सरकारी गवाह कौन होता है, और कैसे मिलता है उसे क्षमादान?
दंड प्रक्रिया संहिता के धारा 307 में क्षमादान को लेकर निर्देश देने की शक्ति का प्रावधान किया गया है. क्षमादान हमेशा फैसला सुनाने से पहले दिया जाता है.
दंड प्रक्रिया संहिता के धारा 307 में क्षमादान को लेकर निर्देश देने की शक्ति का प्रावधान किया गया है. क्षमादान हमेशा फैसला सुनाने से पहले दिया जाता है.
नाम से ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि यह किस तरह का साक्ष्य होता है. Prima Facie शब्द को लैटिन भाषा से लिया गया है जिसका सीधा मतलब है at first sight” or “at first appearance”. कानून की दुनिया में यह बहुचचित शब्द है. इसका सिविल और क्रिमिनल मामलों में कितना महत्व इस पर नजर डालते हैं.
जब भी कोई अपराध होता है तो उसका कोई ना कोई सबूत जरूर होता है और सबूतों का कानून की दुनिया में बहुत अहमियत है. इसलिए जिस पर जो आरोप लगाता है उसे भी अपने आरोप को सही साबित करने के लिए प्रूफ देना पड़ता है.
अदालत में आपराधिक मामलों में आपका अच्छा चरित्र आपको भारतीय साक्ष्य अधिनियम के तहत सज़ा से बचा सकता है.
कई बार अच्छे चरित्र वाले लोग भी झूठे केस में फंस जाते हैं. अक्सर ऐसे मामलों में लोग सोचते हैं कि इतना अच्छा होने का क्या फायदा. तो आपको जानकर हैरानी होगी कि आपका अच्छा चरित्र आपको सजा से बचा सकता है.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम वह कानून है जो भारत में साक्ष्य को नियंत्रित करता है और इस अधिनियम के अनुसार साक्ष्य कई प्रकार के होते है. यह निर्दिष्ट करता है कि कितने साक्ष्य हैं और कौन से साक्ष्य स्वीकार्य होंगे और कौन से नहीं.
मूल रूप से, इलेक्ट्रॉनिक प्रकार के साक्ष्य का उल्लेख नहीं किया गया था या साक्ष्य की परिभाषा के तहत कवर नहीं किया गया था. हालांकि, साक्ष्य की परिभाषा में 'इलेक्ट्रॉनिक रिकॉर्ड' को शामिल करने के लिए सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 द्वारा संशोधन किया गया.
कानून गवाहों को देखती है. बिना इनके किसी भी केस को जीत पाना मुमकिन ही नहीं है कह सकते हैं कि गवाह किसी भी केस के फैसले पर असर डालता है.
केन्द्रीय गृह राज्यमंत्री द्वारा लोकसभा में दिए गए जवाब के अनुसार इस प्रक्रिया के लिए दिल्ली एलएलयू उपकुलपति की अध्यक्षता में एक समिति का भी गठन किया गया है.
अतिरिक्त न्यायिक संस्वीकृति के तहत दिया गया बयान एक कमजोर साक्ष्य माना जाता है, लेकिन इसे पूरी तरह अस्वीकार नहीं होता क्योंकि उस व्यक्ति के पास झूठे सबूत देने का कोई कारण ही नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि अतिरिक्त न्यायिक संस्वीकृति के तहत दिया गया बयान एक कमजोर साक्ष्य है और इसे केवल तब स्वीकार्य बनाया जा सकता है, जब इससे पुख्ता सबूतों द्वारा प्रमाणित किया जाता है.
सह अपराधी द्वारा दिया गए साक्ष्य अविश्वास की नजर से देखा जाता है क्योंकि सह अपराधी उस अपराध में शामिल होते हैं इसलिए एक अनैतिक व्यक्ति होता है, झूठ बोलने की संभावना आदि के कारण उस पर विश्वास करना मुश्किल होता है.
'मृत्युपूर्व घोषणा' मृत व्यक्ति द्वारा दिये गया प्रासंगिक तथ्यों का लिखित या मौखिक बयान होता है. यह उस मृत व्यक्ति का कथन होता है, जो अपनी मृत्यु की परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए मर गया था.
अगर कोई व्यक्ति ये कहता है कि उसे उस बात पर विश्वास है जिस पर उसे विश्वास नहीं है, या फिर ये कहना कि वह उस बात को जानता है बल्कि वह नहीं जानता, वह भी इस धारा के तहत मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी पाया जाएगा.
भारतीय न्यायालयों ने समय-समय पर न्यायिक कार्यवाही में गवाहों के महत्व को स्वीकार किया है. गवाहों के बयान पर ही कई बार अहम फैसले लिए गए है.
अगर सुनवाई एकपक्षीय स्थगित कर दी गई हो तो प्रतिवादी उपसंजात (उपस्थित) हो सकेगा और उपसंजाति के लिए के लिए संरक्षित कर सकेगा. अदालत खर्च दिलवाकर या अन्यथा सुने जाने और लिखित कथन संस्थित किए जाने का आदेश दे सकेगा.
