नई दिल्ली: पहली बार 'इन विट्रो फर्टिलाइजेशन' (In Vitro Fertilization) उर्फ 'आईवीएफ' (IVF) ट्रीटमेंट की मदद से पहला बच्चा, लुइस ब्राउन (Louise Brown), 25 जुलाई, 1978 को पैदा हुआ था। यही वजह है कि इस दिन को हर साल 'वर्ल्ड आईवीएफ डे' (World IVF Day) के रूप में मनाया जाता है।
आज, 'वर्ल्ड आईवीएफ डे' पर, आइए जानते हैं कि यह प्रक्रिया क्या है, इसकी मदद से किस तरह एक बच्चे का जन्म होता है और देश में इसको लेकर कानून के तहत क्या दिशानिर्देश और प्रावधान हैं.
भारत में Surrogacy लीगल है? जानें क्या कहता है Surrogacy (Regulation) Act, 2021
'इन विट्रो फर्टिलाइजेशन' यानी आईवीएफ ट्रीटमेंट का इस्तेमाल आमतौर पर एक बांझ दम्पत्ति द्वारा किया जाता है; ये गर्भावस्था धारण करने हेतु एक मानवीय प्रक्रिया है जिसकी मदद वो लोग लेते हैं जो प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण नहीं कर पाते हैं।
आईवीएफ प्रक्रिया में, इच्छुक जोड़े के शुक्राणु और अंडे एकत्र किए जाते हैं, प्रयोगशालाओं में निषेचन होता है, फिर महिला के शरीर से पके हुए अंडे को बाहर निकालकर एक पेट्री डिश में शुक्राणु के साथ मिलाया जाता है। इसके बाद भ्रूण को गर्भाशय में प्रत्यारोपित किया जाता है जिसका परिणाम गर्भावस्था होती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि आईवीएफ को लेकर भारत में 2021 में एक कानून पारित किया गया था जिसका नाम 'सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021' (Assisted Reproductive Technology (Regulation) Act, 2021) है।
इस कानून को मानव शरीर के बाहर शुक्राणु या अंडाणु कोशिका को संभालकर और भ्रूण को महिला के प्रजनन पथ में स्थानांतरित करके गर्भावस्था प्राप्त करने के लिए उपयोग की जाने वाली सभी तकनीकों के रूप में परिभाषित किया गया है। इन तकनीकों में शुक्राणु दान (Sperm Donation), आईवीएफ और गर्भकालीन सरोगेसी (Gestational Surrogacy) शामिल है।
इस कानून के अहम बिंदु क्या हैं, आइए विस्तार से समझते हैं..
- इस अधिनियम के तहत देश के हर एआरटी क्लिनिक का 'भारत के बैंकों और क्लीनिकों की राष्ट्रीय रेजिस्ट्री' (National Registry of Banks and Clinics of India) के तहत पंजीकरण होना अनिवार्य है। यह रेजिस्ट्री ऐसे संस्थानों की जानकारी का एक सेंट्रल डेटाबेस मेंटेन करेगी।
- आईवीएफ क्लिनिक्स और बैंक्स का रेजिस्ट्रेशन की वैधता सिर्फ पांच सालों की होती है जिसके बाद पंजकरण को रिन्यू करवाना होता है। अगर कोई भी संस्थान अधिनियम के प्रावधानों का उल्लंघन करता है तो उसका पंजीकरण कभी भी रद्द या निलंबित किया जा सकता है।
- 'सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021' के तहत हर पंजीकृत एआरटी बैंक उन पुरुषों के वीर्य (Semen) की स्क्रीनिंग, कलेक्शन और स्टोरेज कर सकता है जिनकी उम्र 21 से 55 वर्ष के बीच होती है। यह पंजीकृत बैंक 23 से 35 साल के बीच की उम्र वाली महिलाओं के अंडे भी स्टोर कर सकता है।
- इस अधिनियम के तहत कोई भी महिला जो इस प्रक्रिया में डोनर बनना चाहती हैं, उन्हें शादीशुदा होना जरूरी है। इतना ही नहीं फीमेल डोनर का अपना एक बच्चा तो हो जिसकी उम्र कम से कम तीन साल होनी चाहिए।
- आपकी जानकारी के लिए बता दें कि इस तरह के एआरटी प्रोसीजर को करने से पहले जरूरी है कि डोनर और कपल, दोनों एक लिखित और सूचित सहमति (Written, Informed Consent) दें।
- अगर डोनर को नुकसान का सामना करना पड़ता है या इस प्रक्रिया के दौरान उसका देहांत हो जाता है, तो आईवीएफ करवा रहे दम्पत्ति को डोनर या उसके परिवार को बीमा कवरेज देना होगा।
- किसी भी एआरटी प्रक्रिया का विनियमन राष्ट्रीय और राज्य बोर्ड द्वारा कीय जाएगा जो 'सरोगेसी अधिनियम, 2021' (Surrogacy Act, 2021) के तहत स्थापित किए गए हैं। यह बोर्ड सरकार को इस कानून को लागू करने में अड्वाइज देंगे और एआरटी क्लिनिक्स के लिए एक 'कोड ऑफ कन्डक्ट' भी तैयार करेंगे।
- अगर आप आईवीएफ या किसी अन्य एआरटी प्रक्रिया से जन्मे बच्चे को छोड़ देते हैं या उसका शोषण करते हैं, भ्रूण को खरीदते-बेचते या उनका व्यापार करते हैं, दम्पत्ति या डोनर को परेशान किया जाता है या भ्रूण को किसी पुरुष या जानवर में स्थानांतरित किया जाता है, तो इस अधिनियम में इसके खिलाफ सजा है।
- ऊपर दी गई परिस्थितियों में दोषी पाए जाने पर आपको आठ से बारह साल की जेल की सजा हो सकती है और साथ ही आपको दस से बीस लाख रुपये का जुर्माना भी भरना पड़ सकता है।
- कोई भी एआरटी क्लिनिक या बैंक लिंग-चयनात्मक एआरटी का विज्ञापन या पेशकश नहीं कर सकता है; ऐसा करने पर पाँच से दस साल की जेल की सजा हो सकती है और साथ में दस से 25 लाख रुपये का जुर्माना भी देना पड़ सकता है।
आप को बता दें कि 'सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021' में कुछ संशोधन किए गए हैं जिसके बाद 'सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी विनियम, 2023' (The Assisted Reproductive Technology Regulations, 2023) स्थापित हुए।
इन नियमों के तहत एक एक स्त्री रोग विशेषज्ञ को रोगी की चिकित्सा स्थिति के आधार पर उपचार चक्र के दौरान गर्भाशय में 1-2 भ्रूण स्थानांतरित करना चाहिए। अधिक मातृ आयु (Advanced Maternal Age), बार-बार गर्भपात (Continuous Miscarriages) या बार-बार प्रत्यारोपण विफलता (Recurrent Implantation Failure) जैसी असधारण परिस्थितियों में ही तीन भ्रूणों को स्थानांतरित किया जा सकता है।
इन नियमों के तहत किसी भी स्थिति में, डॉक्टर तीन से अधिक भ्रूण स्थानांतरित नहीं कर सकता है।
बता दें कि 'सहायक प्रजनन प्रौद्योगिकी (विनियमन) अधिनियम, 2021' में यह स्पष्ट किया गया है कि इस प्रक्रिया से जन्मा बच्चा कानून की नजरों में दम्पत्ति का जैविक बच्चा (Biological Child) माना जाएगा और उसे सभी अधिकार दिए जाएंगे। डोनर के पास बच्चे पर माता-पिता का कोई अधिकार नहीं रहता है।