हाल ही में दिल्ली हाईकोर्ट ने परिवारिक मामलों में एक बेहद अहम फैसला सुनाया है. दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा कि पति का दूसरी महिला को घर में रखना और उससे बच्चा होना पत्नी के साथ घरेलु हिंसा है. साथ ही ऐसी स्थिति में पत्नी का अपना वैवाहिक घर छोड़ना उसे गुजारा भत्ता से वंचिक करने का आधार हीं हो सकता है (Delhi High Court maintains wife's alimony). दिल्ली हाईकोर्ट ने इस दौरान पति का परजीवी कहने को आपत्तिजनक करार दिया.
दिल्ली हाईकोर्ट में जस्टिस सुब्रमण्यम प्रसाद की अदालत ने पति की गुजारा भत्ता रद्द करने की मांग से इंकार करते हुए उसकी याचिका खारिज कर दी. अदालत ने ट्रायल कोर्ट द्वारा महिला को 30 हजार रूपये रूपये गुजारा भत्ता देने की राशि को बरकरार रखा है. अदालत ने दावा किया कि महिला की गुजारा भत्ता की मांग घरेलु हिंसा अधिनियम के तहत नहीं आती है. पति ने दावा किया था कि महिला ने अपनी मर्जी से ससुराल में रहना बंद कर दिया था और अपने बच्चों को पति के माता-पिता के पास छोड़ना पड़ा क्योंकि वह उनकी परिवरिश करने में सक्षम नहीं थी.
बहस के दौरान ही पति ने अदालत से कहा कि महिला परजीवी है और कानून का दुरूपयोग कर रही है. अदालत ने इस बात से सख्त आपत्ति जताते हुए कहा कि एक महिला अपने परिवार को संभालने व बच्चों की परवरिश करने के लिए अपनी नौकरी तक छोड़ देती है, ऐसे में किसी महिला को परजीवी कहना पूरी महिला जाति का अपमान है.
अदालत ने पति की किसी दलील को मानने से इंकार करते हुए याचिका खारिज कर दी.
महिला (याचिकाकर्ता की पत्नी) ने बताया कि उनकी शादी साल 1998 में हुई थी. साल 2010 में पति एक अन्य महिला को लेकर घर में आ गया, जिससे उसका अवैध संबंध था. पति को उससे एक बेटी भी है. महिला ने अपनी शिकायत में महिला को धमकाने का भी आरोप लगाया, जिसमें ससुराल वालों ने महिला को गुजारा भत्ता के लिए आवेदन दायर करने से मना किया था.
हालांकि दिल्ली हाईकोर्ट ने भी महिला के ही पक्ष में फैसला सुनाते हुए उसकी 30 हजार रूपये की गुजारा भत्ता की राशि को बरकरार रखा है.