Public Servant के काम में बाधा डालना अपराध है, जानें सजा
एक लोक सेवक के आदेश की अवहेलना करना या उनके काम में बाधा डालना अपराध है. दोषी पाए जाने पर कानूनी रूप से वह व्यक्ति दंडित किया जाता है.
एक लोक सेवक के आदेश की अवहेलना करना या उनके काम में बाधा डालना अपराध है. दोषी पाए जाने पर कानूनी रूप से वह व्यक्ति दंडित किया जाता है.
एक पब्लिक सर्वेंट के आदेश की अवहेलना करना या उनके काम में बाधा डालना एक अपराध है. दोषी पाए जाने पर कानूनी रूप से वह व्यक्ति दंडित किया जाता है.
अगर कोई व्यक्ति किसी लोक सेवक के कहने पर सच बोलने की शपथ या प्रतिज्ञा नहीं लेता है या इंकार कर देता है वह दोषी माना जाएगा. जिसके लिए उसे सजा भी प्राप्त हो सकती है.
सुप्रीम कोर्ट हत्या के आरोपित इंद्रजीत दास की त्रिपुरा हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. हाई कोर्ट ने दास की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34 (हत्या और साझा मंशा) और धारा 201 (साक्ष्य मिटाना) के तहत सुनाई गई सजा बरकरार रखी थी.
लोक सेवक लोगों की मदद करने के लिए होते हैं, कुछ लोग उनकी ताकत का अपने फायदे के लिए इस्तेमाल करना चाहते हैं जो कानूनी रूप से अपराध है.
दिल्ली के उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया शराब नीति मामले में बेल के लिए मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट पहुंचे थे. जहां उन्होंने अपनी याचिका में सीबीआई जांच और गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए जमानत की मांग की थी.
17 नवंबर 2021 को दिल्ली सरकार की नई आबकारी नीति लॉन्च हुई थी. इसमें बीजेपी की ओर से घोटाले का आरोप लगाया गया था. सीबीआई ने इस मामले में 16 लोगों पर FIR दर्ज की, जिसमें सिसोदिया को आरोपित नंबर 1 बनाया.
चुनाव के समय चुनाव में खड़े अभ्यर्थी जोर-शोर से प्रचार प्रसार करते हैं और जीतने का प्रयास करते हैं. इस दौरान कई ऐसे अभ्यर्थी होते हैं जो जीतने के लिए अपराध भी कर बैठते हैं.
कानून से झूठ बोलना, या कानूनी प्रक्रिया में इस्तेमाल होने वाले दस्तावेजों के साथ छेड़छाड़ करना अपराध है जिसके लिए कानून सख्त सजा देता है.
देश का कोई नेता हो या फिर किसी निजी संगठन में काम करने वाला क्लर्क या फिर कोई भी वो कर्मचारी जिसके कंधों पर पैसों की लेनदेन का ब्योरा रखने की जिम्मेदारी है.अगर वो अपने काम के साथ कोताही करता हैं तो कानून उसे माफ नहीं करता.
अगर कोई व्यक्ति ये कहता है कि उसे उस बात पर विश्वास है जिस पर उसे विश्वास नहीं है, या फिर ये कहना कि वह उस बात को जानता है बल्कि वह नहीं जानता, वह भी इस धारा के तहत मिथ्या साक्ष्य देने का दोषी पाया जाएगा.
हमारे देश में कानून नागरिकों के बारे में सोच कर ही बनाया गया है इसलिए हर कानून का पालन करना सभी की जिम्मेदारी है. जो नियम को नहीं मानता वह दोषी माना जाएगा. इसके लिए उसे भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code-IPC) के तहत दंडित भी किया जा सकता है. कुछ ऐसे ही अपराध का जिक्र किया गया है IPC की धारा 174 में और 174A में.
अगर कोई व्यक्ति लोक सेवक का आदेश न मानकर गैर-हाजिर रहता है तो वो अपराधी माना जाएगा और IPC के तहत वह सजा का भागीदार होगा
शारीरिक संबंध जब भी जोर जबरदस्ती के साथ बनाया जाए तो वह अपराध ही कहलाता है जिसके लिए भारतीय दंड संहिता में सजा का प्रावधान किया गया है.
