वैवाहिक विवाद में अदालत की सुनवाई से नाखुश व्यक्ति ने न्यायाधीश की कार में तोड़फोड़ की
अपनी पत्नी के साथ विवाद में खुद अपनी पैरवी कर रहे आरोपी ने दावा किया कि उसे अदालत से न्याय नहीं मिल रहा है.
अपनी पत्नी के साथ विवाद में खुद अपनी पैरवी कर रहे आरोपी ने दावा किया कि उसे अदालत से न्याय नहीं मिल रहा है.
दंड प्रक्रिया संहिता (Code of Criminal Procedure- CrPC), 1973 की धारा 125 के अनुसार भरण पोषण का एक धर्मनिरपेक्ष (Secular) नियम है.
भरण पोषण (Maintenance) मांगने का अधिकार एक वैधानिक अधिकार है. हिंदू कानून में जानिए कितने तरह के होते हैं भरण पोषण
भरण पोषण से संबंधित सभी कानून पारिवारिक कोर्ट के अधिकार क्षेत्र (Jurisdiction) में आते हैं.
एक कोर्ट ने हाल ही में यह फैसला सुनाया है कि महिला की कमाई अगर पति से ज्यादा है, तो उन्हें तलाक के बाद मेन्टेनेंस नहीं मिलेगी. आइए इस बारे में सबकुछ जानते हैं
तलाक से संबंधित मामले की सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि "जीवनसाथी रहे पति या पत्नी को एक साथ जीवन फिर से शुरू करने के लिए मजबूर नहीं किया जा सकता है. पति-पत्नी को शादी में हमेशा बांधे रखने की कोशिश करने से कुछ नहीं मिलता है"
पति या पत्नी की तरफ से लंबे समय तक अपने जीवनसाथी के साथ बिना पर्याप्त कारण के यौन संबंध बनाने की अनुमति न देना, अपने आप में मानसिक क्रूरता है.
कुटुम्ब न्यायालय की अतिरिक्त प्रधान न्यायाधीश प्रवीणा व्यास ने 25 अप्रैल को पारित आदेश में कहा,‘‘बालिका की उम्र 10 साल है और वह युवावस्था की ओर अग्रसर है.
सुप्रीम कोर्ट की 5 सदस्य संविधान पीठ ने तलाक और शादी रद्द करने के मामले में महत्वपूर्ण फैसला सुनाया और कहा है कि सुप्रीम कोर्ट को अनुच्छेद 142 के तहत विवाह को भंग करने के लिए अपनी शक्तियों का प्रयोग करत हुए तलाक की Decree (डीक्री) जारी कर सकता है.
सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि शादी का जारी रहना असंभव होने की स्थिति (irretrievable breakdown of marriage) में सुप्रीम कोर्ट सीधे अपनी तरफ से तलाक का आदेश दे सकता है.
22 अगस्त, 2017 सुप्रीम कोर्ट के द्वारा तीन तलाक़ को असंवैधानिक करार दे दिया गया. लेकिन अभी भी इसके मामले सामने आते रहते हैं. इसलिए आज आपको बताएंगें कि तीन तलाक़ के आधार पर तलाक़ देने पर सज़ा क्या है.
जब किसी पेरेंट का तलाक होता है तो बच्चों को बहुत परेशानी होती है. तब अदालत देखती है कि बच्चे की कस्टडी किसे दी जाए माता को या पिता को कुछ ऐसे ही मामले पर सुनवाई चल रही थी दिल्ली हाई कोर्ट में.
हाईकोर्ट ने ट्रायल कोर्ट द्वारा पति को क्रूरता के आधार पर दिए तलाक के आदेश को चुनौती देते वाली पत्नी की अपील को खारिज कर दिया है.हाईकोर्ट ने कहा कि रिश्तों में ऐसी स्थिती में तलाक की डिक्री देने से इंकार करना दोनो पक्षकारों के लिए विनाशकारी होगा.
मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 के अनुसार, जब पति और पत्नी को लगता है कि वे एक साथ नहीं रह सकते तो वो एक दूसरे को तलाक दे सकते है. तलाक देने के कई प्रक्रिया हो सकते हैं जिसके तहत एक विवाहित जोड़े के बीच वैवाहिक सम्बन्ध समाप्त हो जाता है.
मुस्लिम विवाह अधिनियम 1939 के अनुसार, पति या पत्नी एक दूसरे को तलाक दे सकते है. इसका ज्यादातर इस्तेमाल तब किया जा सकता है जब पति और पत्नी को लगता है कि वे एक साथ नहीं रह सकते है, तो वे अदालत में इस अधिनियम के तहत तलाक के लिए याचिका दायर कर सकते हैं.
हिन्दू परंपरा के अनुसार विवाह को दो आत्माओं का मिलन माना गया हैं, जिसे तोड़ा नहीं जा सकता. लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम ने हिंदू जोड़ों को कानूनी रूप से एक-दूसरे को तलाक देने का विकल्प दिया है.
शादी के बाद जब पति पत्नी के बीच ताल मेल नहीं बैठ पाता तो वो कानून का सहारा लेते हैं. ताकि अलग होकर वो अपनी मर्जी से अपना जीवन जी सकें. कानूनी भाषा में इसे तलाक लेना कहते हैं. तलाक लेने और देने के लिए भी अदालत वजह मांगती है. बिना कोई ठोस कारण कोई किसी को तलाक नहीं दे सकता है.
तलाक को हमारा समाज बहुत अच्छी नजरों से नहीं देखता है इसलिए जब भी कोई महिला तलाक के बारे में सोचती है तो सबसे पहले वो यही सोचती है कि समाज क्या कहेगा लेकिन महिलाएं इन सबसे ऊपर उठ रही हैं क्योंकि महिलाएं अब जागरूक हो रही है अपने अधिकारों के प्रति.