सेक्सटॉर्शन से कैसे बचें? कहां करें शिकायत?
सेक्सटॉर्शन करना एक गंभीर अपराध है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए. अगर कोई किसी को ब्लैकमेल कर रहा है, तो पीड़ित को हमेशा कानून से मदद लेनी चाहिए ना की चुपचाप सहना चाहिए.
सेक्सटॉर्शन करना एक गंभीर अपराध है और इसे गंभीरता से लेना चाहिए. अगर कोई किसी को ब्लैकमेल कर रहा है, तो पीड़ित को हमेशा कानून से मदद लेनी चाहिए ना की चुपचाप सहना चाहिए.
एकांत कारावास जैसा की इसके शब्दों से ही सामने आता है कि अपराधी को जेल में अकेले रहने की सजा। IPC की धारा 73 और 74 में एकांत कारावास के बारे में बताया गया है और उससे सम्बंधित बातों को रेखांकित किया गया है।
इन सब झगड़ों की सुलह या मामलों पर सुनवाई फैमिली कोर्ट में होती है। अब आप सोच रहे हैं कि क्या है फैमिली कोर्ट और कैसे होती है इसमें मामलों पर सुनवाई। तो आइए आपको बताते हैं।
IPC में हर अपराध की अलग परिभाषा दी गई है. इसके अंदर आने वाले धारा 114 और 115 भी किसी अपराध और उसके तहत क्या सजा होनी चाहिए उसके बारे में बताता है.
भारत में किसी व्यक्ति को अपराध के लिए उकसाना कानून के नजर में दंडनीय है. धारा 111 के तहत इस बात का जिक्र है कि अगर आप किसी को बहका रहे हैं किसी अपराध के लिए तो बहकाने वाले को किस तरह की सजा मिलेगी. जब जिस अपराध के लिए उकसाया गया है. उस अपराध के बजाय कोई और अपराध हो जाए तो बहकाने वाले को क्या सजा मिलेगी. इसी के बारे में धारा 111 में बताया गया है.
यह धारा उन परिस्थितियों से संबंधित है, जहां कोई व्यक्ति यह जानते हुए कि आरोपी द्वारा अपराध को अंजाम दिया है लेकिन वह व्यक्ति अपराधी को कानूनी सजा से बचाने के इरादे से साक्ष्य (Evidence) को गायब कर देता है या आरोपी को बचाने के लिए गलत सूचना देता है.
कानून के अनुसार बच्चे वे हैं जो 18 वर्ष से कम आयु के हैं लेकिन भारतीय दंड संहिता के अनुसार, यह केवल बारह वर्ष से कम आयु के बच्चों की सुरक्षा करता है. जबकि, किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार, जो बच्चे अपराध करते हैं, उन्हें "कानून के साथ संघर्ष में बच्चे" (children in conflict with law) कहा जाता है
जिस भी अपराध के लिए उकसाया है उस अपराध अपराध में जितनी भी अधिकतम सजा निर्धारित की गई है उसकी एक चौथाई सजा उकसाने वाले को दी जाती है.लेकिन ये सजा ओर भी सख्त हो जाती है जब उकसाने वाला व्यक्ति कोई लोक सेवक हो.
साइबर फ्रॉड का शिकार होने से बचने के लिए हमें कई तरह के एहतियात बरतने चाहिए.गृह मंत्रालय (MHA) ने साइबर अपराध की रोकथाम पर जागरूकता फैलाने के लिए @Cyberdost ट्विटर हैंडल भी लॉन्च किया है.
साइबर अपराध होने पर सबसे पहली बात जो आपको याद रखनी है वह है घटना के बाद बितने वाला समय. आप जितना जल्दी अपने साथ हुई ठगी या साइबर क्राईम की घटना को रिपोर्ट करेंगे साइबर टीम उतना ही जल्दी एक्शन लेगी. इससे आपके साथ हुई घटना और नुकसान की रिकवरी की संभावना भी उतनी ही बढ़ जाएगी.
एक नागरिक अपने ऊपर हो रहे हमले को रोकने के लिए, दुष्कर्म, चोरी, डकैती, हमले में मृत्यु की आशंका, गंभीर चोट, अप्राकृतिक दुष्कर्म, अपहरण, एसिड हमले की आशंका की स्थिति में खुद को किसी भी हमले से बचाने के लिए हमलावर पर वार करना कोई अपराध नहीं माना जाता बल्कि यह एक अधिकार है.
चोरी के मोबाइल, लैपटॉप या अन्य इलेक्ट्रॉनिक सामग्री का प्रयोग करने को सूचना प्रौद्योगिकी अधिनियम, 2000 या आईटी एक्ट के तहत एक अपराध माना गया है.ऐसा व्यक्ति आईटी एक्ट की धारा 66 ख के तहत दोषी होगा.
किसी व्यक्ति के विश्वास का आपराधिक हनन करने वाले अपराधी को अमानत में खयानत करने के लिए IPC की धारा 406 में उसे दोषी घोषित किया जाता है. लेकिन इसके लिए अलग अलग पदों के अनुसार भी सजा का प्रावधान IPC की धारा 406, 407, 408 और 409 में अलग अलग किया गया है.
हालांकि ये अपराध एक जमानती और गैर-संज्ञेय अपराध की श्रेणी में आता है. इस अपराध को किसी भी श्रेणी के मजिस्ट्रेट द्वारा सुना जा सकता है और जमानत भी दी जा सकती है.
इस अधिनियम में किसी पुरुष द्वारा महिला के निजी कार्य करते समय, घर में या किसी और जगह फोटो खिंचवाने या वीडियो रिकॉर्ड करने या सिर्फ देखने की कोशिश में झाँकते हुए पकड़ा जाना भी अपराध है. होटलों में या वाशरूम में गुप्त कैमरा लगाकर महिला का फोटो, वीडियो या उसे देखने पर भी दोषी को 7 साल की सजा होगी.
संविधान के अनुसार किसी भी नागरिक या व्यक्ति को तक तक किसी अपराध का दोषी नहीं माना जाएगा जब तक सबूतो के आधार पर अदालत उसे दोषी घोषित नहीं कर देती. इसलिए गिरफतार हुए व्यक्ति को भी हमारे संविधान में कई अधिकार दिए गए है.
आप घर बैठकर ही कंप्यूटर या मोबाइल की मदद से ONLINE FIR कैसे कर सकते है.देश के अधिकांश राज्य और केंद्र शासित प्रदेशों में दस्तावेज गुमशुदगी की शिकायत, चोरी होने की शिकायत सहित कई छोटे अपराधों की एफआईआर दर्ज करने की सुविधा दी जा रही है
सीआरपीसी (CrPC) या दंड प्रक्रिया संहिता 1973 में कई ऐसी धाराएं है जिसके तहत इस तरह से गिरफ्तारी हो सकती है.पुलिस को यह पूर्ण अधिकार है कि वह विश्वशनीय सूचना के आधार किसी भी व्यक्ति को बिना किसी वारण्ट के गिरफ्तार कर सकती है