आपको बता दें कि लोक सेवक विभिन्न प्रक्रियाओं के लिए जिम्मेदार होते हैं. वो जांच और अदालती कार्यवाही में मददगार होते हैं. आईपीसी की धारा 21 के तहत लोक सेवक को परिभाषित किया गया है.
लोक सेवक या सरकारी अधिकारी को सभी गतिविधियों, जांचों और प्रोटोकॉल के लिए जवाबदेह ठहराया जाता है जो अदालती कार्यवाही और न्याय के प्रशासन से संबंधित हैं.
हमारे देश का कानून हर उस काम को करने से रोकता है जिससे किसी की जान जा सकती है, कोई नुकसान पहुंच सकता है या समाज की शांति भंग हो सकती है.
हमारा देश में जनता को अपना प्रतिनिधि चुनने का, किसी भी नागरिक को चुनाव में खड़े होने का अगर कोई अपनी सत्ता का दुरुपयोग करता है तो उसे सत्ता से उतारने का भी पूरा अधिकार है.
भारतीय दंड सहिंता (Indian Penal Code) में 208 और 210 के तहत परिभाषित अपराध के अनुसार जो कोई व्यक्ति, किसी राशि के लिए धोख से अपने खिलाफ डिक्री (Decree) होने देता है या अपने हित में डिक्री (Decree) हासिल करता है, तो दोनों ही स्थिति में उसे दंडित किया जा सकता है. आइए जानते हैं IPC की धारा 208 और 210 के विषय में कुछ अहम बातें.
Indian Penal Code की धाराएं 19, 20 और 21 में न्यायाधीश, न्यायालय (Court of Justice) और लोक सेवक को परिभाषित करती है.
भारतीय दंड संहिता 1860 में कई अपराध और सजा दोनों के बारे में जानकारी दी गई है. इनमें से हैं धारा 117 और 118 है. आईए जानते हैं धारा 117 और 118 में किन अपराधों के लिए सजा मिलती है.
भारतीय दंड संहिता(Indian Penal Code)1860 की धारा (Section)120A,120B चैप्टर पांच A के अंतर्गत आता है. इस चैप्टर को दो भागों में बाटा गया है. पहली धारा (Section)120A और दूसरी धारा (Section)120B.
हमारे देश के कानून के अनुसार किसी सरकारी कार्मिक यानी लोकसेवक द्वारा किसी अपराध को छुपाने या अपराध करने में मदद करने पर भी जेल की सजा का प्रावधान करता है.
IPC में हर अपराध की अलग परिभाषा दी गई है. इसके अंदर आने वाले धारा 114 और 115 भी किसी अपराध और उसके तहत क्या सजा होनी चाहिए उसके बारे में बताता है.
ऐसे चीज़ जो धरती से नहीं जुड़ी हुई है और उसे उसकी जगह से किसी दूसरी जगह पर आसानी से ले जाया जा सकता है. जैसे आपकी पॉकेट में रखा हुआ पैसा, मोबाईल, आपकी घड़ी, आईपैड, गाडी, आभूषण, कंप्यूटर, धन जैसी मूल्यवान चीजें चल संपत्ति (Movable Property) में आती है, जिन्हें एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाया जा सकता है.
मानहानि दो रूपों में हो सकती है- लिखित या मौखिक रूप में. लिखित रूप में यदि किसी के विरुद्ध प्रकाशितरूप में या लिखितरूप में झूठा आरोप लगाया जाता है या उसका अपमान किया जाता है तो यह "अपलेख" कहलाता है लेकिन, जब किसी व्यक्ति के विरुद्ध कोई अपमानजनक कथन या भाषण दिया जाता है, जिसे सुनकर लोगों के मन में व्यक्ति विशेष के प्रति घृणा या अपमान उत्पन्न हो तो वह "अपवचन" कहलाता है.
IPC की धारा 113 भी दुष्प्रेरण (उकसाने) पर मिलने वाले सजा को लेकर ही है. जब कोई किसी को अपराध के लिए उकसाता है तो उस अपराध के अलावा कोई और अपराध हो जाए और अगर उकसाने वाले व्यक्ति को उस बारे में पहले से ही पता हो, तब उसे कैसी सजा मिलेगी. क्या उसे वही सजा मिलेगी जिसके लिए उसने उकसाया था या फिर कुछ और अपराध होने की वजह से उकसाने वाले को सजा नहीं मिलेगी.
