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'संपत्ति का अधिकार अब भी संवैधानिक', बेंगलुरु-मैसूर प्रोजेक्ट से जुड़े भूमि अधिग्रहण मामले में SC की अहम टिप्पणी

सुप्रीम कोर्ट ने बेंगलुरु-मैसूर प्रोजेक्ट से जुड़े जमीन अधिग्रहण मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं हो, लेकिन यह अब भी एक संवैधानिक अधिकार बना हुआ है, जिसके अनुसार किसी व्यक्ति को भी पर्याप्त मुआवजे के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है.

Written by Satyam Kumar |Updated : January 3, 2025 3:21 PM IST

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने जमीन अधिग्रहण से जुड़े मामले की सुनवाई करते हुए कहा कि भले ही संपत्ति का अधिकार अब मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन यह एक संवैधानिक अधिकार है, जिसके अनुसार किसी व्यक्ति को भी पर्याप्त मुआवजे के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता है. सुप्रीम कोर्ट का यह फैसला बेंगलुरु-मैसूर इंफ्रास्ट्रक्चर कॉरिडोर प्रोजेक्ट (BMICP) के लिए भूमि अधिग्रहण से संबंधित मामले में आया है, जिसमें सुप्रीम कोर्ट, कर्नाटक हाईकोर्ट के नवंबर 2022 के फैसले को चुनौती देने वाली अपील पर सुनवाई कर रहा था.

संपत्ति का अधिकार एक संवैधानिक अधिकार है: SC

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस केवी विश्वनाथन ने कहा संविधान (44वां संशोधन) अधिनियम, 1978 के कारण संपत्ति का मौलिक अधिकार समाप्त कर दिया गया है, लेकिन यह एक कल्याणकारी राज्य में एक मानवाधिकार और संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत एक संवैधानिक अधिकार बना हुआ है. संविधान के अनुच्छेद 300-ए में प्रावधान है कि कानूनी प्रक्रिया का उपयोग किए बिना किसी भी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जाएगा.

फैसले में अदालत ने कहा कि मुआवजा न मिलने के कारण अपीलकर्ता भूमि मालिकों को उनकी संपत्ति से वंचित कर दिया गया था. पीठ ने कहा कि संपत्ति का अधिकार भले ही अब मौलिक अधिकार नहीं है, लेकिन यह एक संवैधानिक अधिकार है. इसके अनुसार, किसी व्यक्ति को कानून के अनुसार पर्याप्त मुआवजे के बिना उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता.

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क्या है मामला?

कर्नाटक औद्योगिक क्षेत्र विकास बोर्ड (KIADB) ने जनवरी 2003 में भूमि अधिग्रहण के लिए एक प्रारंभिक अधिसूचना जारी की थी. इसके बाद, नवंबर 2005 में अपीलकर्ताओं की भूमि का कब्जा ले लिया गया. इस मामले में प्रभावित लोगों (अपीलकर्ताओं) को उचित मुआवजा नहीं मिलने के चलते पिछले 22 वर्षों में कई बार अदालतों का रुख करना पड़ा.

संविधान का 44वां संशोधन

साल 1978 में संविधान के 44वें संशोधन के कारण संपत्ति का मौलिक अधिकार को निरस्त कर दिया गया था. इसके बावजूद, संविधान के अनुच्छेद 300-ए के तहत संपत्ति का अधिकार एक मानवाधिकार और संवैधानिक अधिकार बना हुआ है. इस अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि कानूनी प्रक्रिया का पालन किए बिना किसी व्यक्ति को उसकी संपत्ति से वंचित नहीं किया जा सकता.

(खबर एजेंसी इनपुट के आधार पर लिखी गई है)