लिव-इन में रहने वाले सेम-सेक्स कपल्स के लिए क्या है कानूनी सुरक्षा?
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले सेम सेक्स कपल्स को कई राज्यों के हाईकोर्ट्स ने वो अधिकार दिए हैं जो फिलहाल इन्हें संवैधानिक तौर पर नहीं मिले हैं। जानिए
भारत में लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले सेम सेक्स कपल्स को कई राज्यों के हाईकोर्ट्स ने वो अधिकार दिए हैं जो फिलहाल इन्हें संवैधानिक तौर पर नहीं मिले हैं। जानिए
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के डीक्रिमिनलाइज होने के बाद भारत में सेम-सेक्स कपल्स को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने पर क्या आधिकार मिलते हैं?
समलैगिंग विवाह की कानूनी मान्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि भारतीय कानून किसी व्यक्ति को वैवाहिक स्थिति के बावजूद बच्चे को गोद लेने की अनुमति देते हैं.
समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर दायर करीब 20 याचिकाओं पर Supreme Court की 5 सदस्य संविधान पीठ सुनवाई कर रही है.सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार की ओर से सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने समिति को लेकर जानकारी दी है.
हलफनामे में केन्द्र ने कहा है कि वर्तमान मामले में संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्यों के विधायी अधिकार और राज्यों के निवासियों के अधिकार शामिल हैं और इसलिए सभी राज्यों को भी इस सुनवाई में शामिल किया जाना चाहिए.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है.समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाएं दायर की गईं.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई करेगी. पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है.
अपने तर्क के सहमत जमीयत ने याचिका में कहा है कि याचिकाकर्ता Same-sex marriage की अवधारणा पेश करके एक फ्री-फ्लोटिंग सिस्टम शुरू करने और विवाह जैसी स्थिर संस्था की अवधारणा को कमजोर करने की मांग कर रहे है.
याचिकाओं में कहा गया है कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा न देना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि सेम सेक्स मैरिज को अनुमति न देना समानता के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करना भी है.
भारतीय दंड संहिता की धारा 377 के डीक्रिमिनलाइज होने के बाद भारत में सेम-सेक्स कपल्स को लिव-इन रिलेशनशिप में रहने पर क्या आधिकार मिलते हैं?
समलैगिंग विवाह की कानूनी मान्यता के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को कहा है कि भारतीय कानून किसी व्यक्ति को वैवाहिक स्थिति के बावजूद बच्चे को गोद लेने की अनुमति देते हैं.
समलैंगिक विवाह की कानूनी मान्यता को लेकर दायर करीब 20 याचिकाओं पर Supreme Court की 5 सदस्य संविधान पीठ सुनवाई कर रही है.सुनवाई के दौरान केन्द्र सरकार की ओर से सॉलिस्टर जनरल तुषार मेहता ने समिति को लेकर जानकारी दी है.
हलफनामे में केन्द्र ने कहा है कि वर्तमान मामले में संविधान की सातवीं अनुसूची के तहत राज्यों के विधायी अधिकार और राज्यों के निवासियों के अधिकार शामिल हैं और इसलिए सभी राज्यों को भी इस सुनवाई में शामिल किया जाना चाहिए.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान में जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है.समलैंगिक विवाह को मान्यता देने के लिए सुप्रीम कोर्ट में 20 याचिकाएं दायर की गईं.
CJI डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5 सदस्य संविधान पीठ इस मामले पर सुनवाई करेगी. पीठ में CJI डीवाई चंद्रचूड़ के साथ जस्टिस संजय किशन कौल, जस्टिस एस रवींद्र भट, जस्टिस हेमा कोहली, जस्टिस पीएस नरसिम्हा शामिल है.
अपने तर्क के सहमत जमीयत ने याचिका में कहा है कि याचिकाकर्ता Same-sex marriage की अवधारणा पेश करके एक फ्री-फ्लोटिंग सिस्टम शुरू करने और विवाह जैसी स्थिर संस्था की अवधारणा को कमजोर करने की मांग कर रहे है.
याचिकाओं में कहा गया है कि सेम सेक्स मैरिज को कानूनी दर्जा न देना उनके संवैधानिक अधिकारों का उल्लंघन है. याचिका में कहा गया है कि सेम सेक्स मैरिज को अनुमति न देना समानता के अधिकार, धार्मिक स्वतंत्रता के अधिकार और जीवन के अधिकार का उल्लंघन करना भी है.