सुप्रीम कोर्ट ने अपने अहम फैसले में कहा है कि डिजिटल सेवाओं तक पहुंच का अधिकार मौलिक अधिकार है. यह आर्टिकल 21 के तहत गरिमापूर्ण जीवन जीने के अधिकार का अहम हिस्सा है. कोर्ट ने कहा है कि सरकार को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि KYC जैसे डिजिटल प्रोसेस सभी को उपलब्ध हो. जो लोग विकलांगता का शिकार है या एसिड हमले के चलते जिनके चेहरा बिगड़ गया है, उन सबकी भी डिजिटल सेवाओं तक पहुंच होनी चाहिए. कोर्ट ने इसके लिए सरकार को 20 दिशानिर्देश भी तय किए है. दरअसल एसिड हमले का शिकार महिला और दृष्टिबाधित लोगों ने SC में याचिका दायर कर मांग किया है कि कोर्ट केन्द्र सरकार को निर्देश दे कि एसिड अटैक पीड़ितों या स्थायी तौर पर आँखों मे नुकसान झेलने वाले लोगों के लिए वैकल्पिक डिजिटल KYC(Know Your Customer) के लिए दिशानिर्देश तय करें. याचिका मे दलील दी गई है कि एसिड अटैक के बाद उनकी आंखों की पुतलियों को स्थाई रूप से नुकसान हो चुका है, जिसकी वजह से बैंक खाता खोलने, मोबाइल सिम कार्ड खरीदने जैसी स्थिति में बहुत दिक्कतों का सामना करना पड़ता है.
सुप्रीम कोर्ट ने डिजिटल सेवाओं तक पहुंच के अधिकार को संविधान के अनुच्छेद 21 से जोड़ते हुए कहा कि सभी सरकारी पोर्टल, शिक्षण प्लेटफॉर्म और वित्तीय प्रौद्योगिकी सेवाएं सभी कमज़ोर और हाशिये पर रहने वाले सहित सब लोगों के लिए सुलभ हों. अपने फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार वे हरसंभव कदम उठाने चाहिए, जो आज के दौर में डिजिटल डिवाइड के अंतर को कम करें और दृष्टिबाधित और एसिड अटैक सरवाइवर की जिंदगी आसान हो सके.
सुनवाई के दौरान सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि एसिड अटैक पीड़ित और दृष्टिबाधित व्यक्ति 2016 के दिव्यांगजन अधिकार अधिनियम के तहत राहत पाने के हकदार हैं. ई-केवाईसी प्रक्रिया में पलक झपकना, सिर हिलाना आदि कार्य शामिल हैं, जो दृष्टिबाधित और चेहरे पर विकृति वाले व्यक्तियों के लिए कठिन हैं. इससे उन्हें बैंक खाते खोलने या सरकारी योजनाओं का लाभ उठाने में देरी या असमर्थता का सामना करना पड़ता है. इन समस्याओं को दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट ने केन्द्र को 20 निर्देश देने के सुझाव दिए है.
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