नई दिल्ली: अदालतों में मामलों की सुनवाई के लिए और उनके परिणामों को निर्धारित करने में गवाहों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. अधिवक्ता जिसे गवाही के लिए बुलाते हैं, उस पर उन्हें भरोसा होता है कि वह पक्ष के हित में गवाही देगा, लेकिन कभी-कभी गवाह शत्रुतापूर्ण हो जाता है और अधिवक्ता के उद्देश्य को ध्वस्त कर देता है. ऐसे गवाह को पक्षद्रोही गवाह (Hostile Witness) कहा जाता है.
पक्षद्रोही गवाह, एक शत्रुतापूर्ण गवाह, जिसे प्रतिकूल (Adverse) गवाह के रूप में जाना जाता है. यह परीक्षण में एक गवाह होता है जिसकी प्रत्यक्ष परीक्षा पर गवाही या तो खुले तौर पर पक्ष विरोधी है या जिसने गवाह को बुलाया था उस पक्ष की कानूनी स्थिति के विपरीत प्रतीत होती है.
सरल शब्दों में, मुकदमे के दौरान, जब प्रॉसिक्यूशन काउंसिल किसी व्यक्ति को अपने पक्ष में गवाही देने के लिए बुलाती है और वह व्यक्ति बुलाए जाने पर जांच के दौरान एकत्र किए गए अपने बयान की पुष्टि नहीं करता है या पक्ष विपरीत बयान देता है तब उसे पक्षद्रोही गवाह कहा जाता है. यह स्थिति कई मामलों में उत्पन्न होती है जहां गवाह व्यक्ति, बुलाने (गवाह को) वाले पक्ष के विपरीत में जवाब देते हैं.
‘पक्षद्रोही गवाह’ को भारतीय कानून में कहीं भी परिभाषित नहीं किया गया है. सबसे पहले ये पक्षद्रोही गवाह की अवधारणा 'सतपाल बनाम दिल्ली प्रशासन' के मामले में उठी. इस मामले में सर्वोच्च न्यायालय ने ‘पक्षद्रोही गवाह’ शब्द का उपयोग किया और उसका अर्थ बताया.
इस मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अभियोजन पक्ष ने अपने गवाह को शत्रुतापूर्ण गवाह के रूप में जिरह करने के लिए चुना है, सिर्फ इसलिए ऐसे गवाह के सबूत को पूरी तरह से शून्य नहीं कर सकता है.
कोर्ट ने कहा कि अगर गवाह एक प्रतिकूल गवाह साबित होता है, जो किसी तथ्य को साबित करने में नाकाम रहा है, तो ऐसे गवाह की गवाही को मिटाया नहीं जा सकता है. अदालत शत्रुतापूर्ण गवाह द्वारा दिए गए बयान पर भरोसा कर सकती है और उसकी सराहना कर सकती है. इसे साक्ष्य के रूप में उस हद तक स्वीकार किया जा सकता है जब तक कि कथन विश्वसनीय या प्रामाणिक पाया जाता है.
गवाह संरक्षण ना होना
अभियुक्तों द्वारा धन का प्रलोभन
आरोपी द्वारा डराया धमकाया जाना
परीक्षण लंबे समय तक होना
गवाहों को न्यायालय की पर्याप्त सुविधाओं का अभाव
आरोपीत द्वारा शक्ति का दुरुपयोग
कानूनी व्यवस्था या पुलिस का डर, राजनीतिक डर, आदि.
किसी आपराधिक मामले में दोषी व्यक्ति को सजा होने से जनता में भक्ति, ईमानदारी और न्यायपालिका के प्रति विश्वास का विकास होता है. लेकिन, आजकल अधिकांश आपराधिक मामलों के पलट जाने का खतरा होता है, जिसका एक कारण पक्षद्रोही गवाह भी हो सकता है और दोषी रिहा हो जाता है.
पक्षद्रोही गवाही एक गैर-जिम्मेदाराना आचरण है और ऐसा कर गवाह अपनी विश्वसनीयता खो देता है. यदि गवाह पक्षद्रोही हो जाए तो ऐसे स्थिति में, अधिवक्ता पक्षद्रोही गवाह के खिलाफ क्या कदम उठा सकता है? आइए जानते हैं.
अधिवक्ता न्यायाधीश से गवाह को पक्षद्रोही गवाह घोषित करने का अनुरोध कर सकता है. यदि न्यायाधीश फैसला करता है कि गवाह पक्षद्रोही है, तो अधिवक्ता गवाह को जिरह (Cross-Examination) के लिए बुला सकता है. मुकदमे से पहले गवाह ने जो बयान दिया था, उस पर अधिवक्ता अधिक जिरह कर सकता है और साक्ष्य अधिनियम की धारा 143, 145, 146 के तहत कुछ प्रमुख प्रश्न बिदुएं निर्धारित हैं जिसे पूछकर, गवाह से अनुकूल गवाही प्राप्त करने का प्रयास कर सकते हैं.
