उमर खालिद की जमानत याचिका पर Delhi Police को SC का नोटिस, 6 सप्ताह में जवाब पेश करने के आदेश
उमर खालिद ने Delhi High Court के अक्टूबर 2022 के आदेश के खिलाफ Supreme Court का रूख किया है, दिल्ली हाईकोर्ट खालिद को जमानत देने से इंकार कर दिया था.
उमर खालिद ने Delhi High Court के अक्टूबर 2022 के आदेश के खिलाफ Supreme Court का रूख किया है, दिल्ली हाईकोर्ट खालिद को जमानत देने से इंकार कर दिया था.
High Court जज के लिए विचाराधिन उत्तरप्रदेश के एक न्यायिक अधिकारी के मामले में Supreme Court ने तत्काल सुनवाई से इंकार किया है.
Gauhati High Court ने श्रीनिवास बीवी केा अग्रिम जमानत देने से इंकार करते हुए याचिका को खारिज करने के साथ ही उनके खिलाफ दर्ज एफआईआर को भी रद्द करने से इंकार कर दिया है.
अग्रिम जमानत का मतलब गिरफ्तारी की आशंका में जमानत पाना है. यानि पुलिस द्वारा आपके खिलाफ कोई प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज़ की गई है और आपको आशंका है कि पुलिस आपको गिरफ्तार कर सकती है, तो इस हालत में आप कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल करके गिरफ्तारी से पहले ही जमानत पा सकते हैं.
दिल्ली पुलिस ने हाईकोर्ट के फैसले का विरोध करते अपनी दलील में कहा कि दंगों में 53 लोग मारे गए और 700 से अधिक लोग घायल हुए थे. पुलिस ने कहा कि हाईकोर्ट द्वारा फैसले में की गयी व्याख्या आतंकी मामलों में अभियोजन को कमजोर करेगी.
रासुका को राष्ट्रीय सुरक्षा कानून (National Security Act -NSA) कहते हैं. यह कानून ऐसे व्यक्ति को एहतियातन महीनों तक हिरासत में रखने का अधिकार देता है जिससे प्रशासन को राष्ट्रीय सुरक्षा और कानून व्यवस्था के लिए खतरा महसूस हो.
Manish Sisodia ने Bail दायर करते हुए अदालत से अनुरोध किया है कि जांच के लिए अब उनकी हिरासत की जरूरत नहीं है, इसलिए उन्हे अब जमानत पर रिहा किया जाना चाहिए.
Allahabad High Court ने कहा कि पीड़िता वह व्यक्ति है जो अदालत के समक्ष आती है और मुकदमे के दौरान यदि वह बलात्कार के आरोप से इनकार करती है और पक्षद्रोही हो जाती है, तो राज्य सरकार द्वारा प्रदान की गई मुआवजे की राशि को उसके पास रखने का कोई औचित्य नहीं है.
Default Bail का उल्लेख CrPC की धारा 167(2) में किया गया है. इसके तहत यदि पुलिस यथास्थिति 90 दिन या 60 दिन के अंदर न्यायालय के समक्ष चार्ज शीट दाखिल करने में असफल रहती है तो आरोपी जमानत मांग सकता है. जमानत को ही Default Bail कहा जाता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा था कि इस बात पर कोई रोक नहीं है कि एक बार किसी व्यक्ति को डिफ़ॉल्ट जमानत पर रिहा कर दिया गया है, तो उसे मेरिट और जांच में सहयोग नहीं करने जैसे आधारों पर उसकी जमानत को रद्द नहीं किया जा सकता है.
हमारे देश में कुछ कानून ऐसे हैं जिसके तहत गिरफ्तारी हो जाने पर जमानत मिलना बहुत कठिन होता है यहां तक कि गिरफ्तारी के वक्त उसकी वजह भी नहीं बताई जाती है.
Justice Bechu Kurian Thomas की एकल पीठ इस मामले में पीड़ित और शिकायतकर्ता डॉक्टर द्वारा निचली अदालत के फैसले के खिलाफ दायरा याचिका पर सुनवाई कर रही थी. डॉक्टर ने CRPC की धारा 482 के तहत याचिका दायर कर हमलावरों को निचली अदालत द्वारा दी गई Bail को रद्द करने का अनुरोध किया था.
सिसोदिया को सीबीआई ने 26 फरवरी को गिरफ्तार किया था, इस मामले में सिसोदिया की ओर से दायर जमानत आवेदन को ट्रायल कोर्ट ने 31 मार्च को जमानत याचिका खारिज कर दी थी.
Allahabad High Court ने इस मामले में ना केवल आरोपी को जमानत दी बल्कि राज्य के DGP को जांच अधिकारियों को उनके कर्तव्यों की याद दिलाने के लिए आवश्यक कार्रवाई करने का आदेश दिया है ताकि सामान्य तौर पर सभी आपराधिक मामलों और गोहत्या से संबंधित मामलों में निष्पक्ष जांच सुनिश्चित की जा सके.
ED की ओर से आज जमानत याचिका पर अदालत में जवाब पेश किया गया, ED ने अपने जवाब के साथ पैन ड्राईव सिसोदिया से जुड़े दस्तावेज भी सौपे है. सिसोदिया के अधिवक्ता द्वारा ईडी के जवाब के रिप्लाई के लिए समय मांगे जाने पर अदालत ने याचिका पर सुनवाई टाल दी.
सुप्रीम कोर्ट सतेंद्र कुमार अंतिल के मामले में पूर्व में दिए अपने जुलाई 2022 के फैसले की पालना से जुड़ी याचिका पर सुनवाई कर रहा था.पीठ ने कहा कि इस तरह के आदेश उत्तरप्रदेश की अदालतों द्वारा सबसे अधिक बार पारित किए गए है.
जस्टिस एस रवींद्र भट और दीपांकर दत्ता की सुप्रीम कोर्ट की खंडपीठ ने मामले में सभी तथ्यों पर विचार करते हुए कहा कि याचिकाकर्ता को अग्रिम जमानत दी जानी चाहिए और अदालत ने उसे ट्रायल कोर्ट की शर्तों पर अग्रिम जमानत देने का आदेश दिया.
मुख्य न्यायाधीश को लिखे पत्र में Advocates' Association Bengaluru के अध्यक्ष विवेक सुब्बा रेड्डी और महासचिव टी जी रवि ने कहा है कि ‘कर्नाटक हाईकोर्ट में आम तौर पर अग्रिम जमानत जैसे नए मामलों को सूचीबद्ध होने में कई दिन और कई सप्ताह लगते हैं, लेकिन वीआईपी (अति महत्वपूर्ण लोगों से जुड़े) मामलों पर तुरंत विचार किया जाता है’