हिंदू कानून के तहत भरण पोषण के कितने प्रकार हैं? इसके लिए कौन दावा कर सकता है
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
मामले की सुनवाई करते हुए पीठ ने कहा, ‘‘किसी अदालत को केवल इस आधार पर यांत्रिक रूप से कार्य नहीं करना चाहिए कि जिस व्यक्ति को समन किया जाना है, उसकी संलिप्तता को लेकर कुछ साक्ष्य सामने आए हैं. ’’
धारा 306 के अनुसार, मुख्य न्यायाधीश या मजिस्ट्रेट या महानगर मजिस्ट्रेट के पास इसका अधिकार होता है. क्षमादान हमेशा फैसला सुनाने से पहले दिया जाता है
दंड प्रक्रिया संहिता के धारा 307 में क्षमादान को लेकर निर्देश देने की शक्ति का प्रावधान किया गया है. क्षमादान हमेशा फैसला सुनाने से पहले दिया जाता है.
बहुत से ऐसे लोग होते हैं जो नोटिस मिलने के बाद भी पुलिस के सामने हाजिर नहीं होते, तो ऐसे में पुलिस कोर्ट से उस व्यक्ति के खिलाफ अरेस्ट वारंट जारी करवा सकती है.
कई मामलों में पुलिस अधिकारी, मजिस्ट्रेट के ऑर्डर या वारंट के बिना ही किसी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकता है.
कानूनन मजिस्ट्रेट दो प्रकार के होते हैं. एक न्यायिक मजिस्ट्रेट और दूसरा कार्यकारी मजिस्ट्रेट.
कानूनन मजिस्ट्रेट दो प्रकार के होते हैं. एक न्यायिक मजिस्ट्रेट और दूसरा कार्यकारी मजिस्ट्रेट. दोनों को उनके अधिकार और कर्तव्य एक दूसरे से अलग करते हैं.
गिरफ्तारी को लेकर समाज में अलग -अलग धारणाएं बनी हुई है. कई मामलों में आपने सुना होगा कि किसी की गिरफ्तारी के लिए वारंट जारी हुआ है. लेकिन क्या आप जानते हैं कि किसी को गिरफ्तार करने के लिए वारंट कैसे जारी किया जाता है.
फिल्मों में आपने देखा होगा कि पुलिस किसी को अरेस्ट करने के लिए वारंट लेकर आती है. लेकिन सवाल ये उठता है कि वो वारंट कौन जारी करता है.
पुलिस की हठधर्मिता और तानाशाही के विरोध में, वकीलों ने मंगलवार को दिनभर प्रोटेस्ट किया. आखिरकार पुलिस को बैकफुट पर आना पड़ा.
आईए जानते है देश के आम नागरिक से जुड़े कुछ कानून के बारे में जिनकी जानकारी होना ही आपके लिए एक ताकत से कम नहीं हैं.
अग्रिम जमानत का मतलब गिरफ्तारी की आशंका में जमानत पाना है. यानि पुलिस द्वारा आपके खिलाफ कोई प्राथमिकी (एफआईआर) दर्ज़ की गई है और आपको आशंका है कि पुलिस आपको गिरफ्तार कर सकती है, तो इस हालत में आप कोर्ट में अर्ज़ी दाखिल करके गिरफ्तारी से पहले ही जमानत पा सकते हैं.
हमारे देश में महिलाओं की सुरक्षा के लिए कई प्रावधान हैं, इसलिए अगर आरोपी एक महिला है, तो गिरफ्तारी की उचित प्रक्रिया और अधिकारों को जानना भी महत्वपूर्ण हो जाता है
देश की जांच एजेंसियों को अपने कर्तव्यों का पालन करने के लिए कई कानूनी शक्तियों को दिया गया है जिसका इस्तेमाल कर वो अपराध और अपराधियों को नियंत्रित करते हैं. सीआरपीसी के तहत भी इन्हे कुछ खास शक्तियां दी गई हैं.
पुलिस अपने शक के आधार पर किसी भी व्यक्ति को गिरफ्तार कर सकती है वह भी बिना किसी वारंट के ताकि आने वाले समय में उस व्यक्ति द्वारा किए जाने वाले अपराध को रोका जा सके.
गिरफ्तारी वारंट का नाम सुनते ही कई लोगों के पसीने छूट जाते हैं. हालाँकि इसको लेकर कई सवाल भी होते हैं, जैसे ये कब, किसको और किसके द्वारा जारी किया जाता है. ऐसे में आज हम आपको इन सवालों के ही जवाब देंगें.
उत्तराखंड के तत्कालीन मुख्यमंत्री टीएस रावत के खिलाफ लगाए गए भ्रष्टाचार के आरोपों के संबंध में हाईकोर्ट ने पत्रकारों सहित तीन लोगो के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द कर दिया था. हाईकोर्ट के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में अपील पेडिंग रहते हुए पुलिस ने क्लोजर रिपोर्ट पेश की थी.
जब कोई मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट और उसके साथ भेजे गए दस्तावेजों की समीक्षा (Review) करने और अभियोजन पक्ष और अभियुक्त को ठीक से सुनने के बाद वो इस निष्कर्ष पर पहुंचते हैं कि अभियुक्त के खिलाफ लगाए गए आरोप निराधार हैं, तो वह कारण दर्ज करने के बाद केस को खारिज कर सकते हैं.
