सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश के कांग्रेस विधायक राजेंद्र भारती के खिलाफ चल रहे मुकदमे में गवाहों पर दबाव डालने के आरोपों की निष्पक्ष जांच करने का निर्देश दिया है. सुप्रीम कोर्ट ने मध्य प्रदेश सरकार से कहा कि फेयर ट्रायल- इंवेस्टिगेशन सुनिश्चित कराना राज्य का कर्तव्य है, यह संविधान के अनुच्छेद 21 के तहत गारंटीकृत अधिकारों का एक अनिवार्य हिस्सा है. सुप्रीम कोर्ट ने पाया कि राज्य सरकार द्वारा गवाहों पर दबाव डालने के आरोपों की उचित जांच नहीं की गई है. यह मामला एक बैंक मैनेजर की शिकायत से जुड़ा है, जिसमें कांग्रेस एमएमल राजेंद्र भारती पर धोखाधड़ी का आरोप लगाया है. इसी मामले में जांच को लेकर राजेन्द्र भारती ने दावा किया है कि पूर्व गृह मंत्री नरोत्तम मिश्रा जिला लोक अभियोजक के साथ मिलकर मुकदमे को प्रभावित करने की कोशिश कर रहे हैं और गवाहों को डराया जा रहा है. उन्होंने इस मामले में राहत पाने की मांग को लेकर सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है.
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस अभय एस ओका और जस्टिस उज्जल भुइयां की खंडपीठ ने कांग्रेस एमएलए की याचिका पर सुनवाई की. कांग्रेस नेता की ओर से कपिल सिब्बल पेश हुए. उन्होंने कहा कि बचाव पक्ष के गवाहों को प्रभावित किया जा रहा है. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि हमें प्रतीत होता है कि राज्य ने याची के आरोपों के दावों की निष्पक्ष जांच नहीं की है.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,
"जाहिर है, ट्रायल कोर्ट को भी सामग्री के आधार पर उचित कार्रवाई करनी चाहिए थी. दूसरा सवाल यह है कि क्या राज्य ने याचिकाकर्ता द्वारा लगाए गए इस गंभीर आरोप की कोई जांच करने का प्रयास किया कि बचाव पक्ष के गवाहों को डराने की कोशिश की गई थी, जैसा कि रिकॉर्ड पर दायर हलफनामों में कहा गया है,"
सुप्रीम कोर्ट ने नाराजगी जताते हुए कहा कि राज्य से बार-बार जांच के बारे में सवाल पूछे जाने पर भी कोई जबाव नहीं दिया गया है.सुप्रीम कोर्ट ने महीने भर के भीतर इस मामले में रिपोर्ट देने को कहा है.