पुलिस द्वारा गिरफ्तारी और हिरासत में क्या है अंतर?
जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, उसे हिरासत में रखा जाता है लेकिन हिरासत में रखना आवश्यक नहीं गिरफ्तारी हो. अर्थात हिरासत और गिरफ्तारी दोनों का अर्थ और उद्देश्य अलग-अलग है.
जब भी किसी व्यक्ति को गिरफ्तार किया जाता है, उसे हिरासत में रखा जाता है लेकिन हिरासत में रखना आवश्यक नहीं गिरफ्तारी हो. अर्थात हिरासत और गिरफ्तारी दोनों का अर्थ और उद्देश्य अलग-अलग है.
अगर पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेती है जिस पर गंभीर अपराध के आरोप हैं और उस मामले में जांच के लिए उस व्यक्ति से पूछताछ करने की जरुरत होती है तो ऐसे में सीआरपीसी (CrPC) की धारा 167 के तहत उसे 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेश करना होता है.
किसी व्यक्ति को गिरफ्तार करने के लिए पुलिस के पास उसके खिलाफ पुख्ता सबूत होना चाहिए परन्तु पुलिस का काम अपराध होने से पहले उसे रोकना भी है इसलिए कुछ खास परिस्थितियों में पुलिस के पास गिरफ्तारी के कुछ विशेषाधिकार हैं.
जब भी किसी व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार करती है तो पुलिस के पास उसके खिलाफ पुख्ता सबूत होना चाहिए जिसके बारे में कानून में बताया गया है. गिरफ्तारी से संबंधित बहुत से अधिकार पुलिस को दी गई है.
सत्र न्यायालय के समक्ष सुनवाई या वारंट-मामले की सुनवाई की स्थिति में, धारा 161 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयान के आधार पर अभियुक्त के खिलाफ आरोप दायर किया जा सकता है. यह धारा पुलिस को जांच के समय गवाहों से पूछताछ करने का अधिकार देती है.
अभियुक्त को दोषमुक्त या दोषी ठहराए जाने के समर्थन में दिए गए कारणों के साथ अदालत द्वारा निर्णय दिया जाता है. यदि अभियुक्त को बरी कर दिया जाता है, तो अभियोजन पक्ष को अदालत के आदेश के खिलाफ अपील करने का समय दिया जाता है.
ऐसे विधिविरुद्ध जमाव में जिसके कारण समाज की शांति भंग हो सकती है यह जानते हुए भी शामिल होना या उसमें बने रहना कि उस विधिविरुद्ध जमाव को बिखरे जाने का आदेश दिया गया है, तो उसे अपराध माना जाएगा.
याचिका में कहा गया है कि तेजस्वी यादव पटना के निवासी हैं, लेकिन CBI उन्हें दिल्ली में पूछताछ के लिए उपस्थित होने के लिए कह रही है, जो कि CRPC की धारा 160 के प्रावधान के विपरीत है.
किसी बड़े अपराध को अंजाम देकर अपराधी सजा से बचने के लिए देश छोड़ देता है, लेकिन CrPC के तहत ऐसे अपराधियों को देश वापिस लाने के प्रावधान है जिसे "प्रत्यर्पण" के रूप में जाना जाता है.
कहा जाता है कि कानून के हाथ इतने लंबे होते हैं कि अपराधी चाहे जहां भी छुपा वो गिरफ्त में आ ही जाता है. इसलिए तो अक्सर जो अपराधी देश को धोखा देकर या अपराध करके भाग जाते हैं पुलिस उन्हे पकड़ ही लेती है.
हमारे देश की अदालतों में शक्ति निहित है की वे क़ानूनी प्रक्रिया के तहत सम्बंधित व्यक्ति को अपने समक्ष पेश करने का आदेश दे सकती है. समन, अदालत द्वारा जारी, एक ऐसा ही कानूनी दस्तावेज है.
हमारे देश में महिलाओं के सम्मान को बनाए रखने के लिए यूं तो संविधान के तहत कई अधिकार दिए गए है. लेकिन उनके अतिरिक्त, गिरफ्तारी के दौरान महिला की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए CrPC में कई प्रावधान किए गए है.
अकारण गिरफ्तारी एक नागरिक को मिले स्वतंत्रता और समानता के अधिकारों का हनन माना जाता है. लेकिन CrPC के अनुसार कई मामलों में पुलिस एक नागरिक को बिना वारंट के गिरफ्तार कर सकती है.
कई बार आपने सुना होगा या देखा होगा की किसी को समन आया है या किसी के घर के बाहर अदालत का कोई नोटिस चिपकाया गया है. आपके मन में यह ख्याल आता होगा कि आखिर कैसे समन पहुंचाया जाता है.
तलाक को हमारा समाज बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखता है इसलिए जब भी कोई महिला तलाक के बारे में सोचती है तो सबसे पहले वो यही सोचती है कि समाज क्या कहेगा लेकिन महिलाएं इन सबसे ऊपर उठ रही हैं क्योंकि महिलाएं अब जागरूक हो रही है अपने अधिकारों के प्रति.
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 31 में केवल एक विचारण (Trial) में दो या अधिक अपराधों के एक आरोपी व्यक्ति की सजा को सन्दर्भित किया गया है
CrPC की धारा 306 और धारा 307 में सह-अपराधी को क्षमादान देने का उल्लेख किया गया है. इन दोनों धाराओं के तहत अनुमोदक बनने की योग्यता एक समान निर्धारित है और समान शर्तों के तहत निविदा की जा सकती है.
CrPC की धारा 144, किसी क्षेत्र में आपातकालीन स्थितियों या उपद्रव या किसी आशंकित खतरे के तत्काल मामले में आदेश जारी करने की शक्ति है