राजद्रोह कानून की वैधता पर संविधान पीठ करेगी सुनवाई: सुप्रीम कोर्ट
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को चीफ जस्टिस के समक्ष कागजात पेश करने का निर्देश दिया ताकि कम से कम पांच जजों वाली पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक पक्ष पर उचित निर्णय लिया जा सके.
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को चीफ जस्टिस के समक्ष कागजात पेश करने का निर्देश दिया ताकि कम से कम पांच जजों वाली पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक पक्ष पर उचित निर्णय लिया जा सके.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर 16 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
प्रतिवादी (Defendant) ने अदालत में यह तर्क दिया कि राजद्रोह का आरोप केवल जो वास्तविक लेखक जिन्होने उस लेख को लिखा है उनपर पर ही धारा 124A के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, न कि प्रकाशक और अन्य व्यक्तियों पर जिन्होंने इस लेखन के प्रकाशन में मदद की. यह तथ्य पर आधारित था कि मूल रूप से अधिनियमित धारा 124 A में यह उल्लेख नहीं था कि लेखक के अलावा किसी अन्य द्वारा राजद्रोही लेखन का प्रकाशन भी अपराध माना जाएगा.
पूर्व सीजेआई जस्टिस ललित उस बात को दोहरा रहे थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2016 को भी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दोहराया था. जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली जिस पीठ ने ये आदेश दिया था, जस्टिस यूयू ललित उस दो सदस्य पीठ के दूसरे सदस्य थे.
बेंच ने सुप्रीम कोर्ट की रजिस्ट्री को चीफ जस्टिस के समक्ष कागजात पेश करने का निर्देश दिया ताकि कम से कम पांच जजों वाली पीठ के गठन के लिए प्रशासनिक पक्ष पर उचित निर्णय लिया जा सके.
एडिटर्स गिल्ड ऑफ इंडिया सहित अन्य याचिकाकर्ताओं की ओर से दायर 16 याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार की ओर से पेश हुए अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने कहा कि इसे लेकर संसद के मानसून सत्र में प्रस्ताव पेश किया जा सकता है.
प्रतिवादी (Defendant) ने अदालत में यह तर्क दिया कि राजद्रोह का आरोप केवल जो वास्तविक लेखक जिन्होने उस लेख को लिखा है उनपर पर ही धारा 124A के तहत मुकदमा चलाया जा सकता है, न कि प्रकाशक और अन्य व्यक्तियों पर जिन्होंने इस लेखन के प्रकाशन में मदद की. यह तथ्य पर आधारित था कि मूल रूप से अधिनियमित धारा 124 A में यह उल्लेख नहीं था कि लेखक के अलावा किसी अन्य द्वारा राजद्रोही लेखन का प्रकाशन भी अपराध माना जाएगा.
पूर्व सीजेआई जस्टिस ललित उस बात को दोहरा रहे थे जिसे सुप्रीम कोर्ट ने 6 सितंबर 2016 को भी एक याचिका की सुनवाई के दौरान दोहराया था. जस्टिस दीपक मिश्रा की अध्यक्षता वाली जिस पीठ ने ये आदेश दिया था, जस्टिस यूयू ललित उस दो सदस्य पीठ के दूसरे सदस्य थे.