क्या आपको पता है हमारे देश के कानून में इस तरह के अपराध को गंभीर अपराध माना गया है, क्योकि झूठे सबूत या झूठे प्रमाण पत्र या बयान किसी के जीवन को भी प्रभावित कर सकते है. IPC में झूठे सबूत या गवाही देने वाले व्यक्ति के साथ-साथ उन झूठे साक्ष्यों को इस्तेमाल करने वाले व्यक्ति को भी सख्त सज़ा का प्रावधान किया गया है. आइए जानते हैं, झूठे सबूत, प्रमाणपत्र या घोषणा को सच्चा बताकर इस्तेमाल करने का क्या मतलब है और न्यायालय में ऐसे सबूत जमा करने पर क्या हो सकती है भारतीय दंड सहिंता (IPC) के तहत कार्रवाई.
Bombay High Court ने पुलिस द्वारा Swiggy delivery boy पर IPC की कई धाराओं में मामला दर्ज करने पर फटकार लगाते हुए याचिकाकर्ता के खिलाफ दर्ज एफआईआर को रद्द करने के आदेश दिए हैं. 18 वर्षिय स्टूडेंट को हुई परेशानी के लिए High Court ने राज्य सरकार पर 20 हजार का जुर्माना भी लगाया है. जो जिम्मेदार अधिकारियों से वसूला जाएगा.
भारतीय दंड सहिंता की धारा 306 के अनुसार, अगर कोई व्यक्ति, दूसरे व्यक्ति को आत्महत्या करने के लिए उकसाता है और वह व्यक्ति आत्महत्या कर लेता है तो उस व्यक्ति को इस धारा के तहत सज़ा सुनाई जा सकती है.
संसद द्वारा 2017 में पारित किए गए अधिनियम द्वारा यह स्पष्ट कर दिया गया है कि आत्महत्या की कोशिश करने वाले व्यक्ति को सहायता की आवश्यकता है और उसके खिलाफ कार्यवाही शुरू करके, उसे व्यर्थ में परेशान नहीं किया जाना चाहिए.
इस धारा के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति जो कानूनी रूप से सत्य बोलने के लिए बाध्य है, या तो शपथ द्वारा या कानून के किसी स्पष्ट प्रावधान द्वारा, लेकिन वह कोई ऐसा बयान देता है जो झूठा है और जिसे वह जानता है या विश्वास करता है कि वह झूठ है या सत्य नहीं है, इस काम को झूठा साक्ष्य देना कहा जाता है. झूठा साक्ष्य देना या तो मौखिक रूप से हो सकता है या किसी भी अन्य तरीके से दिया गया साक्ष्य हो सकता है.
भारतीय दंड संहिता (Indian Penal Code) की धारा (Section) 112 में एक साथ मिलने वाली कई सजा के बारे में बताता है. इस धारा के अंतर्गत बताया गया है कि आखिर कब एक अपराध के लिए उकसाने वाले व्यक्ति को कई अपराध के लिए सजा मिलती है. कैसे दुष्प्रेरक का एक आपराधिक उद्देश्य कई अपराधों में बदल जाता है, जिसके कारण दुष्प्रेरक इस धारा के तहत एक से ज्यादा अपराधों के लिए सजा का पात्र हो जाता है.
भारत में किसी व्यक्ति को अपराध के लिए उकसाना कानून के नजर में दंडनीय है. धारा 111 के तहत इस बात का जिक्र है कि अगर आप किसी को बहका रहे हैं किसी अपराध के लिए तो बहकाने वाले को किस तरह की सजा मिलेगी. जब जिस अपराध के लिए उकसाया गया है. उस अपराध के बजाय कोई और अपराध हो जाए तो बहकाने वाले को क्या सजा मिलेगी. इसी के बारे में धारा 111 में बताया गया है.
IPC की धारा 109 में अपराध के दुष्प्रेरण पर क्या सजा दी जाए इसका जिक्र किया गया है. धारा 110 में इस बात का जिक्र है जब कोई किसी को किसी अपराध के लिए उकसाता है और जिस अपराध के लिए उकसाया गया था. वो ना होकर कोई और अपराध हो जाय तो उकसाने वाले को क्या सजा मिलती है.
IPC की यह धारा कहती है की इस अधिनियम में सारे परिभाषित शब्द सिर्फ इस अधिनियम के संदर्भ में ही प्रयोग किये जायेंगे.