गिरफ़्तारी वारंट कब जारी किया जाता है.
गिरफ्तारी वारंट का नाम सुनते ही कई लोगों के पसीने छूट जाते हैं. हालाँकि इसको लेकर कई सवाल भी होते हैं, जैसे ये कब, किसको और किसके द्वारा जारी किया जाता है. ऐसे में आज हम आपको इन सवालों के ही जवाब देंगें.
गिरफ्तारी वारंट का नाम सुनते ही कई लोगों के पसीने छूट जाते हैं. हालाँकि इसको लेकर कई सवाल भी होते हैं, जैसे ये कब, किसको और किसके द्वारा जारी किया जाता है. ऐसे में आज हम आपको इन सवालों के ही जवाब देंगें.
High Court की जबलपुर बेच ने राज्य के पुलिस महानिदेशक को इस मामले में एसपी को निलबित करने का आदेश देते हुए कहा कि है कि अब इस मामले में खुद वारंट तामील कराएं. साथ ही हाईकोर्ट के अगले आदेश तक एसपी निलंबित रहेंगे.
मान्यता प्राप्त शिक्षक संघ द्वारा दायर अवमानना याचिका पर न्यायमूर्ति इरशाद अली की एकल पीठ ने यह आदेश पारित किया. विभाग के प्रमुख सचिव, सचिव और निदेशक के खिलाफ पिछले महीने कोर्ट के आदेश का पालन नहीं करने के आरोप तय किए गए थे.
अगर पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेती है जिस पर गंभीर अपराध के आरोप हैं और उस मामले में जांच के लिए उस व्यक्ति से पूछताछ करने की जरुरत होती है तो ऐसे में सीआरपीसी (CrPC) की धारा 167 के तहत उसे 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेश करना होता है.
अकारण गिरफ्तारी एक नागरिक को मिले स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों का हनन माना जाता है. लेकिन CrPC के अनुसार कई मामलों में पुलिस एक नागरिक को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है.
किसी कोर्ट द्धारा किसी मुजरिम को सजा-ए-मौत मिलने के बाद कोर्ट जेल प्रशासन को कैदी के लिए डेथ वारंट जारी करती है. वारंट जारी होने के 15 दिनों के अंदर किसी भी हाल में दोषी को फांसी दी जाती है.
हमारे देश में किसी भी वर्ग के धार्मिक भावनाओं को ठेस पहुंचाने का अधिकार किसी के पास नहीं है और अगर कोई ऐसा करता है तो कानून के नजर में उसे अपराधी माना जाएगा. जिसके लिए उसे सजा भी दी जाएगी.
जब भी फांसी की सजा की बात होती है तब- तब दो शब्दों का जिक्र जेल, कोर्ट, कचहरी, शहर-कस्बे से लेकर गांव-देहात तक जरुर होता है वो शब्द हैं "ब्लैक वारंट" और “डेथ वारंट. आइए जानते हैं कि आखिर ये दोनों वारंट हैं क्या?
इस धारा के स्पष्टीकरण में बताया गया है कि इस धारा में दी गई सजा, उस सजा के अतिरिक्त है जिस अपराध के लिए उसे हिरासत में लिया जाना था या आरोप लगाया गया था, या उसे दोषी ठहराया गया था.
भारतीय दंड सहिंता की धारा 220 के अनुसार यदि कोई व्यक्ति किसी सम्मानित पद या कार्यालय में होने के नाते अगर उस पद का गलत इस्तेमाल करता है और वह किसी भी व्यक्ति पर मुकदमे करता है या कैद में रखता है, तो उसके खिलाफ कार्रवाई की जा सकती है.
कई बार टैक्स कलेक्शन करने वाले अधिकारी भी व्यापारियों को पूछताछ और जांच के बहाने अवैध रूप से हिरासत में ले लेते हैं. ऐसी कार्रवाई के समय, वह ऐसा जताते हैं कि यह सब न्याय और नियम के अनुसार ही हो रहा है. तो आज हम आपको बता दें कि भारतीय कानून के अंतर्गत, इस तरह की कार्यवाही एक अपराध है.
कहते हैं गुनाह करने वाले से भी बड़ा गुनहगार होता है उस गुनाह को छिपाने वाले. कानूनी रूप से इसे एक अपराध माना जाता है. हमारे देश में इसे लेकर भारी सजा का भी प्रावधान है.
भारतीय दंड सहिंता (Indian Penal Code) में 208 और 210 के तहत परिभाषित अपराध के अनुसार जो कोई व्यक्ति, किसी राशि के लिए धोख से अपने खिलाफ डिक्री (Decree) होने देता है या अपने हित में डिक्री (Decree) हासिल करता है, तो दोनों ही स्थिति में उसे दंडित किया जा सकता है. आइए जानते हैं IPC की धारा 208 और 210 के विषय में कुछ अहम बातें.
कई बार टैक्स कलेक्शन करने वाले अधिकारी भी व्यापारियों को पूछताछ और जांच के बहाने अवैध रूप से हिरासत में ले लेते हैं. ऐसी कार्रवाई के समय, वह ऐसा जताते हैं कि यह सब न्याय और नियम के अनुसार ही हो रहा है. तो आज हम आपको बता दें कि भारतीय कानून के अंतर्गत, इस तरह की कार्यवाही एक अपराध है.
कहते हैं गुनाह करने वाले से भी बड़ा गुनहगार होता है उस गुनाह को छिपाने वाले. कानूनी रूप से इसे एक अपराध माना जाता है. हमारे देश में इसे लेकर भारी सजा का भी प्रावधान है.
भारतीय दंड सहिंता (Indian Penal Code) में 208 और 210 के तहत परिभाषित अपराध के अनुसार जो कोई व्यक्ति, किसी राशि के लिए धोख से अपने खिलाफ डिक्री (Decree) होने देता है या अपने हित में डिक्री (Decree) हासिल करता है, तो दोनों ही स्थिति में उसे दंडित किया जा सकता है. आइए जानते हैं IPC की धारा 208 और 210 के विषय में कुछ अहम बातें.