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जम्मू-कश्मीर और लद्दाख HC के लिए 3 स्थायी जजों की नियुक्ति, कॉलेजियम के फैसले पर केन्द्र ने जताई सहमति

राष्ट्रपति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श के बाद जस्टिस वसीम सादिक नर्गल, जस्टिस राजेश सेखरी और जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया है.

जम्मू एंड कश्मीर हाईकोर्ट

Written by Satyam Kumar |Published : March 10, 2025 8:06 PM IST

केद्र सरकार ने सोमवार यानि कि आज को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के लिए तीन स्थायी न्यायाधीशों की नियुक्ति को मंजूरी दी. केन्द्र ने यह निर्णय सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम द्वारा की गई सिफारिश के आधार पर लिया गया है. 5 मार्च को हुई अपनी बैठक में, सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उपरोक्त अतिरिक्त न्यायाधीशों की स्थायी न्यायाधीशों के रूप में नियुक्ति के प्रस्ताव को मंजूरी दी थी, जिसे केन्द्र सरकार ने स्वीकार कर लिया है. इस बात की जानकारी देते हुए केन्द्रीय कानून और न्याय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल ने कहा कि राष्ट्रपति ने भारत के मुख्य न्यायाधीश के साथ परामर्श के बाद जस्टिस वसीम सादिक नर्गल, जस्टिस राजेश सेखरी और जस्टिस मोहम्मद यूसुफ वानी को जम्मू-कश्मीर और लद्दाख उच्च न्यायालय के स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त किया है.

सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस जॉयमाल्या बागची का ट्रांसफर

आज ही राष्ट्रपति ने सुप्रीम कोर्ट के जज के तौर पर जस्टिस जॉयमाल्या बागची की सुप्रीम कोर्ट जज के तौर पर नियुक्ति को लेकर सहमति जताई है.  जस्टिस जॉयमाल्या बागची का सुप्रीम कोर्ट में लंबा कार्यकाल होगा. उनके मई 2031 में जस्टिस के वी विश्वनाथन के रिटायरमेंट के बाद चीफ जस्टिस बनने की संभवाना है. बीते गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम ने उनके नाम सिफारिश सरकार के पास भेजी थी. बता दें कि जस्टिस जॉयमाल्या बागची के शपथ लेने के बाद सुप्रीम कोर्ट में जजों की संख्या 33 हो जाएगी.

जजों की नियुक्ति की प्रोसीजर

संविधान के अनुच्छेद 217  (1) के तहत, उच्च न्यायालयों के मुख्य न्यायाधीश और न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा की जाती है. मुख्य न्यायाधीश को अतिरिक्त न्यायाधीश को स्थायी न्यायाधीश के रूप में नियुक्त करने के लिए सिफारिश भेजते समय, उन्हें संबंधित न्यायाधीश द्वारा किए गए मामलों का मासिक निपटान और उनके द्वारा दिए गए निर्णयों की सांख्यिकी भी प्रस्तुत करनी होती है. यह जानकारी न्यायपालिका की कार्यक्षमता को दर्शाती है. सिफारिश के साथ, न्यायाधीशों के कार्य दिवसों की कुल संख्या, वे वास्तव में कितने दिन अदालत में उपस्थित रहे और अनुपस्थिति के दिनों की जानकारी भी प्रस्तुत करनी होती है.

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(खबर एजेंसी इनपुट से है)