नई दिल्ली: दुनिया में सबसे ज्यादा दिल दहलाने वाले अपराधों में ऐसिड हमला (Acid Attack) शामिल है। ऐसिड हमला पुरुषों और महिलाओं, दोनों के ऊपर होता है लेकिन महिलाओं के ऊपर यह ऐसिड अटैक के मामले ज्यादा सामने आते रहे हैं। भारत उन देशों की सूची में शामिल हैं जहां दुनिया में सबसे ज्यादा ऐसिड अटैक मामले होते हैं।
राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (National Crime Records Bureau) की जानकारी के हिसाब से 2017 से 2021 के बीच, भारत में एक हजार से ज्यादा ऐसिड अटैक मामले दर्ज हुए हैं और यह संख्या हर साल बढ़ रही है। भारत में ऐसिड हमला करने वालों के खिलाफ कानून के तहत प्रावधान क्या हैं, ऐसा करने वालों को क्या सजा दी जाती है और सरकार पीड़ितों की किस प्रकार मदद करता है, आइए सबकुछ जानते हैं...
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि जैसा इसका नाम है, ऐसिड हमले में किसी के चेहरे या शरीर के उस हिस्से पर जो ढका नहीं हुआ है, ऐसिड फेंका जाता है; आमतौर पर ऐसिड हमले का उद्देश्य किसी को परेशान करना, उनके चेहरे को खराब करना, किसी बात का बदला निकालना या फिर पीड़ित को मारना होता है।
उपलब्ध डेटा के अनुसार दुनिया भर में ऐसिड हमलों का शिकार सबसे ज्यादा महिलायें होती हैं और इसके लिए आमतौर पर नायट्रिक, सल्फ्यूरिक और हाइड्रोक्लोरिक ऐसिड का इस्तेमाल किया जाता है। ऐसिड अटैक को लेकर भारत में क्या कानून हैं और यह कब बनें, जानिए।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि 2013 तक, भारत में ऐसिड हमलों के लिए कानून में अलग से कोई खास प्रावधान नहीं थे। ऐसिड हमले के दोषी को भारतीय दंड संहिता की धारा 322 और 325 के तहत सजा सुनाई जाती थी।
आईपीसी की धारा 322 (IPC Section 322) 'किसी को जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाना' (Voluntarily Causing Grievous Hurt) है। इस धारा के तहत यदि कोई किसी को गंभीर रूप से चोटिल करता है और वो ऐसा जानबूझकर करता है तो उसे सजा दी जाती है।
इंडियन पीनल कोड की धारा 325 (Section 325 of IPC) में 'किसी को जानबूझकर गंभीर चोट पहुंचाने की सजा' (Punishment for voluntarily causing grievous hurt) का उल्लेख किया गया है। आईपीसी की धारा 322 के तहत दोषी करार दिए जाने वाले शख्स को इस धारा के तहत सात साल तक की जेल की सजा सुनाई जा सकती है और उसपर जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
ऐसिड अटैक पीड़िता लक्ष्मी अगरवाल (Laxmi Aggarwal) 2005 में महज 15 साल की थीं जब उनपर ऐसिड हमला हुआ था। लक्ष्मी अगरवाल के मामले से इस अपराध के खिलाफ देश में कानून को लेकर कई बड़े बदलाब आए हैं। 2013 में 'आपराधिक कानून (संशोधन) अधिनियम, 2013' (The Criminal Law Amendment Act, 2013) पारित किया गया जिसके तहत भारतीय दंड संहिता में अनुच्छेद 326A और 326B को शामिल किया गया। यह दोनों प्रावधान खास ऐसिड अटैक मामलों के लिए हैं।
सबसे पहले जानते हैं कि आईपीसी की धारा 326 (Section 326 of IPC) 'खतरनाक हथियारों या तरीकों से किसी को गंभीर चोट पहुंचाना' (Voluntarily causing grievous hurt by dangerous weapons or means) क्या है। इस धारा के तहत यदि कोई गोली मारकर, छुरा घोंपकर, काटकर, किसी अन्य खतरनाक हथियार से गंभीर चोट पहुंचाता है या फिर मृत्यु के लिए आग, जहर या किसी विस्फोटक या संक्षारक पदार्थ को इस्तेमाल करता है, उसे आजीवन कारावास, या दस साल तक की जेल की सजा और आर्थिक जुर्माना देना पड़ता है।
भारतीय दंड संहिता की धारा 326A (Section 326A of The Indian Penal Code) 'जानबूझकर ऐसिड आदि से गंभीर चोट पहुंचाने' (Voluntarily causing grievous hurt by use of acid, etc) को लेकर है। इस धारा के अनुसार यदि कोई शख्स किसी को स्थायी या अस्थायी रूप से चोट पहुंचाने के लिए ऐसिड का इस्तेमाल करता है और यह जानता है कि इससे सामने वाले के शरीर का हिस्सा जल सकता है और उसे गंभीर चोट पहुंच सकती है, तो यह माना जाएगा कि उसने ऐसिड अटैक किया है।
ऐसे में दोषी को जेल की सजा सुनाई जाएगी जो कम से कम दस साल की होगी और यह सजा आजीवन कारावास तक बढ़ाई जा सकती है; साथ ही जुर्माना भी लगेगा जो उतना जरूर होना चाहिए जिससे पीड़िता का इलाज हो सके।
इंडियन पीनल कोड की धारा 326B (IPC Section 326B) 'जानबूझकर किसी पर ऐसिड फेंकना या ऐसा करने की कोशिश करना' (Voluntarily throwing or attempting to throw acid) है। इस धारा के तहत यदि कोई किसी पर ऐसिड फेंकता है या ऐसा करने की कोशिश करता है और उसका उद्देश्य उस इंसान को स्थायी या अस्थायी रूप से चोटिल करना, उसके शरीर के हिस्सों को विरूपित करना है, उसे सजा मिलती है।
आईपीसी की धारा 326B के तहत दोषी को जेल की सजा सुनाई जाएगी जिसकी अवधि कम से कम पाँच साल होगी और अधिकतम सजा सात साल होगी; साथ में आर्थिक जुर्माना भी लगाया जाएगा।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि ऊपर दी गईं धाराओं में दोषियों पर जो जुर्माना लगाया जा सकता है, उसका इस्तेमाल ऐसिड हमले की पीड़िता के इलाज के लिए किया जाता है। उच्चतम न्यायालय (Supreme Court of India) के निर्देशों के अनुसार, गृह मंत्रालय (Ministry of Home Affairs) ने यह निर्देश दिया है-