नई दिल्ली: दंड प्रक्रिया संहिता (CrPC) की धारा 31 भारतीय न्याय प्रणाली में अपराध के संबंध में दंडादेश पारित करने से सम्बंधित पहलू से जुड़ी है. ऐसे कई मामले देखने को मिलते हैं जिसमे एक व्यक्ति के खिलाफ कई आपराधिक धाराओं के तहत मुकदमा दायर किया जाता है और फिर उन सभी आपराधिक धाराओं के संबंध में सुनवाई एक ही विचारण (Trial) में होती है.
तो आपके मन में यह सवाल सहज ही आएगा कि यदि आरोपी को सभी धाराओं के तहत दोषी पाया जाता है तो अलग-अलग धाराओं के अंतर्गत दी गई सज़ा एक साथ चलेंगी या फिर एक के बाद एक चलेंगी. CrPC की धारा 31, इसी महत्वपूर्ण प्रश्न का उत्तर प्रदान करती है. आइए जानते हैं इससे जुड़ी कुछ अहम बातें.
धारा 31 की पहली उप-धारा के मुताबिक यदि एक ही विचारण में अपराधी को दंड संहिता के दो या उससे अधिक अपराधों का दोषी पाया जाता है और उसे कारावास से दंडित किया जाता है तो प्रत्येक अपराध के लिए दिया गया दंड एक के बाद शुरू होंगे जब तक कि न्यायालय ये आदेश पारित ना करे कि सभी दंड एक साथ ही चलेंगे.
वहीं, उप-धारा 2 बताती है कि यदि लगातार दंडों के मामले में, अपराधी को एक उच्च न्यायालय के समक्ष मुकदमे के लिए अपराधी को भेजना आवश्यक नहीं है यदि कई अपराधों के लिए कुल सजा उस सजा से अधिक है जो न्यायालय किसी एक अपराध के लिए देने में सक्षम है.
हालांकि, इस उप-धारा के दो अपवाद हैं, जिसके अंतर्गत
उप-धारा 3 के अनुसार अपील के उद्देश्य से, अपराधी को दी गई कुल सज़ा को एक ही सज़ा के रूप में माना जाएगा.
दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 31 में केवल एक विचारण (Trial) में दो या अधिक अपराधों के एक आरोपी व्यक्ति की सजा को सन्दर्भित किया गया है और यह धारा एक आरोपी के खिलाफ विभिन्न परीक्षणों (Trials) में पारित दंडों पर लागू नहीं होती है. इसलिए, एक अदालत, दो या अधिक अपराधों के लिए एक अभियुक्त पर अलग-अलग परीक्षणों में पारित दंडों को एक साथ चलने का आदेश नहीं दे सकती है.
भारतीय सुप्रीम कोर्ट ने अपने कई निर्णयों में यह स्पष्ट किया है कि परीक्षण अदालत को अपने निर्णय में यह बताना आवश्यक है कि अलग-अलग अपराधों के लिए दी गई कारावास की सज़ा एक साथ चलेंगी या फिर अलग-अलग चलेंगी. यदि वे धारा 31 के तहत इस प्रश्न तय करने में विफल रहती है, तो वे अपने वैधानिक कर्तव्य का अपमान करती हैं.