जानें किसे कहते हैं Judicial Confession कैसे है अलग? Watch Video
कई मामलों में उनके ऊपर खतरा होता है इसलिए उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गवाह कैसे लेना है इसकी भी एक कानूनी प्रक्रिया है. जिसके बारे में सीआरपीसी की धारा 161 में बताया गया है.
कई मामलों में उनके ऊपर खतरा होता है इसलिए उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गवाह कैसे लेना है इसकी भी एक कानूनी प्रक्रिया है. जिसके बारे में सीआरपीसी की धारा 161 में बताया गया है.
सत्र न्यायालय के समक्ष सुनवाई या वारंट-मामले की सुनवाई की स्थिति में, धारा 161 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयान के आधार पर अभियुक्त के खिलाफ आरोप दायर किया जा सकता है. यह धारा पुलिस को जांच के समय गवाहों से पूछताछ करने का अधिकार देती है.
अतिरिक्त न्यायिक संस्वीकृति के तहत दिया गया बयान एक कमजोर साक्ष्य माना जाता है, लेकिन इसे पूरी तरह अस्वीकार नहीं होता क्योंकि उस व्यक्ति के पास झूठे सबूत देने का कोई कारण ही नहीं है.
सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि अतिरिक्त न्यायिक संस्वीकृति के तहत दिया गया बयान एक कमजोर साक्ष्य है और इसे केवल तब स्वीकार्य बनाया जा सकता है, जब इससे पुख्ता सबूतों द्वारा प्रमाणित किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट हत्या के आरोपित इंद्रजीत दास की त्रिपुरा हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. हाई कोर्ट ने दास की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34 (हत्या और साझा मंशा) और धारा 201 (साक्ष्य मिटाना) के तहत सुनाई गई सजा बरकरार रखी थी.
कई मामलों में उनके ऊपर खतरा होता है इसलिए उनकी सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए गवाह कैसे लेना है इसकी भी एक कानूनी प्रक्रिया है. जिसके बारे में सीआरपीसी की धारा 161 में बताया गया है.
सत्र न्यायालय के समक्ष सुनवाई या वारंट-मामले की सुनवाई की स्थिति में, धारा 161 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयान के आधार पर अभियुक्त के खिलाफ आरोप दायर किया जा सकता है. यह धारा पुलिस को जांच के समय गवाहों से पूछताछ करने का अधिकार देती है.
सुप्रीम कोर्ट के कई निर्णयों द्वारा यह स्पष्ट किया गया है कि अतिरिक्त न्यायिक संस्वीकृति के तहत दिया गया बयान एक कमजोर साक्ष्य है और इसे केवल तब स्वीकार्य बनाया जा सकता है, जब इससे पुख्ता सबूतों द्वारा प्रमाणित किया जाता है.
सुप्रीम कोर्ट हत्या के आरोपित इंद्रजीत दास की त्रिपुरा हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. हाई कोर्ट ने दास की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34 (हत्या और साझा मंशा) और धारा 201 (साक्ष्य मिटाना) के तहत सुनाई गई सजा बरकरार रखी थी.