CJI DY Chandrachud: सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने स्पीडी ट्रायल के संभव होने पर चिंता जाहिर की. सीजेआई ने बताया कि नये कानून के लागू होने के बाद भी अपराधिक मुकदमों का स्पीडी ट्रायल से निपटारा संभव नहीं है. स्पीडी ट्रायल के संभव होने के लिए अदालतों को उचित संसाधनों को मुहैया कराने की जरूरत होगी. बता दें कि सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने उपरोक्त बातें विधि और न्याय मंत्रालय द्वारा आयोजित कॉन्फ्रेंस के उद्घाटन के दौरान कही. सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने नये कानूनों का आना भारतीय न्याय व्यवस्था के लिए ऐतिहासिक बताया.
भारतीय न्याय संहिता (BNS), भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) एवं भारतीय साक्ष्य अधिनियम (BEA) ये तीनों कानून देशभर में 1 जुलाई से लागू होने जा रहे हैं. विधि एवं न्याय मंत्रालय द्वारा आयोजित इस समारोह में केन्द्रीय कानून मंत्री अर्जुन राम मेघवाल, अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी, सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता एवं केन्द्रीय मुख्य सचिव अजय भल्ला मौजूद रहें. कॉन्फ्रेंस का टाइटल 'इंडिया प्रोग्रेसिव पाथ इन द ऐडमिनिस्ट्रेटिव ऑफ क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम' रखा गया जिसके उद्घाटन समारोह के दौरान सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने उक्त बातें कहीं.
सीजेआई ने तीनों कानून की तारीफ की. सीजेआई ने कहा, भारत बड़े बदलाव के लिए तैयार है. इन कानूनों के लागू होते भारत की अपराधिक न्यायिक प्रणाली पूरी तरह से बदल जाएगी. BNSS में ट्रायल और टाइमलाइन का होना एक सुखद निर्णय है.
सीजेआई ने कहा,
"बीएनएसएस प्रावधान करता है कि आपराधिक मुकदमे तीन साल में पूरे होने चाहिए और फैसला आरक्षित होने के 45 दिनों के भीतर सुनाया जाना चाहिए. यह शर्त किसी भी लंबित अपराधिक मामलों के समाधान के लिए आरोपी और पीड़ित के लिए ताजी हवा का झोंका है."
सीजेआई ने सुनवाई के लिए उचित इंफ्रास्ट्रचर लागू करने की बात भी कहीं. सीजेआई ने कहा, अगर अदालत के पास उचित संसाधन नहीं हो, तो निर्धारित लक्ष्य को हासिल करने में कठिनाई आएगी.
सीजेआई ने कहा,
"अगर अदालत के बुनियादी ढांचे और अभियोजन पक्ष के पास प्रौद्योगिकी का उपयोग करने और एक कुशल और त्वरित सुनवाई करने के लिए भौतिक संसाधनों की कमी है, तो बीएनएसएस की गारंटी केवल निर्देशिका और कार्यान्वयन योग्य नहीं होने का जोखिम हो सकता है,"
बता दें कि ये तीनों अपराधिक कानून 1 जुलाई, 2024 से लागू होंगे. इन कानूनों को संसद में 21 दिसंबर को पारित किया गया. वहीं, 25 दिसंबर को राष्ट्रपति द्रोपदी मुर्मू ने मंजूरी दी थी.