संपत्ति हस्तांतरण अधिनियम (Transfer of Property Act) की धारा 13 अजन्मे बच्चे के लाभ के लिए संपत्ति के ट्रांसफर की बात कहती है. यह धारा भारत में उस चीज़ को आयात करने का एक प्रयास है जिसे इंग्लैंड में दोहरी संभावनाओं (Double Probability) के नियम की अवधारणा के रूप में जाना जाता है. नियम यह है कि किसी दूसरे को संपत्ति का निपटान करने वाला व्यक्ति उस संपत्ति के स्वतंत्र निपटान को एक से अधिक पीढ़ी के हाथों में नहीं बांधेगा.
जैसा कि हम सब जानते हैं की संपत्ति के हस्तांतरण के लिए दोनों पक्षों को जीवित व्यक्ति (न्यायिक व्यक्ति सहित) होना चाहिए, लेकिन धारा 13 अंतर-जीवित स्थानांतरण के सामान्य नियम का अपवाद है. धारा 13 जन्म से अजन्मे को स्थानांतरण की बात करता है. एक संपत्ति मां के गर्भ में पल रहे बच्चे को हस्तांतरित की जा सकती है, लेकिन उसे नहीं जो मां के गर्भ में नहीं है. आइये इसे जानते है विस्तार से..
संपत्ति एक जीवित व्यक्ति द्वारा एक या एक से अधिक अन्य लोगों को वर्तमान तिथि में या भविष्य के समय में या केवल स्वयं को वितरित की जाएगी. धारा 5 का अपवाद है धारा 13 जो अजन्मे व्यक्ति के लाभ के लिए स्थानांतरण के संबंध में कुछ नियम बताती हैं.
धारा 13 उन धाराओं के समूह में से एक है जो स्थानांतरण की तिथि पर मौजूद नहीं रहने वाले व्यक्ति के लाभ के लिए बनाए गए हित को संरक्षित करती है. यह उपधारा प्रावधान करता है कि कभी भी ऐसा कोई व्यक्ति नहीं होना चाहिए जिसे कोई अजन्मा व्यक्ति जीवन भर के लिए स्वीकार कर ले, क्योंकि यह एक समझने योग्य आकस्मिकता (Contingency) है.
संपत्ति अंतरण अधिनियम की धारा 13 अजात व्यक्ति के फायदे के लिए अंतरण कि बात करता है. जहां की सम्पत्ति के अन्तरण पर उस संपत्ति में कोई हित उसी अंतरण द्वारा सृष्ट किसी पहले हित के विषय है तो ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए, जो अंतरण की तारीख को अस्तित्व में न हो, सृष्ट किया जाता है, वहां ऐसे व्यक्ति के फायदे के लिए सृष्ट हित (Created Interest) प्रभावी न होगा जब तक की उसका विस्तार सम्पत्ति में अन्तरक के सम्पूर्ण अवशिष्ट हित पर न हो.
एक अजन्मे बच्चे को उसके जन्म के बाद का व्यक्ति कहा जाता है. गर्भ में पल रहे बच्चे का जन्म कई कारणों से माना जाता है. संपत्ति कानून के तहत, अजन्मा बच्चा निश्चित अधिकार प्राप्त कर सकता है और संपत्ति का उत्तराधिकारी हो सकता है, लेकिन केवल तभी जब वह जीवित पैदा हुआ हो. हालांकि अजन्मे बच्चे को एक व्यक्ति के रूप में अच्छी तरह से नहीं सोचा जा सकता है, फिर भी उसके अधिकार उसके ट्रस्टियों (Trustees) के हाथों में निहित हो सकते हैं.
संपत्ति अधिनियम के तहत केवल अजन्मे बच्चे को संपत्ति पर अधिकार देता है यदि वह जीवित पैदा हुआ हो। जब तक उसका जन्म होता है, तब तक सारे अधिकार उसके माता-पिता/ट्रस्टी के नाम पर होते हैं. कोई भी आसानी से पारिवारिक वकील से परामर्श ले सकता है.
किसी संपत्ति का हस्तांतरण नहीं हो सकता जब तक कि यह हस्तांतरण ट्रस्ट के माध्यम से न किया जाये. विश्वास के अभाव में संपत्ति किसी जीवित व्यक्ति के पक्ष में और फिर नाबालिग के पक्ष में बनाई जानी आवश्यक है.
इसका लाभ जीवित व्यक्ति तब तक उठा सकते हैं जब तक की अजन्मा बच्चा इस दुनिया में अस्तित्व में न आ जाए. अजन्मे व्यक्ति को अंतिम जीवन संपत्ति धारक की मृत्यु से पहले अस्तित्व में आना चाहिए. जरूरी नहीं कि उसका जन्म ही हो, भले ही वह मां के गर्भ में ही हो, वही काफी है.
A child "en ventre sa mere" (in the mother's womb) एक विधिक भाषा है, इसका मलतब मां के गर्भ में पल रहा बच्चा अस्तित्व में मौजूद बच्चे के बराबर है.
बच्चे के अस्तित्व में आते ही सभी अधिकार अजन्मे बच्चे में निहित होने चाहिए. वह उसमें निहित संपत्ति (Inherited Property) का पूर्ण स्वामी होगा. यहां उचित तथ्य यह है कि स्थानांतरण किसी अजन्मे व्यक्ति को किया जा सकता है, लेकिन अजन्मे व्यक्ति के मुद्दे पर नहीं.