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सरकारी अस्पताल में नसबंदी कराने के बाद भी गर्भवती हुई थी पत्नी, फिर पति को मुआवजा देने का फैसला हाई कोर्ट ने क्यों रद्द किया

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने नसबंदी ऑपरेशन की विफलता के लिए दंपति को दी गई मुआवजे के फैसले को रद्द करते हुए कहा कि डॉक्टर ने हजारों ऐसे ऑपरेशन किए थे और नसबंदी की विफलता की संभावना बहुत कम होती है.

Written by Satyam Kumar |Published : April 18, 2025 11:52 AM IST

एक शख्स ने साल 1986 में हरियाणा सरकार द्वारा चलाई गई नसबंदी योजना के तहत सरकारी अस्पताल में नसबंदी का ऑपरेशन (Vasectomy) करवाया था. ऑपरेशन के बाद भी उसकी पत्नी गर्भवती हुई और जब उन्होंने सिविल अस्पताल में जांच करवाई, तो उन्हें बताया गया कि वसेक्टॉमी ऑपरेशन असफल रहा. परिणामस्वरूप, आपरेशन के बाद दंपत्ति को चौथा- पांचवे को जन्म दिया. अब पति ने इसके लिए सरकारी अस्पताल के डॉक्टर को जिम्मेदार ठहराते हुए राज्य से मुआवजे की मांग को लेकर अदालत का रूख किया. सेशन कोर्ट ने पति को मुआवजा देने का आदेश देते हुए कहा कि पति ने नसबंदी को लेकर डॉक्टर द्वारा दिए गए निर्देशों का पालन किया है, इसलिए वह हर्जाना पाने का अधिकारी है. इस फैसले को राज्य सरकार ने हाई कोर्ट में चुनौती दी. आइये जानते हैं कि हाई कोर्ट ने राज्य सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए क्या कहा, साथ ही हर्जाने की राशि देने से क्यों इंकार किया.

मुआवजा देने का फैसला HC ने किया रद्द

पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने एक जोड़े को नसबंदी ऑपरेशन की विफलता के लिए दिया गया मुआवजा रद्द करने का फैसला किया. जस्टिस निधि गुप्ता ने राज्य सरकार की अपील को स्वीकार करते हुए कहा कि हालांकि राम सिंह की नसबंदी असफल रही, लेकिन निचली अदालत ने इस तथ्य पर विचार नहीं किया कि डॉक्टर ने हजारों ऐसे ऑपरेशन किए थे और नसबंदी की विफलता की संभावना बहुत कम होती है. अदालत ने कहा कि ऑपरेशन से पहले जोड़े को दिए गए प्रमाण पत्र में स्पष्ट रूप से बताया गया था कि ऑपरेशन की विफलता की स्थिति में डॉक्टर की कोई जिम्मेदारी नहीं होगी.

कपल ने गर्भपात कराने का प्रयास नहीं किया: HC

अदालत ने कहा कि ऑपरेशन से पहले दंपत्ति को बताया गया था कि यदि ऑपरेशन असफल होता है, तो प्रतिवादियों पर कोई जिम्मेदारी नहीं होगी. राम सिंह ने 1986 में एक सरकारी स्वास्थ्य केंद्र में वासेक्टॉमी के लिए आवेदन किया था और इसके लिए उन्हें भुगतान किया गया था. उन्हें ऑपरेशन के बाद तीन महीने तक संभोग न करने और कंडोम का उपयोग करने के लिए भी कहा गया था. अदालत ने यह नोट किया कि दंपत्ति ने यह साबित करने में असफल रहे कि उन्होंने डॉक्टर के निर्देशों का पालन किया. रिकॉर्ड में यह भी नहीं है कि सिंह ने ऑपरेशन के तीन महीने बाद अपने सीमेन की जांच करवाया था. हाई कोर्ट ने पाया कि भले ही दंपत्ति ने यह दावा किया हो कि यह अनचाहा गर्भधारण था, लेकिन उनकी ओर से गर्भपात न कराने के लिए कोई ठोस कारण नहीं दिया गया. रिकॉर्ड में यह भी पाया गया कि महिला ने भी गर्भपात कराने के लिए कोई प्रयास नहीं किया. हाईकोर्ट ने सेशन कोर्ट के मुआवजे के आदेश को खारिज करते हुए राज्य सरकार की अपील को स्वीकृति दी.

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