अधिवक्ता गवाहों की मिलीभगत को प्रकट करने के लिए भी जिरह की विधि का उपयोग कर सकता है.
IPC की धारा 193: मिथ्या साक्ष्य के लिए दंड
किसी न्यायिक कार्यवाही के किसी भी चरण में यदि कोई व्यक्ति जानबूझकर झूठी गवाही देता है तो झूठी गवाही देने वाला व्यक्ति किसी एक अवधि के लिए कारावास की सजा का भागी होगा जिसे सात साल तक बढ़ाया जा सकता है, और जुर्माना भी लगाया जा सकता है.
IPC की धारा 196: झूठे साक्ष्य का उपयोग करना
जो कोई भी किसी ऐसे साक्ष्य को, जिसके बारे में वह जानता है कि वह झूठा या मनगढ़ंत है, भ्रष्ट रूप से सच्चे या वास्तविक साक्ष्य के रूप में उपयोग करता है या उपयोग करने का प्रयास करता है, तो उसे उसी तरह दंडित किया जाएगा जैसे कि उसने मिथ्या साक्ष्य दिया या गढ़ा हो.
IPC की धारा 199: घोषणा में किया गया झूठा बयान जो कानून द्वारा साक्ष्य के रूप में प्राप्य है
यदि कोई व्यक्ति जो साक्ष्य प्राप्त करने के लिए कानून द्वारा बाध्य है, एक झूठा बयान देता है, जिसे वह जानता है कि यह सच नहीं है और ऐसा बयान मामले में किसी महत्वपूर्ण तथ्य से संबंधित है, उसे उसी तरह से दंडित किया जाता है जैसे कि उसने झूठा सबूत दिया हो.
भारतीय साक्ष्य अधिनियम (Indian Evidence Act) की धारा 154: पक्षकार द्वारा अपने ही साक्षी से प्रश्न
अदालत गवाह को बुलाने वाले व्यक्ति को अपने विवेक से कोई भी प्रश्न पूछने की अनुमति दे सकती है, जिसे विरोधी पक्ष द्वारा जिरह में रखा जा सकता है. यह प्रावधान केवल उन प्रश्नों की अनुमति देता है जो एक जिरह के दौरान पूछा जाना सही है.
इस प्रावधान के लागू होने से पहले तक कानून में कहीं भी गवाह को “पक्षद्रोही” घोषित करने की अनिवार्यता का वर्णन नहीं है.
जेसिका लाल मामला: भारत में पक्षद्रोही गवाह को दर्शाने वाला सबसे बड़ा मामला जेसिका लाल की हत्या का मामला था. जेसिका लाल, दिल्ली के एक बिना लाइसेंस वाले बार में काम करने वाली एक मॉडल थी. आधी रात को, बार में शराब खत्म होने के कारण जेसिका ने मनु शर्मा और उसके तीन दोस्तों के समूह को शराब देने से इनकार कर दिया. फिर मनु शर्मा ने पिस्तौल निकाली और दो बार चलाया, जिसमें दूसरी गोली जेसिका के सिर में लगी और उसकी मौत हो गई. इस मामले में कुल 80 गवाह पक्षद्रोही बन गए थे. वर्ष 2006 में, परीक्षण न्यायालय ने इन गवाहों के बयानों के आधार पर मनु शर्मा को बरी कर दिया, जिसके बाद पूरे देश में भारी हंगामा हुआ था. परीक्षण न्यायालय के इस निर्णय के संबंध में अपील स्वीकार की, जो निचली अदालत द्वारा पहले ही लिए जा चुके साक्ष्यों पर आधारित थी. शर्मा को आजीवन कारावास और जुर्माने से दंडित किया गया.
बेस्ट बेकरी मामला: 1 मार्च, 2002 को आधी रात में, गुजरात के वड़ोदरा में "बेस्ट बेकरी" नामक एक व्यावसायिक संस्था को लोगों की अनियंत्रित भीड़ ने जला दिया था. इस हादसे में 14 लोगों की मौत हो गई. साबरमती एक्सप्रेस में जलाए गए 56 लोगों की मौत का बदला लेने के लिए इस हमले को प्रतिशोध की कार्रवाई का हिस्सा बताया गया था. दबंग और अमीर आरोपियों ने गवाहों को पक्षद्रोही होने पर मजबूर कर दिया. गवाह अभियुक्तों की पहचान करने में विफल रहा, इसलिए अभियोजन पक्ष उन आरोपों को साबित करने में असक्षम रहें. बाद में, पक्षद्रोही गवाहों में से एक ने स्वीकार कर लिया कि वह अपने जीवन के भय के कारण पक्षद्रोही हो गई थी. ट्रायल कोर्ट ने सभी 21 आरोपियों को बरी कर दिया था.
कई लोग इस मामले को न्याय की विफलता के उदाहरण के तौर पर भी बताते हैं.