जाने Judicial Separation और Divorce के बीच अंतर
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 द्वारा दी गई ये दो राहतें हैं जिससे विवाहित जोड़ों के बीच मतभेदों को दूर करने या वैवाहिक संबंधों से मुक्त होने का अवसर मिला है
हिन्दू विवाह अधिनियम, 1955 द्वारा दी गई ये दो राहतें हैं जिससे विवाहित जोड़ों के बीच मतभेदों को दूर करने या वैवाहिक संबंधों से मुक्त होने का अवसर मिला है
जिन मैरिड कपल्स की आपस में नहीं बनती है वो अलगाव का रास्ता अपनाते हैं. जिसके लिए वो कोर्ट का दरवाजा खटखटाते हैं. क्या आप जानते हैं कि कानूनी रूप से अलगाव के भी दो रास्ते हैं.
हमारे देश में हर धर्म के लिए अपने व्यक्तिगत कानून हैं जो उनके दीवानी और पारिवारिक मामलों से संबंधित हैं. मुस्लिम कानून के तहत तलाक या तो न्यायिक प्रक्रिया या गैर-न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से किया जा सकता है, लेकिन हम अभी न्यायिक प्रक्रिया के बारे में समझेंगे.
मुस्लिम समाज में एक विवाह का कानूनी समापन तलाक के रूप में है. जब व्यक्तिगत विवाद के कारण पति / पत्नी एक साथ रहने के बजाए अलग होने का फैसला करते हैं, तो इस्लाम में तलाक का प्रावधान किया गया है. इस्लाम में तलाक निजी कानूनों द्वारा शासित है, जिसे पति या पत्नी के द्वारा शुरू किया जा सकता है.
हमारे देश में शादी, तलाक़, बच्चे गोद लेना, बच्चे को संपत्ति में हिस्सा देना, विधवा को संपत्ति में हिस्सा देना जैसे कई मामलों का निपटारा Family Court में होता है. शादी register करना, तलाक़ देना, संपत्ति में हिस्सा देने की ज़िम्मेदारी भी Family Court की है.
हाईकोर्ट ने मुस्लिम महिला के भरपोषण मामले में स्पष्ट कर दिया है कि एक तलाकशुदा महिला, मुस्लिम अधिनियम, 1986 की धारा 3(2) के तहत भरणपोषण के लिए मजिस्ट्रेट के समक्ष आवेदन दायर कर सकती है. साथ ही ये उसका अधिकार है कि वह अपने शादी से पहले या शादी के समय दी गई संपत्तियों को प्राप्त कर सकती हैं.