एक दिमागी रूप से बीमार व्यक्ति भी गवाही देने के लिए सक्षम है यदि वह उससे पूछे गए प्रश्नों को समझ सकता है और तर्कसंगत उत्तर दे सकता है. वहीं, कुछ परिस्थितियां ऐसी भी होती हैं, जिसमें कोई व्यक्ति गवाही देने के लिए सक्षम तो होता है, लेकिन उसे गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
Estoppel एक साक्ष्य का नियम है इसका प्रयोग ज़्यादातर बचाव रूप में किया जाता है. इस सिद्धांत की अवधारणा निष्पक्षता और तर्कशीलता की धारणाओं से संबंधित है, क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति की रक्षा करने के लिए बनाई है, जो किसी अन्य व्यक्ति के वादे या प्रतिनिधित्व पर भरोसा करता है.
'मृत्युपूर्व घोषणा' मृत व्यक्ति द्वारा दिये गया प्रासंगिक तथ्यों का लिखित या मौखिक बयान होता है. यह उस मृत व्यक्ति का कथन होता है, जो अपनी मृत्यु की परिस्थितियों का उल्लेख करते हुए मर गया था.
अगर कोई व्यक्ति ये कहता है कि उसे उस बात पर विश्वास है जिस पर उसे विश्वास नहीं है, या फिर ये कहना कि वह उस बात को जानता है बल्कि वह नहीं जानता, वह भी इस धारा के तहत मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी पाया जाएगा.
अगर सुनवाई एकपक्षीय स्थगित कर दी गई हो तो प्रतिवादी उपसंजात (उपस्थित) हो सकेगा और उपसंजाति के लिए के लिए संरक्षित कर सकेगा. अदालत खर्च दिलवाकर या अन्यथा सुने जाने और लिखित कथन संस्थित किए जाने का आदेश दे सकेगा.
एक दिमागी रूप से बीमार व्यक्ति भी गवाही देने के लिए सक्षम है यदि वह उससे पूछे गए प्रश्नों को समझ सकता है और तर्कसंगत उत्तर दे सकता है. वहीं, कुछ परिस्थितियां ऐसी भी होती हैं, जिसमें कोई व्यक्ति गवाही देने के लिए सक्षम तो होता है, लेकिन उसे गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
Estoppel एक साक्ष्य का नियम है इसका प्रयोग ज़्यादातर बचाव रूप में किया जाता है. इस सिद्धांत की अवधारणा निष्पक्षता और तर्कशीलता की धारणाओं से संबंधित है, क्योंकि यह एक ऐसे व्यक्ति की रक्षा करने के लिए बनाई है, जो किसी अन्य व्यक्ति के वादे या प्रतिनिधित्व पर भरोसा करता है.
मुकदमे के दौरान, जब प्रॉसिक्यूशन काउंसिल किसी व्यक्ति को अपने पक्ष में गवाही देने के लिए बुलाती है और वह व्यक्ति बुलाए जाने पर जांच के दौरान एकत्र किए गए अपने बयान की पुष्टि नहीं करता है या पक्ष विपरीत बयान देता है तब उसे पक्षद्रोही गवाह कहा जाता है
साथ ही यह अधिकार केवल आपराधिक कार्यवाही के खिलाफ ही उपलब्ध है और यह भी आवश्यक है कि पूछताछ के समय व्यक्ति के विरुद्ध एक औपचारिक रूप से आरोप लगाया गया हो. कोई व्यक्ति केवल इस आधार पर इस मौलिक अधिकार का उपयोग नहीं कर सकता है कि उसके बयान के बाद, उस पर आरोप लग सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने दो बेटों की हत्या के आरोपी पिता की सजा को बरकरार रखते हुए महत्वपूर्ण कानूनी व्यवस्था को स्पष्ट किया है.
यह धारा उन परिस्थितियों से संबंधित है, जहां कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि आरोपी द्वारा अपराध को अंजाम दिया है लेकिन वह व्यक्ति अपराधी को कानूनी सजा से बचाने के इरादे से साक्ष्य (Evidence) को गायब कर देता है या आरोपी को बचाने के लिए गलत सूचना देता है.
मामला लक्षद्वीप के sub-judge/chief judicial magistrate के खिलाफ शिकायत से जुड़ा है जिसमें पूर्व मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट पर याचिकाकर्ताओं ने आरोप लगाया कि उनके समक्ष सूचीबद्ध एक केस में उन्होंने 2015 में जांच अधिकारी के बयान में हेरफेर की थी.
सुप्रीम कोर्ट ने जम्मू कश्मीर और लद्दाख हाईकोर्ट और पठानकोर्ट जिला एवं सत्र न्यायालय के आदेश को रद्द कर दिया है. जिनके फैसले में आरोपी शुभम सांगरा को नाबालिग मानते हुए उसके मामले को किशोर न्याय बोर्ड में ट्रांसफर कर दिया था.