाया मृत बेटी की संपत्ति थी और उसकी मृत्यु के बाद, कानूनी अभिभावक होने के नाते उसकी मां इस संपत्ति की हकदार है.
शादी के बाद जब पति पत्नी के बीच ताल मेल नहीं बैठ पाता तो वो कानून का सहारा लेते हैं. ताकि अलग होकर वो अपनी मर्जी से अपना जीवन जी सकें. कानूनी भाषा में इसे तलाक लेना कहते हैं. तलाक लेने और देने के लिए भी अदालत वजह मांगती है. बिना कोई ठोस कारण कोई किसी को तलाक नहीं दे सकता है.
तलाक को हमारा समाज बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखता है इसलिए जब भी कोई महिला तलाक के बारे में सोचती है तो सबसे पहले वो यही सोचती है कि समाज क्या कहेगा लेकिन महिलाएं इन सबसे ऊपर उठ रही हैं क्योंकि महिलाएं अब जागरूक हो रही है अपने अधिकारों के प्रति.
जिन मैरिड कपल्स की आपस में नहीं बनती है वो अलगाव का रास्ता अपनाते हैं. जिसके लिए वो कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं. क्या आप जानते हैं कि कानूनी रूप से अलगाव के भी दो रास्ते हैं.
हमारे समाज मेंं जितनी तेजी से शादियां हो रही हैं उतनी ही तेजी से रिश्ते टूट भी रहे हैं. जो अपने रिश्ते से खुश नहीं होते तो वो तलाक का रास्ता अपनाते हैं लेकिन कुछ लोग बिना कोई कानूनी प्रक्रिया अपनाए ही अलग हो जाते हैं.
इन - कैमरा के अंतर्गत हुई कार्यवाही को छापने और प्रकाशित करने की अनुमति किसी को नहीं है, अगर कोई इसे छापता है या प्रकाशित करता है तो वो सजा का पात्र होगा.