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कुलपति अपने CV में यौन उत्पीड़न के आरोपों को भी शामिल करें... जानें सुप्रीम कोर्ट ने क्यों सुनाया ये सख्त फैसला

सुप्रीम कोर्ट ने कुलपति के पद के उम्मीदवार को अपने सीवी में यौन उत्पीड़न के लगे आरोपों को शामिल करने के आदेश देते हुए कहा कि गलती करने वाले को माफ करना उचित हो सकता है, लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए.

रेप विक्टिम ( पिक क्रेडिट: IANS)

Written by Satyam Kumar |Published : September 14, 2025 9:04 PM IST

सुप्रीम कोर्ट ने कुलपति के पद के उम्मीदवार को अपने सीवी में यौन उत्पीड़न के लगे आरोपों को शामिल करने को कहा है. सुप्रीम कोर्ट ने सख्ती से कहा कि गलती करने वाले को माफ करना उचित हो सकता है, लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए. सुप्रीम कोर्ट ने यह टिप्पणी करते हुए निर्देश दिया कि एक विश्वविद्यालय के कुलपति पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों से जुड़ा उसका फैसला उनके बायोडाटा का हिस्सा बनाया जाए, ताकि यह उसे हमेशा परेशान करता रहे, भले ही शिकायत समयसीमा से बाहर होने के कारण खारिज हो गई हो.

जस्टिस पंकज मिथल और जस्टिस प्रसन्ना बी वराले की पीठ ने शुक्रवार को पश्चिम बंगाल स्थित एक विश्वविद्यालय के एक संकाय सदस्य की याचिका पर यह आदेश पारित किया, जिसने दिसंबर 2023 में कुलपति पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए शिकायत दर्ज कराई थी. शीर्ष अदालत ने कहा कि कलकत्ता हाई कोर्ट की खंडपीठ ने स्थानीय शिकायत समिति (एलसीसी) के उस फैसले को बहाल करने में कोई कानूनी त्रुटि नहीं की है, जिसमें कहा गया था कि अपीलकर्ता की ओर से शिकायत किये जाने की समय सीमा समाप्त हो चुकी है और शिकायत को खारिज किया जा सकता है.

पीठ ने कहा,

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‘‘गलती करने वाले को माफ करना उचित हो सकता है, लेकिन गलती को भूलना नहीं चाहिए। अपीलकर्ता (संकाय सदस्य) के खिलाफ जो गलती हुई है, उसकी तकनीकी आधार पर जांच नहीं की जा सकती, लेकिन उसे भूलना नहीं चाहिए.’’

पीठ ने हाई कोर्ट के आदेश के खिलाफ अपील को खारिज करते हुए कहा कि इस मामले को ध्यान में रखते हुए, हम निर्देश देते हैं कि प्रतिवादी संख्या एक (कुलपति) द्वारा कथित यौन उत्पीड़न की घटनाओं को माफ किया जा सकता है, लेकिन वह गलती उसे हमेशा सताती रहे. इसलिए, यह निर्देश दिया जाता है कि इस फैसले को प्रतिवादी संख्या एक के बायोडाटा का हिस्सा बनाया जाए, जिसका अनुपालन वह व्यक्तिगत रूप से सुनिश्चित करें. शीर्ष अदालत ने कहा कि अपीलकर्ता ने दिसंबर 2023 में एलसीसी में कुलपति पर यौन उत्पीड़न का आरोप लगाते हुए एक औपचारिक शिकायत दर्ज कराई थी.

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एलसीसी ने शिकायत को समय सीमा के बाहर का बताकर खारिज कर दिया, क्योंकि यौन उत्पीड़न की अंतिम कथित घटना अप्रैल 2023 में हुई थी, जबकि शिकायत 26 दिसंबर, 2023 को दर्ज कराई गई थी, जो न केवल तीन महीने की निर्धारित समय अवधि से परे थी, बल्कि छह महीने की विस्तार योग्य सीमा अवधि से भी परे थी. अपनी शिकायत खारिज होने से व्यथित होकर अपीलकर्ता ने हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया.

मई 2024 में हाई कोर्ट के एकल न्यायाधीश ने एलसीसी के आदेश को रद्द कर दिया और शिकायत के गुण-दोष के आधार पर पुनः सुनवाई करने का निर्देश दिया. बाद में हाई कोर्ट की खंडपीठ ने एक रिट अपील पर विचार किया, जिसने दिसंबर 2024 में इसे अनुमति दे दी. खंडपीठ ने माना कि अप्रैल 2023 के बाद अपीलकर्ता के खिलाफ की गई प्रशासनिक कार्रवाइयां कार्यकारी परिषद का सामूहिक निर्णय थीं, जिसमें प्रख्यात शिक्षाविद, न्यायविद और यहां तक कि उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीश भी शामिल थे, और ये केवल कुलपति की व्यक्तिगत कार्रवाई नहीं थी.

शिकायत में किए गए दावों का उल्लेख करते हुए, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि उसने आरोप लगाया था कि कुलपति ने सितंबर 2019 में अपीलकर्ता को अपने कार्यालय में बुलाया और इस बात पर जोर दिया कि वह उनके साथ रात्रि भोज पर आए, जिससे उसे व्यक्तिगत रूप से बहुत लाभ होगा. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिकायत में दावा किया गया है कि अपीलकर्ता ने उससे कहा था कि वह सहज नहीं है और रिश्ते को केवल पेशेवर रखना चाहती है. शिकायत के अनुसार, कुलपति ने उससे यौन संबंध बनाने की मांग की और प्रस्ताव ठुकराने पर उसे धमकी दी. पीठ ने सख्त टिप्पणी करते हुए कहा कि पूरी शिकायत को सीधे पढ़ने से पता चलता है कि प्रतिवादी संख्या एक (कुलपति) द्वारा अपीलकर्ता का यौन उत्पीड़न, यदि कोई हुआ हो, सितंबर 2019 में शुरू हुआ था और इस संबंध में आखिरी घटना अप्रैल 2023 में हुई थी. पीठ ने कहा कि अप्रैल 2023 में यौन उत्पीड़न की पिछली घटना के संबंध में अपीलकर्ता की शिकायत ‘निश्चित रूप से समय से परे’ थी. पीठ ने कहा कि अगस्त 2023 में अपीलकर्ता को पद से हटाने की घटना को पिछली घटनाओं के संबंध में यौन उत्पीड़न का कृत्य नहीं माना जा सकता.