रोजमर्रा के जीवन में भी उपहार विलेख (Gift Deed), निपटान विलेख (Settlement Deed) और वसीयत (Will) के बीच का अंतर समझना महत्वपूर्ण है. डीड को हिंदी में विलेख कहते हैं. इसी से जुड़े ट्रांसफर ऑफ प्रॉपर्टी (Transfer of Property) मामले को लेकर सुप्रीम कोर्ट ने अहम फैसला सुनाया है. सुप्रीम कोर्ट ने संपत्ति के हस्तांतरण से जुड़े तीन अहम इंस्ट्रूमेंट के बीच के अंतर को स्पष्ट किया है, उसे बखूबी बताया है. यहां इंस्ट्रूमेंट का अर्थ वह तरीका या माध्यम है जिससे संपत्ति की ओनरशिप एक व्यक्ति के माध्यम से दूसरे को सौंपी जा सकती है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपहार और निपटान में संपत्ति का अधिकार तुरंत ट्रांसफर होता है, जबकि वसीयत में यह मृत्यु के बाद होता है. अदालत ने यह भी कहा कि रजिस्ट्रेशन केवल एक पहलू है, और डॉक्यूमेंट्स की सामग्री ही उसके वास्तविक उद्देश्य को निर्धारित करती है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस आर महादेवन की खंडपीठ ने मामले की सुनवाई की. इस मामले में सुप्रीम कोर्ट को यह निर्धारित करना था कि अगर दस्तावेज एक उपहार पत्र, समझौता पत्र या वसीयत है, तो उन्हें कानून के तहत रद्द करने की क्षमता का आकलन किया जा सके. सुप्रीम कोर्ट, उस दस्तावेज की व्याख्या करना था, जिसके माध्यम से संपत्ति का अधिकार एक माता-पिता ने अपने प्यार, देखभाल और स्नेह के कारण अपनी बेटी को स्थानांतरित (Settlement Deed) किया. स्थानांतरित करने वाले पैरेंट्स ने संपत्ति में अपना जीवन हित बनाए रखा, जिससे संपत्ति का कब्जा बेटी के पास नहीं था. हालांकि, बेटी ने संपत्ति के कागजात को स्वीकार करने और पंजीकरण प्रक्रिया को पूरा करने के बाद टाइटल राइटस प्राप्त किए.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपहार विलेख को एक स्वैच्छिक हस्तांतरण के रूप में परिभाषित किया गया है. यह बिना किसी मुआवजे के किया जाता है और दाता के जीवनकाल में इसे स्वीकार करना जरूरी है. अदालत ने यह भी बताया कि अचल संपत्ति के लिए रजिस्ट्रेशन अनिवार्य है, लेकिन उपहार के लिए स्वीकृति देते समय पर उस संपत्ति पर कब्जा या अपने पास में होना आवश्यक नहीं है.
जब किसी व्यक्ति द्वारा प्रेम, देखभाल और स्नेह के कारण स्वैच्छिक रूप से संपत्ति का हस्तांतरण किया जाता है, और यह हस्तांतरण तुरंत संपत्ति के अधिकारों को उत्पन्न करता है, तो इसे निपटान विलेख माना जाता है. निपटान में, हस्तांतरणकर्ता के लिए जीवन का अधिकार सुरक्षित रहता है.
