हत्या मामले से जुड़ा था IPC सेक्शन 302, बदलकर BNS की धारा102 हो गया
इंडियन पीनल कोड की जगह भारतीय न्याय संहिता के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया गया है. जिसके चलते अब हत्या के मामले को IPC सेक्शन 302 की जगह BNS सेक्शन 102 में दर्ज की जाएगी.
इंडियन पीनल कोड की जगह भारतीय न्याय संहिता के कुछ प्रावधानों में बदलाव किया गया है. जिसके चलते अब हत्या के मामले को IPC सेक्शन 302 की जगह BNS सेक्शन 102 में दर्ज की जाएगी.
अगस्त 2003 की रात को याची के पिता व उसके अन्य परिजन छत पर सो रहे थे, इस दौरान हत्या को अंजाम दिया गया
अगस्त 2003 की रात को याची का पिता व उसके अन्य परिजन छत पर सो रहे थे. इस दौरान दो लोगों ने वहां पहुंच कर याची के पिता की हत्या कर दी थी. इस मामले में पुलिस ने पहले अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
हमारे समाज में मानव शरीर के प्रति होते गंम्भीर अपराधों में मुख्यत: गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) और हत्या (Murder) है.
पुलिस हिरासत, न्यायिक हिरासत, सेना या किसी और जांच एजेंसी की हिरासत में अगर किसी आरोपी या दोषी की मौत होती है तो उसे कस्टोडियल डेथ होना कहते है. आइए नज़र डाले किन धाराओं के तहत पुलिस अधिकारी पर हो सकती है कारवाई
सुप्रीम कोर्ट हत्या के आरोपित इंद्रजीत दास की त्रिपुरा हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. हाई कोर्ट ने दास की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34 (हत्या और साझा मंशा) और धारा 201 (साक्ष्य मिटाना) के तहत सुनाई गई सजा बरकरार रखी थी.
हिरासत में मौत होने पर पुलिस अधिनियम, 1861 (The Police Act, 1861) की धारा 7 के तहत एक पुलिस अधिकारी को निलंबित किया जा सकता है.
अगस्त 2003 की रात को याची का पिता व उसके अन्य परिजन छत पर सो रहे थे. इस दौरान दो लोगों ने वहां पहुंच कर याची के पिता की हत्या कर दी थी. इस मामले में पुलिस ने पहले अज्ञात के खिलाफ मामला दर्ज किया था.
हमारे समाज में मानव शरीर के प्रति होते गंम्भीर अपराधों में मुख्यत: गैर इरादतन हत्या (Culpable Homicide) और हत्या (Murder) है.
सुप्रीम कोर्ट हत्या के आरोपित इंद्रजीत दास की त्रिपुरा हाई कोर्ट के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर सुनवाई कर रही थी. हाई कोर्ट ने दास की अपील को खारिज करते हुए निचली अदालत द्वारा उसे भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 302/34 (हत्या और साझा मंशा) और धारा 201 (साक्ष्य मिटाना) के तहत सुनाई गई सजा बरकरार रखी थी.
हिरासत में मौत होने पर पुलिस अधिनियम, 1861 (The Police Act, 1861) की धारा 7 के तहत एक पुलिस अधिकारी को निलंबित किया जा सकता है.