नई दिल्ली: घरेलू हिंसा (Domestic Violence) से जुड़े एक मामले में, निचली अदालत के एक ऑर्डर को चुनौती देने वाली याचिका को अनुमति देते हुए बंबई उच्च न्यायालय (Bombay High Court) ने यह टिप्पणी की है कि घरेलू हिंसा अपने आप में एक गंभीर विषय है और ऐसे में कार्रवाई के दौरान इसकी डिग्री या मात्रा कितनी है, यह मायने नहीं रखता।
जैसा कि हमने आपको अभी बताया कि घरेलू हिंसा से जुड़े एक मामले में सेशन्स कोर्ट के फैसले को चुनौती देने वाली एक याचिका को बंबई उच्च न्यायालय ने अनुमति दे दी है। याचिकाकर्ता का यह कहना है कि निचली अदालत के ऑर्डर में उन्होंने जिस घरेलू हिंसा का सामना किया है, उसे 'छोटा' बताया गया है।
इस ऑर्डर पर चुनौती देने वाली याचिका को अनुमति देते हुए बंबई हाईकोर्ट ने कहा कि यदि कोई महिला 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005' (The Protection of Women from Domestic Violence Act, 2005) के तहत यह साबित कर देती है कि उसको डोमेस्टिक वायलेंस का सामना करना पड़ा है, तो उस हिंसा की डिग्री या मात्रा कितनी है, इससे कोई मतलब नहीं है।
निचली अदालत के फैसले को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने याचिकाकर्ता की याचिका को अनुमति दी है और कहा कि हिंसा शारीरिक या लैंगिक हो यह जरूरी नहीं, हिंसा मानसिक, भावनात्मक और आर्थिक भी हो सकता है। इनमें से किसी भी मामले में अदालत अपने हिसाब से उस हिंसा को कम-ज्यादा या छोटा-बड़ा नहीं कह सकती है।
जानें पूरा मामला
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि याचिकाकर्ता का यह कहना है कि उनके पति ने शादी के बाद उनके साथ दुर्व्यवहार किया और उन्हें यौन शोषण का भी सामना करना पड़ा है; इतना ही नहीं, याचिकाकर्ता का कहना है कि उनके पति ने उनकी बेटी के साथ भी दुर्व्यवहार किया।
इस सबके चलते याचिकाकर्ता अपनी मां के घर पर रहने लगी और फिर उन्होंने 'घरेलू हिंसा से महिलाओं का संरक्षण अधिनियम, 2005' के तहत अपने पति के खिलाफ जेएमएफसी कोर्ट (JMFC Court) में मामला दर्ज किया।
जेएमएफसी ने अपने ऑर्डर में कहा है कि याचिकाकर्ता ने प्रतिवादी पर घरेलू हिंसा के जो आरोप लगाए हैं तो 'छोटे' हैं और असली विवाद उनके बच्चों को लेकर है; इस सबके बाद भी जेएमएफसी ने प्रतिवादी को याचिकाकर्ता को मेंटेनेंस देने का निर्देश दिया।
अपील में इस कोर्ट के जज ने ऑर्डर रिवर्स कर दिया और कहा कि प्रतिवादी पर लगाए गए आरोप घरेलु हिंसा में नहीं आते हैं और इसलिए याचिकाकर्ता को अंतरिम मेंटेनेंस नहीं मिलेगी। उच्च न्यायालय ने इस अदालत के ऑर्डर को खारिज कर दिया है।