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पुलिस द्वारा गिरफ्तार किए जाने और हिरासत में रखने में क्या अंतर है?

अगर पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेती है जिस पर गंभीर अपराध के आरोप हैं और उस मामले में जांच के लिए उस व्यक्ति से पूछताछ करने की जरुरत होती है तो ऐसे में सीआरपीसी (CrPC) की धारा 167 के तहत उसे 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेश करना होता है.

Written by My Lord Team |Published : March 27, 2023 7:06 AM IST

नई दिल्ली: हत्या, रेप, घोटाला, किसी को धमकी देना जैसे अपराधों से संबंधित खबरों में अक्सर सुना जाता है कि पुलिस ने किसी को गिरफ्तार कर लिया या किसी को इतने दिनों के लिए हिरासत में भेज दिया गया है. इस तरह के मामलों में हिरासत और गिरफ्तारी जैसे शब्द हमेशा इस्तेमाल किए जाते हैं. बहुत से लोगों को ये लगता है कि दोनों ही शब्द एक समान है यानि वो एक दूसरे के पर्यायवाची हैं लेकिन ये सुनने में सिर्फ एक जैसे लगते हैं कानूनी भाषा में इनका अर्थ अलग - अलग है.

गिरफ्तारी (Arrest)

जब भी पुलिस या कोई जांच एजेंसी किसी आरोपित को या किसी संदिग्ध को पकड़ती है तो उसे गिरफ्तार करना कहते हैं. यह एक ऐसी प्रक्रिया है जिसमें किसी व्यक्ति की आजादी को कानून के द्वारा छीन लिया जाता है. किसी भी व्यक्ति की गिरफ्तारी के पीछे का उद्देश्य होता है किसी की सुरक्षा, जांच या फिर सबूतों के साथ छेड़छाड़ होने से रोकना.

जैसे - हाल ही में फिल्म अभिनेता सलमान खान को धमकी देने के मामले में मुंबई पुलिस ने आरोपित धाकड़ राम विश्नोई को जोधपुर से गिरफ्तार कर लिया. आरोपित ई-मेल के जरिए सलमान खान को जान से मारने की धमकी दे रहा था. यहां पुलिस ने किसी आरोपित को किसी अभिनेता की सुरक्षा को देखते हुए इस व्यक्ति को गिरफ्तार किया.

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हिरासत (Custody) किसे कहते हैं

हिरासत को अंग्रेजी में कस्टडी कहा जाता है. जिसका अर्थ है सुरक्षात्मक देखभाल के लिए किसी को पकड़ना. हिरासत और गिरफ्तारी दोनों ही अलग- अलग हैं. हर गिरफ्तारी में हिरासत होती है लेकिन हर हिरासत में गिरफ्तारी नहीं होती है.

हिरासत दो प्रकार के होते हैं.

1. पुलिस हिरासत (Police Custody)

2. न्यायिक हिरासत (Judicial Custody)

1.पुलिस हिरासत (Police Custody)

जब पुलिस किसी व्यक्ति को अपने कब्जे में लेती है तो उस प्रक्रिया को पुलिस हिरासत में लेना कहते है. हिरासत में कब तक रखना है उसकी अवधी क्या होगी ये उस केस की गंभीरता पर निर्भर करता है कि उस व्यक्ति पर किस तरह के अपराध का आरोप लगा है. जैसे अगर पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेती है जिसपर कोई मामूली अपराध का आरोप हो तो ऐसे में पुलिस को उसे 24 घंटे के अंदर ही उस व्यक्ति को छोड़ना पड़ता है.

वहीं अगर पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेती है जिस पर गंभीर अपराध के आरोप हैं और उस मामले में जांच के लिए उस व्यक्ति से पूछताछ करने की जरुरत होती है तो ऐसे में सीआरपीसी (CrPC) की धारा 167 के तहत उसे 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेश करना होता है. पुलिस अगर कोर्ट में ये मांग करती है कि संबंधित मामले की गंभीरता को देखते हुए उस व्यक्ति को पुलिस अपनी हिरासत में रखना चाहती है. ताकि संबंधित अपराध की जांच के लिए पुलिस पूछताछ, घटनास्थल का दौरा और दूसरी कार्रवाई की जा सके. पुलिस हिरासत पर कोर्ट उस मामले की गंभीरता के आधार पर आदेश देता है. विशेष मामलों में पुलिस हिरासत को 15 दिन से बढ़ाकर 30 दिन भी किया जा सकता है.

2.न्यायिक हिरासत (Judicial Custody)

जब किसी अपराध से संबंधित व्यक्ति को कोर्ट में पेश किए जाने के बाद मजिस्ट्रेट उसे पुलिस को सौंपने की बजाय अपने संरक्षण में रखता है. तो उसे न्याय की हिरासत यानि न्यायिक हिरासत या ज्यूडिशियल कस्टडी कहते हैं.

न्यायिक हिरासत में भेजे गए व्यक्ति के संरक्षण की जिम्मेदारी मजिस्ट्रेट की होती है. अगर किसी व्यक्ति को न्यायिक हिरासत में भेजा जाता है तो पुलिस को उस मामले में 60 दिन के अंदर- अंदर आरोप पत्र पेश करना जरुरी होता है. अगर कोई व्यक्ति किसी ऐसे अपराध में पकड़ा गया है जिसकी सजा 10 साल से अधिक है तो ऐसे में अदालत जेल की अवधि 60 दिन से बढ़ाकर 90 दिन भी कर सकती है.

पुलिस हिरासत और न्यायिक हिरासत में अंतर

1. पुलिस हिरासत में व्यक्ति को थाने में रखा जाता है तो वहीं न्यायिक हिरासत में व्यक्ति को जेल में रखा जाता है.

2. पुलिस हिरासत में लिए गए व्यक्ति को 24 घंटे के भीतर भीतर कोर्ट में पेश करना जरुरी होता है तो वहीं न्यायिक हिरासत की कोई समय अवधि नहीं होती है. जब तक उस मामले की जांच चलती है तब तक उस व्यक्ति को न्यायिक हिरासत में रखा जाता है.

3. पुलिस कस्टडी में संबंधित व्यक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी पुलिस की होती है. तो वहीं न्यायिक हिरासत में व्यक्ति की सुरक्षा की जिम्मेदारी न्यायाधीश की होती है.

5. लूट, हत्या या चोरी के मामलों में पुलिस कस्टडी होती है. जबकि अन्य सभी मामलों में जब व्यक्ति कोर्ट की अवहेलना कर रहा हो या उसकी जमानत खारिज कर दी जाती है तो उसे न्यायिक हिरासत में ले लिया जाता है.

6. पुलिस हिरासत में रखे व्यक्ति को पुलिस बिना मजिस्ट्रेट या जज के इजाजत के उससे पूछताछ कर सकती है. न्यायिक हिरासत में केवल मजिस्ट्रेट ही पूछताछ (Interrogation) कर सकते हैं लेकिन अगर पुलिस या अन्य जांच एजेंसी पूछताछ करना चाहती हैं तो इसके लिए उन्हे मजिस्ट्रेट या जज से इजाजत लेनी होती है.अदालत को लगता है तो वह इस मांग को खारिज भी कर सकती है.