बच्चे और मानसिक रोगी भी दे सकते हैं कोर्ट में गवाही
भारतीय न्यायालयों ने समय-समय पर न्यायिक कार्यवाही में गवाहों के महत्व को स्वीकार किया है. गवाहों के बयान पर ही कई बार अहम फैसले लिए गए है.
भारतीय न्यायालयों ने समय-समय पर न्यायिक कार्यवाही में गवाहों के महत्व को स्वीकार किया है. गवाहों के बयान पर ही कई बार अहम फैसले लिए गए है.
एक दिमागी रूप से बीमार व्यक्ति भी गवाही देने के लिए सक्षम है यदि वह उससे पूछे गए प्रश्नों को समझ सकता है और तर्कसंगत उत्तर दे सकता है. वहीं, कुछ परिस्थितियां ऐसी भी होती हैं, जिसमें कोई व्यक्ति गवाही देने के लिए सक्षम तो होता है, लेकिन उसे गवाही देने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता.
दोषी पाने पर 2 साल की सजा और एक लाख का जुर्माना लग सकता है. साथ ही मदद करने वाले, बढ़ावा देने वाले, अनुमति देने वाले या बाल विवाह में शामिल होने वाले सभी सजा के हकदार होंगे.
बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के तहत उन लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए जाएंगे जिन्होंने 14-18 वर्ष आयु समूह में लड़कियों से शादी की है.
जहां एक एनिमेटेड फिल्म के माध्यम से शिकायत करने के फैसले को सही बताया जाता है और मदद का भरोसा दिया जाता है।इस पेज पर एक ऐरो के चिन्ह को दबाने के बाद आपको तस्वीरों का ऑपशन मिलेंगे।जिसमें से एक को चुनकर आपको अपराध के बारे में बताना होगा।
किशोर न्याय (बालकों की देखरेख और संरक्षण) अधिनियम, 2015 [Juvenile Justice (Care and Protection of Children) Act, 2015] की धारा 56(4) के प्रावधानों के तहत कोई भी विदेशी नागरिक भारतीय बच्चों को गोद ले सकता है, लेकिन उन्हें केंद्रीय दत्तक ग्रहण संसाधन प्राधिकरण (Central Adoption Resource Authority - CARA) के बनाए हुए नियमो का पालन करना होगा.
बाल शोषण के खिलाफ शिकायत दर्ज कर बच्चों को उनके साथ होने वाले दुर्व्यवहार से बचाना हर नागरिक की जिम्मेदारी है. 'शिकायत कहां करें' की समस्या को सुलभ करने के लिए राष्ट्रीय बाल संरक्षण आयोग ने POCSO E-BOX ऑनलाइन सुविधा शुरू की.
किसी बच्चे को उसके साथ होने वाले दुर्व्यवहार से बचाना हर नागरिक की जिम्मेदारी है. बच्चों के साथ होने वाले छेड़छाड़, रेप, यौन उत्पीड़न, यौन शोषण और पोर्नोग्राफी जैसे जघन्य अपराधों की जानकारी होने पर शिकायत दर्ज कराना एक जागरूकग नागरिक का कर्तव्य है.
POCSO(The Protection of Children from Sexual Offences) Act बच्चों के खिलाफ हो रहे यौन अपराधों से बच्चों की सुरक्षा करता है और इसके मामलों में बच्चों को उचित नयाय दिलाने का प्रयास करता है. इसके तहत अपराधों को दर्ज कराने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रक्रिया उपल्बध कराई गई है.
POCSO Act के तहत अपराधों को दर्ज कराने के लिए ऑनलाइन और ऑफलाइन दोनों प्रक्रिया उपल्बध कराई गई है, जिससे बच्चों को ऐसे अपराधों के लिए शिकायत करने में मदद मिले और उन्हें उचित न्याय मिल सके. इस प्रक्रिया में बच्चे को सुरक्षित और उनकी पहचान को पूरी तरह गोपनीय रखा जाता है.
पॉक्सो (POCSO) एक्ट का उद्देश्य बच्चों को सभी प्रकार के यौन शोषण से बचाना और पीड़ित बच्चों को उचित न्याय दिलाना है. इस कानून के तहत यौन उत्पीड़न और पोर्नोग्राफी से बच्चों की सुरक्षा के संबंध में प्रावधान हैं. यह अधिनियम यौन शोषण के पीड़ितों के लिए एक मजबूत न्याय तंत्र प्रदान करता है और बाल अधिकारों और सुरक्षा के महत्व पर जोर देता है.
दिल्ली हाईकोर्ट ने केन्द्र सरकार के महिला एवं बाल विकास मंत्रालय, कानून और न्याय मंत्रालय और दिल्ली सरकार को नोटिस जारी करते हुए चार सप्ताह के भीतर अपना हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया है.
केरल हाईकोर्ट ने सामान बेचते पकड़े गए दो बच्चो को आश्रण गृह से रिहा करने का आदेश देते हुए कहा कि सामान बेचने में बच्चे द्वारा माता-पिता की मदद करना, बाल श्रम नहीं है.
कानून के अनुसार बच्चे वे हैं जो 18 वर्ष से कम आयु के हैं लेकिन भारतीय दंड संहिता के अनुसार, यह केवल बारह वर्ष से कम आयु के बच्चों की सुरक्षा करता है. जबकि, किशोर न्याय अधिनियम के अनुसार, जो बच्चे अपराध करते हैं, उन्हें "कानून के साथ संघर्ष में बच्चे" (children in conflict with law) कहा जाता है
अगर आप बच्चे को गोद लेने का मन बना रहे हैं तो सबसे पहले वेबसाइट www.cara.nic.in पर जाकर पूरी गाइडलाइन पढ़ें. यहां एडॉप्शन की जो प्रक्रिया है, उसे फॉलो करना होगा. कारा में आपको तय रजिस्ट्रेशन फीस के अलावा किसी भी तरह का भुगतान नहीं करना होगा.
हमारे देश के संविधान के अनुच्छेद 14, 15, 15(3), 19(1)(ए), 21, 21(ए), 23(1), 24, 39(इ), 39 (एफ), और 45 में कई महत्वपूर्ण और खास प्रावधान करते हुए कई अधिकार प्रदान किए गए है.