इलाहाबाद हाईकोर्ट में संभल हिंसा की सीबीआई जांच की मांग को लेकर अब तक तीन याचिकाएं दायर की जा चुकी है. तीनों याचिकाओं में पुलिस और प्रशासन की कार्यशैली पर सवाल उठाते हुए संभल जामा मस्जिद के सर्वे के दिन हुए हिंसा की जांच केन्द्रीय अन्वेषण ब्यूरो (CBI) को सौपने की मांग की गई है. बता दें कि जिला अदालत के आदेश पर कोर्ट कमिश्नर अगुवाई में संभल जामा मस्जिद का एएसआई सर्वे करने गई टीम पर उपद्रवियों ने पथराव किया, जिसके बाद से क्षेत्र में हिंसा का महौल पैदा हो गई. इस हिंसा में पांच लोगों के मारे जाने की खबर है.
जनहित याचिकाओं में इलाहाबाद हाईकोर्ट से मांग की गई है कि हाईकोर्ट के रिटायर्ड जज की अगुवाई में एक विशेष जांच टीम गठित की जाए, जो कोर्ट कमिश्नर से लेकर पुलिस तक की भूमिका को स्पष्ट करते हुए एक तय समय-सीमा के भीतर अपनी रिपोर्ट सौंपे. दूसरी मांग राज्य सरकार के कर्मचारियों और प्रशासनिक अधिकारियों की भमिका तय करने के लिए उनके अधीनस्थ जांच एजेंसी की जगह इस घटना की जांच CBI को सौंपी जाए.
संभल जामा मस्जिद में ASI सर्वे को रोक लगाने को लेकर संभल जामा मस्जिद कमेटी ने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था. सुप्रीम कोर्ट ने कमेटी की याचिका स्वीकार करते हुए निचली अदालत में सुनवाई पर रोक लगा दी है, वहीं इलाहाबाद हाईकोर्ट को वाद की योग्यता को लेकर दायर की गई मुस्लिम पक्ष की याचिका पर सुनवाई करने के निर्देश दिए हैं.
बहस के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार को सामुदायिक मध्यस्थता के सहारे इस विवाद को सुलझाने के निर्देश दिए हैं. मध्यस्थता एक्ट, 2023 की धारा 43 समाज में शांति व भाईचारे को बहाल रखने के लिए सामुदायिक समझौते का निर्देश देता है. बता दें कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले की सुनवाई 6 जनवरी को करेगी.
संभल हिंसा विवाद में एडवोकेट हरिशंकर जैन और पार्थ यादव ने कैविएट दाखिल की है जिसके उच्च न्यायालय से अनुरोध किया गया है कि मुस्लिम पक्ष की याचिका पर आदेश पारित करने से हिंदू पक्ष को भी अपनी बात रखने का मौका दें. कैविएट संभल जामा मस्जिद के ASI सर्वे से जुड़ी निचली अदालत के फैसले से जुड़ा है.
बता दें कि संभल में 24 नवंबर को हिंसा भड़क उठी जब प्रदर्शनकारी मस्जिद के पास एकत्र हुए और सुरक्षाकर्मियों से भिड़ गए. हिंसा में चार लोगों की मौत हो गई और कई अन्य घायल हो गए. मामले में पुलिस की ओर से 700 अज्ञात लोगों के खिलाफ FIR दर्ज की है.