अगर पुलिस किसी ऐसे व्यक्ति को हिरासत में लेती है जिस पर गंभीर अपराध के आरोप हैं और उस मामले में जांच के लिए उस व्यक्ति से पूछताछ करने की जरुरत होती है तो ऐसे में सीआरपीसी (CrPC) की धारा 167 के तहत उसे 24 घंटे के भीतर कोर्ट में पेश करना होता है.
जब भी किसी व्यक्ति को पुलिस गिरफ्तार करती है तो पुलिस के पास उसके खिलाफ पुख्ता सबूत होना चाहिए जिसके बारे में कानून में बताया गया है. गिरफ्तारी से संबंधित बहुत से अधिकार पुलिस को दी गई है.
सत्र न्यायालय के समक्ष सुनवाई या वारंट-मामले की सुनवाई की स्थिति में, धारा 161 के तहत पुलिस द्वारा दर्ज किए गए बयान के आधार पर अभियुक्त के खिलाफ आरोप दायर किया जा सकता है. यह धारा पुलिस को जांच के समय गवाहों से पूछताछ करने का अधिकार देती है.
अभियुक्त को दोषमुक्त या दोषी ठहराए जाने के समर्थन में दिए गए कारणों के साथ अदालत द्वारा निर्णय दिया जाता है. यदि अभियुक्त को बरी कर दिया जाता है, तो अभियोजन पक्ष को अदालत के आदेश के खिलाफ अपील करने का समय दिया जाता है.
ऐसे विधिविरुद्ध जमाव में जिसके कारण समाज की शांति भंग हो सकती है यह जानते हुए भी शामिल होना या उसमें बने रहना कि उस विधिविरुद्ध जमाव को बिखरे जाने का आदेश दिया गया है, तो उसे अपराध माना जाएगा.
याचिका में कहा गया है कि तेजस्वी यादव पटना के निवासी हैं, लेकिन CBI उन्हें दिल्ली में पूछताछ के लिए उपस्थित होने के लिए कह रही है, जो कि CRPC की धारा 160 के प्रावधान के विपरीत है.
कहा जाता है कि कानून के हाथ इतने लंबे होते हैं कि अपराधी चाहे जहां भी छुपा वो गिरफ्त में आ ही जाता है. इसलिए तो अक्सर जो अपराधी देश को धोखा देकर या अपराध करके भाग जाते हैं पुलिस उन्हे पकड़ ही लेती है.
हमारे देश में महिलाओं के सम्मान को बनाए रखने के लिए यूं तो संविधान के तहत कई अधिकार दिए गए है. लेकिन उनके अतिरिक्त, गिरफ्तारी के दौरान महिला की सुरक्षा को मद्देनजर रखते हुए CrPC में कई प्रावधान किए गए है.
कई बार आपने सुना होगा या देखा होगा की किसी को समन आया है या किसी के घर के बाहर अदालत का कोई नोटिस चिपकाया गया है. आपके मन में यह ख्याल आता होगा कि आखिर कैसे समन पहुंचाया जाता है.
तलाक को हमारा समाज बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखता है इसलिए जब भी कोई महिला तलाक के बारे में सोचती है तो सबसे पहले वो यही सोचती है कि समाज क्या कहेगा लेकिन महिलाएं इन सबसे ऊपर उठ रही हैं क्योंकि महिलाएं अब जागरूक हो रही है अपने अधिकारों के प्रति.
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 31 में केवल एक विचारण (Trial) में दो या अधिक अपराधों के एक आरोपी व्यक्ति की सजा को सन्दर्भित किया गया है
CrPC की धारा 306 और धारा 307 में सह-अपराधी को क्षमादान देने का उल्लेख किया गया है. इन दोनों धाराओं के तहत अनुमोदक बनने की योग्यता एक समान निर्धारित है और समान शर्तों के तहत निविदा की जा सकती है.
CrPC की धारा 144, किसी क्षेत्र में आपातकालीन स्थितियों या उपद्रव या किसी आशंकित खतरे के तत्काल मामले में आदेश जारी करने की शक्ति है
किशोरों मे अपराधिक व्यवहार का बढ़ना समाज की अस्वस्थता का परिचय है. परन्तु किशोर अपराधी को सही देखभाल और संरक्षण देना आवश्यक है ताकि वो अपराध की राह को छोड़ के सुमार्ग का चयन करें और देश की उन्नति में सहयोग करें.
कुछ अपराधी सजा काटने के बाद जुर्म का रास्ता छोड़ कर सही रास्ते पर आ जाते हैं, लेकिन कुछ ऐसे अपराधी होते हैं जो सजा काटने के बाद भी बाज नहीं आते हैं जो, समाज के लिए हमेशा खतरा बने रहते हैं.
भारतीय दंड संहिता की धारा 498A को एक महिला को उसके ससुराल पक्ष के उत्पीड़न के खतरे का मुकाबला करने के लिए लाया गया था. परन्तु कुछ महिलाओं द्वारा अब इस प्रावधान का दुरुपयोग भी किया जा रहा है.
जब भी फांसी की सजा की बात होती है तब- तब दो शब्दों का जिक्र जेल, कोर्ट, कचहरी, शहर-कस्बे से लेकर गांव-देहात तक जरुर होता है वो शब्द हैं "ब्लैक वारंट" और “डेथ वारंट. आइए जानते हैं कि आखिर ये दोनों वारंट हैं क्या?