नई दिल्ली: महिलाओं की सुरक्षा और उनके खुशहाल जीवन के लिए भारतीय संविधान और कानून के तहत उनके कई सारे अधिकार प्राप्त हैं। एक मुद्दा जिसपर दुनिया भर में लड़ाई हो रही है और जिसकी मांग कई महिलायें कर रही हैं, वो है गर्भपात यानी अबॉर्शन (Abortion)। कुछ देशों में महिलाओं को अबॉर्शन करवाने का अधिकार दिया गया है लेकिन अभी भी ऐसे कई देश हैं जहां यह हक सरकार ने महिलाओं को नहीं दिया है; कई जगहों पर यह गैर-कानूनी भी है।
अबॉर्शन की परिभाषा क्या है, इस देश में अबॉर्शन कब और किन स्थितियों में करवाया जा सकता है, क्या यह लीगल है और भारत में गर्भपात हेतु क्या कानून बनाए गए हैं, आइए विस्तार से समझते हैं...
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कोई भी गर्भवती महिला यदि चिकित्सीय रूप से अपनी गर्भवस्था को समाप्त करती है, उसे गर्भपात कहते हैं। भारत में अबॉर्शन को लेकर एक कानून बना है जिसका नाम 'गर्भ का चिकित्सीय समापन अधिनियम, 1971' (The Medical Termination of Pregnancy Act, 1971) है।
इस कानून के तहत कोई भी लड़की या महिला गर्भावस्था के पहले 20 हफ्तों के अंदर, एक चिकित्सक की मंजूरी के बाद गर्भपात करवा सकती है। इस कानून में हुए संशोधन के बाद विशेष स्थितियों में महिला का गर्भपात 14 हफ्तों की प्रेग्नेंसी पर भी हो सकता है।
इस अधिनियम में स्पष्ट किया गया है कि एक महिला का गर्भपात कहां हो सकता है, इस प्रक्रिया को कौन पूरा करेगा और गर्भपात करवाने वाली महिलाओं की निजता को संरक्षित रखा जाएगा।
बता दें कि भारत में गर्भपात करवाने की कानूनी उम्र 18 साल है। जहां एक महिला, जिसकी उम्र 18 साल से ज्यादा है लेकिन उसकी शादी नहीं हुई है, वो अपनी खुद की लिखित रजामंदी से अबॉर्शन करवा सकती है; वहीं वो लड़की जो 18 साल से कम की उम्र में अबॉर्शन करवाना चाहती है, उसे अपने अभिभावक (Guardian) से लिखित कन्सेंट देनी होगी जिसमें गर्भपात करवाने का कारण भी स्पष्ट किया जाना चाहिए।
दुनिया भर में महिलाओं को कई स्थितियों में बलात्कार (Rape) का सामना करना पड़ता है, यह उनके खिलाफ होने वाले सबसे खौफनाक अपराधों में से है। कई महिलाएं रेप के बाद गर्भवती हो जाती हैं और ऐसे हालातों में भारत में रेप पीड़ितों के लिए गर्भपात करवाना कानूनी है। बता दें कि एक रेप पीड़ित उच्च न्यायालय (High Court) या उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) में अपने गर्भपात हेतु याचिका खुद दायर कर सकती हैं और देश में एक कानूनी गर्भपात की मांग कर सकती हैं।
भारतीय दंड संहिता की धारा 312 (Section 312 of The Indian Penal Code) के तहत यदि कोई जानबूझकर महिला की प्रेग्नेंसी को खत्म करता है जिसका उद्देश्य महिला की जान बचाना नहीं है, तो उसे तीन साल तक की जेल की सजा, आर्थिक जुर्माना या फिर दोनों का सामना करना पड़ सकता है। इस धारा के तहत अगर स्त्री स्पन्दनगर्भा हो, तो उसे सात साल तक की जेल की सजा सुनाई जा सकती है और उसपर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
आईपीसी की धारा 313 (IPC Section 313) के तहत यदि महिला की रजामंदी के बिना उसका गर्भपात करवाया जाता है तो दोषी को आजीवन कारावास, या फिर दस साल तक की सजा सुनाई जा सकती है और उसपर आर्थिक जुर्माना भी लगाया जा सकता है।
कोई शख्स यदि एक महिला का गर्भपात करना चाहता है और उस दौरान महिला की मृत्यु हो जाती है तो इंडियन पीनल कोड की धारा 314 (Section 314 of The Indian Penal Code) के तहत उसे दस साल तक की जेल की सजा और आर्थिक जुर्माना का सामना करना पड़ सकता है। इस स्थिति में अगर महिला की रजामंदी न हो तो आजीवन कारावास की सजा भी सुनाई जा सकती है।
आपकी जानकारी के लिए बता दें कि कुछ समय पहले ही छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (Chhattisgarh High Court) में एक मामला सामने आया था जिसमें एक महिला ने इसलिए गर्भपात की मांग की थी क्योंकि उनके और उनके पति के रिश्तों में अब दरार आ गई है।
इसपर अदालत ने कहा था कि 'गर्भ का चिकित्सकीय समापन अधिनियम, 1971' की धारा 3 के तहत पति के साथ खराब रिश्ते या टूटती शादी वो कारण नहीं हैं जिनके आधार पर गर्भपात की अनुमति मिल सकती है।
इस आधार पर याचिकाकर्ता की याचिका को रद्द कर दिया गया था और गर्भपात की अनुमति नहीं दी गई थी।