वसीयत में संपत्ति का अधिकार केवल वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद प्रभावी होता है. यह वसीयतकर्ता के जीवनकाल में रद्द किया जा सकता है. अदालत ने साफ कहा है कि वसीयत एक निश्चित तरीके से संपत्ति के वितरण का इरादा दर्शाती है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि स्वैच्छिक हस्तांतरण का तत्व सभी तीन दस्तावेजों में सामान्य है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उपहार, निपटान और वसीयत सभी संपत्ति के स्वैच्छिक हस्तांतरण (Voluntarily Transfer) से संबंधित हैं, लेकिन कानूनी प्रभाव इस बात पर निर्भर करता है कि हस्तांतरण तत्काल (उपहार/निपटान) है या मृत्यु के बाद (वसीयत). उपहार और निपटान में, हस्तांतरण तत्काल होता है, जबकि वसीयत में यह मृत्यु के बाद होता है. सुप्रीम कोर्ट ने यह भी कहा कि दस्तावेज का नामकरण महत्वपूर्ण नहीं है; बल्कि, दस्तावेज की प्रकृति उसके सामग्री से निर्धारित होती है. एक स्वैच्छिक दस्तावेज में वर्तमान और भविष्य में संपत्ति के अधिकार का हस्तांतरण हो सकता है. ऐसे दस्तावेज को पंजीकृत किया जाना चाहिए और इसे निपटान और वसीयत दोनों के रूप में माना जाएगा. वसीयत तब होती है जब संपत्ति का अधिकार केवल वसीयतकर्ता की मृत्यु के बाद प्रभावी होता है. यह वसीयतकर्ता के जीवनकाल में रद्द किया जा सकता है. अदालत ने स्पष्ट किया कि वसीयत एक निश्चित तरीके से संपत्ति के वितरण का इरादा दर्शाती है. यदि संपत्ति का अधिकार एक शर्त के साथ हस्तांतरित किए जाते हैं कि वास्तविक कब्जा भविष्य में होगा, तो इसे वसीयत नहीं माना जा सकता है, क्योंकि संपत्ति के अधिकार पहले से ही समझौता करनेवाले के पास होता हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"यह नहीं भूलना चाहिए कि उपहार के मामले में यह मालिक द्वारा दूसरे व्यक्ति को दिया गया एक सम्मानीय ग्रांट है. समझौते के मामले में विचार पारस्परिक प्रेम, देखभाल, स्नेह और संतुष्टि है, जो स्वतंत्र है और पूर्ववर्ती कारकों से उत्पन्न होता है; वसीयत के मामले में यह एक विशेष तरीके से अपनी संपत्ति के निपटान में वसीयतकर्ता के इरादे की घोषणा है."
सुप्रीम कोर्ट ने आगे कहा,
"यदि संपत्ति के अधिकार देने की बात इस शर्त के साथ निहित हैं कि कब्जे की वास्तविक डिलीवरी भविष्य की किसी तारीख को होगी, तो ऐसे लेनदेन को वसीयत नहीं कहा जा सकता, क्योंकि संपत्ति के अधिकार पहले से ही समझौता करनेवालों के पास निहित थे."
सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि निपटान विलेख (Settlement Deed) के माध्यम से हस्तांतरणकर्ता द्वारा अपनी बेटी को दिया गया उपहार दोनों आवश्यकताओं को पूरा करता है. चूंकि विलेख ने बेटी के पक्ष में तत्काल हित बनाया और हस्तांतरणकर्ता के जीवनकाल में स्वीकार किया गया, यह संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम, 1882 ( TPA) की धारा 122 के तहत वैध उपहार की शर्तों को पूरा करता है.
इसके अतिरिक्त, हस्तान्तरणकर्ता के पक्ष में आजीवन हित का निर्माण और संपत्ति का ट्रांसफर एक समझौता विलेख के मानदंडों को भी पूरा करता है.अदालत ने स्पष्ट किया कि कब्जे की डिलीवरी उपहार या समझौते को वैध बनाने के लिए अनिवार्य नहीं है. दस्तावेज के वैध होने के लिए यह साबित होना आवश्यक है कि उस पर निष्पादनकर्ता के जीवनकाल के दौरान कार्रवाई की गई थी. सुप्रीम कोर्ट ने बेटी को राहत देते हुए उपहार के कब्जे को स्वीकृति के बराबर माना है.
Case Title: एनपी ससीन्द्रन बनाम एनपी पोन्नम्मा एवं अन्य( NP SASEENDRAN vs NP PONNAMMA & ORS)